Friday, April 19, 2024
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सीधे तौर पर नहीं चुनती जनता, तो फिर कैसे होता है देश के राष्ट्रपति का चुनाव

SI News Today

जैसा कि हम सभी जानते हैं, राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल पूरा होने वाला है। ऐसे में नए राष्ट्रपति के नाम पर विपक्षी दल एकमत बनाने के लिए लामबंद होते दिख रहे हैं। इधर, केंद्र सरकार भी अपनी पार्टी और सहयोगियों में नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सलाह-मशविरा कर रही है।

राष्ट्रपति चुनाव की बात सुनने और देखने में जितनी आसान लगती है, असल में यह उतनी ही टेढ़ी खीर है। देश की सबसे ताकतवर कुर्सी के लिए जनता मतदान नहीं करती। जी हां, राष्ट्रपति को सीधे तौर पर लोग खुद नहीं चुन सकते। अगर ऐसा होता है तो, राष्ट्रपति खुद को सीधे तौर पर सत्ता में ला सकता है। साल 1848 में लुइस नेपोलियन को राष्ट्र के मुखिया के तौर पर खुद लोगों ने ही चुना था। चूंकि सीधे लोगों ने उसे चुना था इसिलए उसे सम्राट बताया गया। इसी घटनाक्रम को ध्यान में रखते हुए हमारे यहां राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है। सीधे जनता उसे नहीं चुनती है।

आप सोच रहे होंगे कि अप्रत्यक्ष रूप। ये क्या होता है। दरअसल, देश का राष्ट्रपति एक इलेक्टोरल कॉलेज से चुना जाता है। संविधान के अनुच्छेद 54 में इसका जिक्र है। देश की जनता अपना राष्ट्रपति सीधे तौर पर नहीं चुनती है, बल्कि उसके मत से चुने गए प्रतिनिधि चुनते हैं। चुनाव में सभी प्रदेशों की विधानसभा के चुने गए सदस्य और संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में चुनकर आए सांसद मत का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, राज्यों की विधान परिषदों के सदस्य और संसद में राष्ट्रपति की ओर से नामित किए गए सदस्य इस चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकते हैं। ऐसा इसलिए, होता है क्योंकि वे जनता द्वारा नहीं चुने जाते।

हर विधायक और सांसद के मत अलग-अलग होते हैं, जिनका जोड़-हिसाब करना लंबी प्रक्रिया है। मतदान के मामले में विधायकों और सांसदों के मत का अलग-अलग महत्व (वेटेज) होता है। मसलन दो राज्यों के विधायकों के मतों का वेटेज अलग होता है। यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था से तय किया जाता है। विधायक के मामले में उसके राज्य की आबादी देखी जाती है। साथ ही उस राज्य के विस सदस्यों की संख्या भी ध्यान में रखी जाती है। वेटेज निकालने के लिए राज्य की आबादी को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है। फिर आने वाली संख्या को 1000 से भाग दिया जाता है, जिससे निकलने वाला आंकड़ा ही उस राज्य के विधायक के मत का वेटेज होता है। 1000 से भाग देने पर अगर शेष 500 से अधिक हो तो वेटेज में एक जोड़ा जाता है।

अब बात आती है सांसद के मतों के वेटेज की। सभी राज्यों की विधानसभा के चुने गए सदस्यों के मतों के वेटेज को सबसे पहले जोड़ा जाता है। फिर इसे लोकसभा और राज्यसभा के चुने गए सदस्यों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है। इससे निकलने वाली संख्या ही एक सांसद के मत का वेटेज होती है। अगर भाग देने पर शेष 0.5 से कम बच जाता है, तो वेटेज में एक की बढ़ोतरी होती है। जोड़-हिसाब के लिए जनसंख्या के आंकड़े 1971 की जनगणना से लिए जाते हैं, जो 2026 तक इस्तेमाल किए जाएंगे।

उदाहरण के लिए मान लें कि मध्य प्रदेश की कुल आबादी साल 1971 में तीन करोड़ सत्रह हजार एक सौ अस्सी थी। विधानसभा में कुल 230 सदस्य चुने गए। ऐसे में विधायक के मत का वेटेज कुछ इस प्रकार निकाला जाएगा।

30,017,180
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1000 x 230

विधायक और सांसद कैसे करते हैं मतदान

राष्ट्रपति चुनाव में बैलट व्यवस्था के बजाय खास तरीके से मतदान होता है, जिसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट सिस्टम कहा जाता है। सरल शब्दों में समझें तो एक मतदाता एक ही मत दे सकता है, लेकिन वह कई उम्मीदवारों में प्राथमिकता बताता है। मसलन मान लें कि पांच उम्मीदवार हैं, तो मतदाता उनमें अपनी प्राथमिकता के हिसाब से बताएगा कि कौन उसकी पहली पसंद है और कौन आखिरी। अगर पहली पसंद वाले मत से विजेता तय नहीं हो पाता, तो मतदाता की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट के रूप में ट्रांसफर कर दिया जाता है।

राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी यह भी रोचक बात है कि सर्वाधिक मत हासिल करने से यहां जीत नहीं मिलती। राष्ट्रपति उसे चुना जाता है, जो मतदाताओं (विधायकों और सांसदों) के मतों के कुल वेटेज का आधा से अधिक हिस्सा हासिल करे। मतलब राष्ट्रपति चुनाव में पहले से तय होता है कि जीतने वाले को कितना वेटेज पाना होगा।

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