लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी में एक लॉबी उत्तर प्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए पूरी ताकत से जुटी है लेकिन, यह संभावना बन रही है कि निकाय चुनाव केशव प्रसाद मौर्य की अगुआई में ही पार्टी लड़ेगी। राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में रामनाथ कोविंद को मौका देकर भाजपा दलित कार्ड खेल चुकी है, इसलिए अब पिछड़ों पर ही केंद्रित होने की योजना है।
उत्तर प्रदेश में 16 नगर निगमों, 198 नगर पालिका परिषदों और 438 नगर पंचायतों के महापौरों/अध्यक्षों के अलावा करीब 11 लाख पार्षदों के चुनाव होने हैं। महानगरों और कस्बों में पिछड़ों का वर्चस्व बढ़ा है। भाजपा ने महानगरों में तो सपा के जमाने में भी ठीक प्रदर्शन किया लेकिन, नगर पालिका और नगर पंचायतों में वह बात नहीं रही। विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने की वजह से अब भाजपा के सामने निकाय चुनाव में बड़ी सफलता हासिल करने की चुनौती है।
इस लिहाज से भाजपा को पिछड़े वर्ग का नेतृत्व बनाए रखने पर सोचना पड़ रहा है। शायद यही वजह है कि भाजपा में नए अध्यक्ष की ताजपोशी का मसला ठंडे बस्ते में चला गया है। इसके पहले सत्ता परिवर्तन के संघर्ष में जुटी भाजपा ने केशव को अध्यक्ष बनाकर पिछड़ा कार्ड खेला था। भाजपा को मिले प्रचंड बहुमत का सारा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के चुनावी प्रबंधन को गया लेकिन, पिछड़ा कार्ड को भी एक मजबूत समीकरण के रूप में जोड़ा गया। इस वजह से पिछड़ा समीकरण भाजपा को मुफीद लग रहा है। संभव है कि केशव की जगह किसी और पिछड़े नेता को अवसर मिल जाए।
पहली कार्यसमिति में ही बदला जाना था नेतृत्व
केशव को 19 मार्च को उपमुख्यमंत्री बनाया गया तो उन्होंने खुद ही एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत पर अमल करते हुए संगठन का दायित्व छोडऩे की पेशकश की लेकिन, केंद्रीय नेतृत्व ने दारोमदार उन्हें ही सौंपे रखा। सरकार बनने के बाद भाजपा की पहली प्रदेश कार्यसमिति की बैठक एक और दो मई को लखनऊ के साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में रखी गई।
संगठन से यह संकेत मिले कि इस कार्यसमिति के दौरान ही नए अध्यक्ष की ताजपोशी हो जाएगी। इस बैठक में अमित शाह शामिल हुए और केशव प्रसाद ने भी अपने कार्यकाल का ब्योरा भी इस ढंग से प्रस्तुत किया जैसे अब नेतृत्व कोई और संभालने वाला है। इसके बाद भी नए हाथों में नेतृत्व नहीं सौंपा गया।
मिल सकती है ब्राह्मण नेतृत्व को कमान
कुछ पदाधिकारी यह भी दावा कर रहे हैं कि राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व किसी और को सौंप दिया जाएगा। इसके लिए यह भी तर्क दिया जा रहा है कि दलित और पिछड़ों की कसौटी पर पार्टी खरी साबित हुई है। कई पिछड़े और दलित नेताओं को आगे बढ़ाया है। इस लिहाज से ब्राह्मण नेतृत्व को कमान सौंपे जाने का दावा किया जा रहा है।