Friday, March 29, 2024
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कानून व्यवस्था: न धमक बची और न योगी की अब वैसी हनक

SI News Today

विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ सूबे की बदहाल कानून व्यवस्था को मुख्य मुद्दा बनाया था। यूनीपोल और होर्डिंग इसी मुद्दे से जुड़े नारों से अटे थे। मसलन – महिलाओं पर हो रहा अत्याचार, सो रही सरकार, अबकी बार, भाजपा सरकार। यह संयोग ही है कि इनमें से कुछ यूनीपोल अभी भी लगे हैं। बस फर्क इतना आया है कि अब सूबे में भाजपा की ही सरकार है और अखिलेश सरकार की खिल्ली उड़ाने वाले वही नारे अब योगी सरकार को सवालों के घेरे में ला रहे हैं।  आगरा से लखनऊ एक्सप्रेस वे पर महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार की जिस घटना के संदर्भ में भाजपा ने नारा गढ़ा था, बिलकुल वैसी ही वारदात इसी हाईवे पर योगी सरकार के राज में भी पिछले दिनों हुई। वैसी ही क्या, उससे भी ज्यादा गंभीर। जब विरोध करने पर परिवार के पुरुष सदस्य को लुटेरों ने मार डाला। पुलिस को रात में ही खबर भी मिल गई और वह देर से ही सही, घटनास्थल पर पहुंच भी गई। पर अपराधियों को पकड़ने के बजाय योगी की पुलिस इसी प्रचार में जुट गई कि सामूहिक बलात्कार की पुष्टि मेडिकल जांच में नहीं हो पाई। यह तो जख्म पर मरहम लगाने के बजाय नमक छिड़कने वाली बात हो गई।  अब विरोधी भाजपा के नारे को हथियार बना उसी पर पलटवार कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है? सूबे में आम आदमी मौजूदा कानून व्यवस्था को लेकर बेहद निराश है। यह सही है कि योगी के शपथ लेते ही सूबे की कानून व्यवस्था में चमत्कारी बदलाव दिखा था। किसी ने उसे हिदायत भी नहीं दी थी। एक तरह से उसका अपना नजरिया बदला था कि अब हीला हवाली और अपराधियों को पनाह देने का जमाना चला गया। पुलिस वाले थानों में खुद ही सफाई कर रहे थे। शिकायत लेकर आने वालों के साथ अच्छा सलूक कर रहे थे। साथ ही सड़कों पर दिन रात मुस्तैदी से डयूटी दे रहे थे। 15 दिन के में ही हर कोई कहने लगा कि योगी तो नरेन्द्र मोदी से भी बेहतर प्रशासक साबित होंगे।

तबादलों में गड़बड़ी
योगी ने भी यही कहा कि वे तबादलों के चक्कर में नहीं पड़ने वाले। पुलिस वाले अपना काम बेखौफ होकर करें। जो अच्छा काम करेंगे, उन्हें अच्छा सम्मान मिलेगा। लेकिन यह आबो हवा मई में अचानक बदलने लगी। शुरुआत हुई पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति से। इसमें दोराय नहीं कि योगी ने जिन सबसे वरिष्ठ आईपीएस सुलखान सिंह को सूबे की पुलिस की कमान थमाई, उनकी ईमानदारी और अड़ियल स्वभाव से हर कोई वाकिफ है। पर एक पहलू ने योगी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा दिया। सुलखान सिंह भी एक तो योगी की तरह राजपूत ठहरे, ऊपर से उनका कायर्काल अब कुछ ही महीने बचा होने से धमक कम हुई। ऊपर से पुलिस अफसरों के तबादलों में उनकी सलाह भी नहीं ली गई। गड़बड़ी तबादलों की सूची सामने आने से ही शुरू हुई। दागी और नाकारा छवि वाले पुलिस अफसर जुगाड़ बिठाकर योगी के राज में भी अहम तैनातियां पा गए। लखनऊ में तबादला अब पहले की तरह उद्योग भले न रहा हो पर जात-पात और तिकड़म बाजी तो अब भी कसौटी बन गई। मेरिट की धज्जियां उड़ती देख थानों की पुलिस फिर अखिलेश राज की तरह ही मस्त हो गई। नतीजतन अपराधों का ग्राफ फिर पुरानी ऊंचाई को छू रहा है।

