Thursday, April 18, 2024
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तीन तलाक: मुस्‍ल‍िम जज ने छह दिन चली सुनवाई में नहीं कहा एक भी शब्द

SI News Today

मुसलमानों में तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला निकाह पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की खंडपीठ ने गुरुवार (18 मई) को इस मामले पर सुनवाई पूरी कर ली। इस विवादित मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने गर्मी की छुट्टी में भी सुनवाई की। संयोग की बात है कि इस पीठ के पांचों जज पांच अलग-अलग धर्मों से तालुक्क रखते हैं। हालांकि मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार खंडपीठ में शामिल मुस्लिम जज ने छह दिनों की सुनवाई के दौरान “एक शब्द” भी नहीं कहा।

तीन तलाक पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर (सिख), जस्टिस कूरियन जोसेफ (ईसाई), आरएफ नरीमन (पारसी), यूयू ललित (हिंदू) और अब्दुल नजीर (मुस्लिम) हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश किसी भी मजहब के हों वो अदालत में फैसले सिर्फ और सिर्फ भारतीय संविधान की रोशनी में लेते हैं। तीन तलाक से जुड़ी याचिका में कुरान सुन्नत सोसाइटी, शायरा बानो, आफरीन रहमान, गुलशन परवीन, इशरत जहां और आतिया साबरी याचिकाकर्ता हैं।

जस्टिस अब्दुल नजीर ने छह दिनों तक चली सुनवाई के दौरान किसी भी पक्ष के वकील से कोई भी सवाल नहीं पूछा। जबकि दूसरे जजों ने विभिन्न पक्षों के वकीलों से इस्लाम और तीन तलाक से जुड़े कई सवाल पूछे। सुनवाई के दौरान जस्टिस नरीमन ने एक मौके पर टिप्पणी करते हुए खुद को प्रशिक्षित पारसी प्रीस्ट (पुजारी) बताया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के दौरान कांग्रेसी नेता और सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया था। अदालत महत्वपूर्ण मुकदमों उसके किसी जानकारी वकील को न्याय मित्र नियुक्त कर सकती है। न्याय मित्र मुकदमे से जुड़े किसी भी पक्ष का वकील नहीं होता वो केवल अदालत को विशेषज्ञ के तौर पर सलाह देता है।

सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई से पहले केंद्र सरकार का पक्ष भी मांगा था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वो तीन तलाक को मानव अधिकारों के विरुद्ध मानती है। वहीं आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने सर्वोच्च अदालत से कहा कि तीन तलाक इस्लाम का अंदरूनी मामला है। पर्सलन लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने गुरुवार (18 मई) को सुप्रीम कोर्ट के पूछे सवाल के जवाब में कहा था कि वो मुस्लिम निकाहनामे में मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक को अस्वीकार करने का विकल्प दे सकता है। हालांकि मामले की एक याचिकाकर्ता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इससे उन्हें इंसाफ नहीं मिलेगा।

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