एक क्रान्ति 1857 से 1947 तक इरादा क्या आजादी। हमारी आजादी का मतलब क्या? देश के सतत विकास को लेकर आयी पञ्च वर्षीय योजनायें। 12% साक्षर लोगों को रोटी कपड़ा और मकान की पूर्ती के सपने दिखाते राजनेता।कई सालों तक योजनाओं का खाका खींचते हुए राजनीत की गाडी दौडाते नेता। अभी हमारा लोकतंत्र अपने पैरों पर ठीक से खड़ा न हो पाया घोटालों और शोषड़ की काली छाया इस पर पड़ती दिखी।1951 में बागी सुरों के साथ खड़े श्यामा प्रसाद मुखेर्जी और 1977 मे नयी दिशा दिखाते जयप्रकाश नारायण।तमाम राजनीतिक समयांतराल के बाद भी राजनेता अपना मुद्दा रोटी कपडा और मकान नहीं भूले और जनता को कभी न भूलने दिया।देश मे तमाम छोटी बड़ी राजनीतिक पार्टी जात धर्म और छेत्रवाद के दम पर अपनी दूकान खोल कर बैठ गयी। आंबेडकर और लोहिया के विचारों पर सत्ता की रोटियाँ सेकि जाने लगीं। रोटी से धर्म के तरफ कब नेता और जनता गयी ये महसूस भी नहीं हुआ।अभी जनता जेपी आन्दोलन की बातों को भूली भी ना थी की भारतीय जनता पार्टी ने एक और अलख जगाई”राम मंदिर”।भूखे पेट के भावनाओं का आश्चर्य जनक उबाल देखने को मिला। पूरा भारत एक रंग मे रंग गया”भगवा”।हर गली। हर मोहल्ले से एक ही आवाज आती”कसम राम की खायेंगे मंदिर वहीँ बनायेंगे”। बीजेपी को अप्रत्याशित बहुमत।मस्जिद ढाई गयी।राजनेताओं द्वारा जातीय ध्रुवीकरण शुरू। अल्पसंख्यक हिमायती बन्ने की होड़ लगी। बीजेपी का मुद्दा राम मंदिर फिर भी लंबा वनवास 2004 मे केंद्र से भी भगवा ने नियंत्रण खोया 10 साल का सूखा।एक नयी लहर गुजरात से उठी विश्व पटल पर गुजरात दंगे का अपराधी माने जाने वाला एक तेजस्वी चेहरा सामने आया,विकास की नयी परिभाषा के साथ।स्पेक्ट्रम और कोल गेट के कालिख से लिपटे लोकतंत्र को एक नयी उम्मीद दिखी भारतीय जनता ने अपनाया पूरा विश्व कायल हुआ।विकास की क्रान्ति चारों दिशाओं में बहती प्रतीत हुयी। आरोप लगा ध्रुवीकरण का लेकिन राम मंदिर अयोध्या मे हैं।बाकी 16 राज्यों मे क्यों है भगवा???
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