ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को दंड देने वाला देवता बताया गया है। कहा जाता है कि शनिदेव व्यक्ति को उसके कर्मों की सजा जरुर देते हैं। जिसकी कुंडली में शनिदेव बैठ जाते हैं उसका कोई काम नहीं बनता। लेकिन ज्योतिषियों के मुताबिक शनि से ज्यादा राहु और केतु को ज्यादा मारक माना जाता है। राहु और केतु को पापी ग्रह माना जाता है। ज्योतिषियों का कहना है कि जिस व्यक्ति पर इन ग्रहों की छाया पड़ जाती है उस व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।
ज्योतिषियों का कहना है कि व्यक्ति पर इन ग्रहों का प्रभाव पड़े उससे पहले ही उनका उपचार कर लेना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता है तो व्यक्ति को जीवन में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। कहा जाता है कि ये ग्रह व्यक्ति की तर्कशक्ति, बुद्धि, ज्ञान को खत्म करता है। बुद्धि भ्रष्ट होने के कारण व्यक्ति कई गलत कामों में पड़ जाता है, जो भविष्य में व्यक्ति के लिए काफी गलत होता है।
ज्योतिषियों का कहना है कि कुंडली में राहु और केतु ग्रह का असर दूसरे ग्रहों की स्थितियों पर निर्भर करता है। इन दोनों ग्रहों को बुद्धि का ग्रह माना जाता है। कहा जाता है कि जो कोई भी इन ग्रहों की वजह से मुश्किलों का सामनों करता है वो अपनी हालत के लिए खुद ही जिम्मेदार होता है। कहा जाता है कि केतु ग्रह का प्रभाव कुछ हद तक मंगल ग्रह की तरह होता है।
ज्योतिषियों का कहना है कि शरीर में राहु को “सिर” और केतु को ‘धड़’ का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि कुडंली में राहु व्यक्ति को गले की समस्या दे सकता है। गले में कई तरह की बीमारियां हो सकती हैं। वहीं राहु शरीर के नीचे के हिस्सों को प्रभावित करता है। केतु से व्यक्ति को पेट संबंधित बीमारियां हो सकती हैं।
अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतु सही दिशा में हैं तो लाभ की स्थितियां पैदा हो सकती हैं। वहीं अगर राहु शुभ जगह पर है तो शक्ति संपन्न करने वाला होता है। शुभ स्थिति में होने पर ये लोगों की बुद्धि-बातों से दुश्मनों को भी दोस्त बनाने की क्षमता रखता है।