जूतों में दाल
हिमाचल में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पार्टी के सूबेदार सुखविंदर सिंह सुक्खू की लड़ाई अब तेज हो गई है। यों कहने को यह चुनाव का साल है। पर जंग थमने का नाम नहीं ले रही। वीरभद्र खेमा सुक्खू को हाशिए पर पहुंचाने की जुगत भिड़ा रहा है। कांग्रेस के ज्यादातर नेता सुक्खू को सूबेदार लायक मानते ही नहीं। पर यह श्रेय तो उन्हें देना ही पड़ेगा कि वे वीरभद्र के समानांतर अपना कद बढ़ाने की नाकाम ही सही पर कोशिश लगातार कर तो रहे। हालांकि हिमाचल में पिछले चार दशक में रामलाल को छोड़ वीरभद्र के कद का दूसरा कोई नेता उभर नहीं पाया है। सुक्खू की जगह वीरभद्र अब आशा कुमारी के पक्ष में लाबिंग कर रहे हैं। जो पार्टी की फिलहाल राष्ट्रीय सचिव हैं। ऊपर से वीरभद्र की तरह राजपरिवार से ही जुड़ी रही हैं। कुछ माह पहले तक तो दोनों में छत्तीस का आंकड़ा था। पर आजकल मेल हो गया है। पंजाब की प्रभारी के नाते आला कमान की नजर में विधानसभा चुनाव की जीत के बाद उनका कद और बढ़ गया। ऐसे में बतौर इनाम आला कमान अगर उन्हें सूबेदारी दे दे तो अचरज नहीं होना चाहिए।
साख पर सवाल
पंजाब में अभी तो कांग्रेस की सरकार बने जुम्मा-जुम्मा चार हफ्ते ही हुए हैं कि एक मंत्री के कारखाने में कुछ दिन पहले तक खानसामा का काम करते रहे एक कर्मचारी की करामात से सभी हैरान हैं। रेत-बजरी के ठेके के लिए करोड़ों रुपए की बोली दे डाली इस महाशय ने। फिलहाल राणा गुरजीत सिंह की राणा शुगर्स में नौकरी कर रहा है। तरक्की देकर मंत्री जी ने उसे एचआर महकमे का जिम्मा दिला दिया। विपक्ष का आरोप भी सिरे से नकारा नहीं जा सकता कि कर्मचारी के नाम से ठेके दरअसल मंत्री ने खुद लिए हैं। मंत्री की कंपनी के दो और कर्मचारियों के नाम भी आए हैं ठेके की हिस्सेदारी में। कर्मचारी अमित बहादुर करोड़पति बन गया है। अकाली दल और बादल परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर सत्ता में आए हैं कैप्टन अमरिंदर सिंह। लेकिन गुरजीत सिंह राणा जैसे मंत्री की करामात ने तो कांग्रेस की साख को दांव पर लगा दिया है। हर कोई एक ही टिप्पणी कर रहा है कि अपने पास करोड़ों होते तो रसोइये की नौकरी क्यों करता अमित बहादुर? देखना है कि अमरिंदर सिंह इस नई परेशानी से कैसे निपटेंगे।
हावी नौकरशाह
मध्य प्रदेश की सियासत में पिछले दिनों भूचाल ला दिया हरदा जिले के एक मामले ने। लड़ाई सतही तौर पर तो राजनीतिक बनाम नौकरशाही की दिखती है, पर निशाने पर कुछ और हो सकता है। शिवराज चौहान के राजस्व मंत्री कमल पटेल की हरदा, होशंगाबाद और सिहोर की नौकरशाही से ठन गई है। शिवराज चौहान जब नर्मदा सेवा यात्रा को लेकर पुण्य कमा रहे थे तब कमल पटेल नर्मदा के अवैध खनन की शिकायत लेकर एनजीटी चले गए। खदान संचालकों और अफसरों के बीच साठ-गांठ का आरोप लगा दिया। उनके बेटे सुदीप पटेल पर चौदह मामले दर्ज हो जाएं और वे चुप रहें। कैसे संभव है। हरदा के पुलिस कप्तान और कलेक्टर को हटाने की मांग कर दी मंत्री ने। लेकिन कलेक्टर भी हार मानने वाला नहीं था। उसने मंत्री के बेटे को एक साल के लिए जिला बदर कर दिया। जिला पंचायत के उपाध्यक्ष पद से हटाने की कवायद भी शुरू कर दी। कमल पटेल उत्तेजित हुए तो मुख्यमंत्री ने 24 मई को हरदा के कलेक्टर श्रीकांत बनोट का तबादला भोपाल कर दिया। इसके अगले ही दिन एनजीटी ने कमल पटेल की शिकायत पर सुनवाई कर सूबे के डीजीपी और मुख्य सचिव समेत 18 लोगों को नोटिस जारी कर दिया। हालांकि फटकार शिकायतकर्ता मंत्री को भी खूब लगाई। इलाके के विधायक और मंत्री के नाते इतने दिन चुप्पी साधे रखने पर। सुनवाई के बाद पटेल ने फरमाया कि शिवराज चौहान तो ईमानदार और सज्जन हैं पर अफसरों की बातों में आ जाते हैं। नतीजतन सूबे में माफिया राज चल रहा है। ऐसे बयान पर प्रदेश भाजपा संगठन को उबलना ही था। पार्टी के सूबेदार नंदकुमार सिंह चौहान ने नोटिस थमा दिया कमल पटेल को उनकी अनुशासनहीनता की हरकत पर। फिर तो कमल पटेल जा पहुंचे भाजपा दफ्तर। संगठन महामंत्री को देते रहे देर तक सफाई। पत्रकारों से सामना हुआ तो कह दिया कि पार्टी उनकी मां है। इसी बीच अचानक 27 मई को सरकार ने हरदा के कलेक्टर भनोट का तबादला रद्द कर उन्हें वापस भेज दिया उनकी कुर्सी पर। बेचारे कमल पटेल को अब तो समझ आ ही जाना चाहिए कि सूबे में इकबाल तो नौकरशाही का ही बुलंद है।