इस्लाम धर्म में रमजान को सबसे पवित्र महीना माना जाता है। इस पवित्र महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखते हैं। रमजान के महीने में सूर्योदय से लेकर सूर्योस्त तक रोजा रखा जाता है, इस दौरान कुछ भी खाया-पिया नहीं जाता है। पूरे महीने रात में विशेष नमाज अदा की जाती है, जिसे तरावीह कहते हैं। रोजे को अरबी भाषा में सोम कहा जाता है। इसका मतलब होता है रुकना। रोजे चांद दिखने से शुरु होते हैं, जिस शाम को चांद दिखाई देता है, उसकी अगली सुबह से रोजे शुरू हो जाते हैं। इस बार बताया जा रहा है कि रोजे शनिवार(27 मई) से शुरु हो सकते हैं। हालांकि, यह चांद दिखने पर निर्भर करता है।
क्या होता है रमजान- मुस्लिम धर्म में रमजान एक तरह का पर्व होता है जो इस्लामी कैलेन्डर के नौवें महीने में मनाया जाता है। पूरी दुनिया में मुस्लिम समाज इसे पैगम्बर हजरत मोहम्मद पर पवित्र कुरान के अवतरण के उपलक्ष्य में उपवास और पूरी श्रद्धा से साथ मनाता है।
मुस्लिम धर्म में रोजा रखना अनिवार्य माना जाता है। लेकिन कुछ लोगों को छूट भी मिलती है। जैसे की बीमार, दूध पिलाने वाली महिला और अबोध बच्चों तो इस माह में रोजा रखने की छूट दी जाती है। लेकिन बाद में वो किसी दूसरे महीने में रोजा रख सकते हैं।
रमजान के महीने में कुछ खास बातों पर ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। कहा जाता है कि इफ्तार के बाद ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए। दिनभर में रोजे के बाद शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है। अगर रोजा रखने वाले जानबूझकर कुछ खा लेता है तो उसका रोजा टूट जाता है। लेकिन अगर गलती से कुछ खा लिया तो रोजा नहीं टूटता।
रोजे सुबह सहरी के साथ रखा जाता है और इफ्तार के साथ खत्म कर दिया जाता है। रोजे रखने वाले सहरी से पहले जो खाना और पीना होता है वह कर लेते हैं। इसके बाद पूरे दिन कुछ भी खाया पिया नहीं जाता। फिर शाम को सूर्यास्त के बाद इफ्तार किया जाता है। जिसमें रोजा खोला जाता है और उसके बाद कुछ भी खाया पिया जा सकता है।