कल्याण ने किया था कमाल
दरअसल उत्तर प्रदेश में खराब कानून व्यवस्था की जिम्मेदार केवल पुलिस नहीं है। असली गुनहगार तो राजनेता हैं। जो भी कुर्सी पर बैठता है, पुलिस का अपने लिए बेजा इस्तेमाल करता है। इस मामले में कल्याण सिंह ने 1991 में जरूर कमाल किया था। छांटकर मेरिट के अफसरों को जिलों में कमान सौंपी थी। तबादले और तैनाती का आधार जात-पात को नहीं बनाया था। वे किसी कप्तान से किसी थानेदार को तैनात करने की सिफारिश भी नहीं करते थे। नतीजतन ज्यादातर अपराधी एक साल के भीतर ही या तो जेलों में थे या पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए थे। पर वह सरकार बाबरी मस्जिद विवाद के कारण डेढ़ साल में ही चल बसी थी।

राजनाथ नहीं संभाल पाए थे कानून-व्यवस्था
इसके बाद 2000 में राजनाथ सिंह ने भी अपराध के आंकड़ों से पुलिस वालों की मेरिट तय करने की परम्परा को तोड़ा था। उन्होंने कहा था कि वे पुलिस वाले के काम-काज का मूल्यांकन जन भावनाओं के आधार पर करेंगे। लेकिन उनकी सरकार खुद दागी और बाहुबली मंत्रियों से भरी पड़ी थी। लिहाजा वे कानून व्यवस्था के मामले में रामराज लाने के अपने मिशन को पूरा नहीं कर पाए। हां, मायावती के राज में जरूर अपराधियों को दिक्कत हुई पर इस दौरान दलित उत्पीड़न के झूठे मामलों की बाढ़ तो आई ही, तैनाती में दलितों को मेरिट से ऊपर रखा गया।

मोदी की हिदायत बनी गले की फांस
बहरहाल अब जमीनी हकीकत यही है कि उत्तर प्रदेश के हर इलाके में लोग खराब कानून व्यवस्था से फिर त्रस्त हैं। पुलिस वाले लोगों की मदद करने के बजाय चौथ वसूलने में ही व्यस्त हैं। प्रधानमंत्री ने अपने विधायकों और सांसदों को हिदायत दी थी कि वे किसी के तबादले की सिफारिश नहीं करेंगे। यह हिदायत ही उनके गले की फांस बन चुकी है। वे अफसरों के पास सिफारिश के लिए भी नहीं जा सकते और अफसर भी जान गए हैं कि उनकी कोई औकात नहीं है। पर आम जनता तो उन्हीं को घेरती और कोसती है। तभी तो वे भी मौका मिलते ही उबल पड़ते हैं। सूबे के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य पिछले हफ्ते मेरठ में आए तो उन्हें अपने सांसद और विधायकों व पार्टी पदाधिकारियों के रोष का सामना करना पड़ा। समीक्षा बैठक में जब उन्होंने पूछा कि अपराधियों में खौफ है या नहीं तो सबने एक सुर में जवाब दिया-कतई नहीं। बेचारे मौर्य खिसियाकर रह गए।

कई दहलाने वाली घटनाएं

मथुरा में दो की हत्या कर सर्राफ की दुकान से करोड़ों की लूट का मामला हो या सहारनपुर के शब्बीरपुर में दलितों-राजपूतों के बीच हिंसक संघर्ष का, रामपुर में 14 युवकों द्वारा सरेराह लड़की से अश्लील हरकत करने की वारदात हो या हाथरस में पुलिसवालों द्वारा दंपत्ति को लूटने का मामला, मुजफ्फरनगर जिले के शेरपुर में पुलिसवालों को बंधक बनाकर पिटाई करने और उनके वाहनों में आग लगाने की गंभीर घटना… सूबे में जंगलराज की पुष्टि कर रही हैं। पुलिसवालों को योगी अब भी चेतावनी दे रहे हैं। पर अंतर इतना है कि उसका कोई असर नजर नहीं आ रहा। एक तरह से उनका इकबाल भी चला गया है और हनक भी।

रिमोट कंट्रोल आरएसएस के पास!
लखनऊ के सियासी गलियारों में उड़ रही खबरों पर गौर करें तो इस सरकार का रिमोट कंट्रोल अब आरएसएस के हाथ में है। तबादलों में अधिकारियों की भूमिका भी तो नहीं दिख रही। हर अफसर यूपी भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल और आरएसएस के प्रचारकों की परिक्रमा में जुटा है। मेरिट और बेहतर प्रदर्शन कसौटी होती तो मेरठ के पुलिस कप्तान जे. रविन्द्र गौड़ का तबादला हो चुका होता। जो डेढ़ साल की अपनी तैनाती के दौरान थाने में बदनाम थानेदारों की तैनाती के लिए जाने गए। अब वे सुनील बंसल से अपना संबंध होने की दुहाई देकर भाजपा के विधायकों और सांसदों के मुंह पर ताला लटका चुके हैं।

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