Friday, March 29, 2024
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दलित बुजुर्ग का सवाल- गाय माता है तो मर जाने पर खुद क्यों नहीं उठाते?

SI News Today

एक साल पहले गुजरात के उना में कथित गौरक्षकों द्वारा दलितों की गई पिटाई के वीडियो ने पूरे देश को झकझोर दिया था। ये घटना न केवल उन दलितों बल्कि दलित राजनीति के जीवन में भी निर्णायक मोड़ साबित हुई। पिछले साल 11 जुलाई को वशराम सरवैया (26), रमेश सरवैया (23), उनके चचेरे भाई अशोक सरवैया (20) और उनके रिश्तेदार बेचर (30) की कथित गौरक्षकों ने निर्मम पिटाई की थी। ये सभी लोग गांव में एक मरी हुई गाय का चमड़ा उतार रहे थे। हमले की खबर मिलने पर रमेश और अशोक के पिता बालू सरवैया और मां कुंवर घटनास्थल पर दौड़कर पहुंचे। हमलावरों ने उनकी भी पिटाई की। कथित गौ रक्षकों ने इन लोगों के अलावा पड़ोस के गांव के देवशी बाबरिया और गाय के मालिक नाजा श्योरा की भी पिटाई की थी। बाद में वशराम, रमेश, अशोक और बेचर को एक एसयूवी कार में भरकर उना टाउन ले जाया गया और गाड़ी के पीछे बांधकर उनकी पिटाई की गई। जहां उन लोगों की पिटाई की गई वो उना पुलिस थाने से थोड़ी ही दूरी पर थी।

पिछले एक साल में बालू ने अपना कच्चा घर के सामने एक पक्का घर बनवा रहे हैं। बालू अपने घर पर 1.3 लाख रुपये खर्च कर चुके हैं। उन्हें उम्मीद है कि अंबेडकर आवास योजना के तहत उन्हें आर्थिक मदद मिल जाएगी तो वो अपना घर पूरा करवा सकेंगे। वशराम भी अंबेडकर आवास योजना के तहत मदद मिलने की उम्मीद पाले हुए हैं। उना हमले के बाद  सरकार ने गांव के 15 दलितों को घर के लिए जमीन दी थी। वशराम उसी जमीन पर मकान बनवाना चाहते हैं। वशराम ने इस साल मार्च में 12वीं की परीक्षा दोबारा दी। पिछले एक साल में सरकार ने दलित वास की गलियां पक्की करा दी हैं। वशराम ने सामाजिक विज्ञान, भूगोल और अंग्रेजी की परीक्षा दी थी जिसमें वो केवल भूगोल में पास हो पाए। वशराम कहते हैं, “मुझे उम्मीद है कि मैं ये परीक्षी पास कर लूंगा और चपरासी या किसी और सरकारी नौकरी के काबिल बन सकूंगा।” वशराम की पत्नी अभी भी करीब दो महीने पहले अपने नवजात बच्चे की मौत के सदमे में है।

बालू के बेटे रमेश और बेटी वनीता की पिछले एक साल में शादी हो गई। वनीता जामनगर के एक अस्पताल में नर्स हैं। रमेश ने हाल ही में एक एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे दलित शक्ति केंद्र में सिलाई का कोर्स पूरा किया है। वो आसपास के गांवों में जाकर दलितों के हालात पर रिपोर्ट भी बनाते रहे हैं। रमेश कहते हैं, “गांव-गांव जाकर दलितों के हालात पर रिपोर्ट बनाना भी मेरी ट्रेनिंग का हिस्सा है। मैं दलितों को कुछ ट्रेनिंग लेकर स्वरोजगार करने के लिए प्रेरित करता हूं।” अशोक सरवैया का परिवार अभी भी एक कमरे में रहता है जिसकी छतें टीन की हैं। पिछले एक साल में उनके घर में केवल दो नई चीजें आई हैं। एक, कबूतरों के लिए एक दड़बा और दो, बहन से मिला पुराना टीवी। उना हमले के बाद उनके पिता बीजल (48) को भी सरकार से जमीन मिली थी लेकिन उस पर घर बनाने का उनका अभी कोई इरादा नहीं है।

उना हमले का वीडियो वायरल होने के बाद गुजरात सरकार ने हर पीड़ित को चार-चार लाख रुपये की राहतराशि दी थी। बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) प्रमुख मायावती ने हर पीड़ित को दो-दो लाख रुपये और कांग्रेस ने पांच-पांच लाख रुपये देने की घोषणा की थी। वशराम कहते हैं कि हर पीड़ित को औसतन सात लाख रुपये मिले हैं और कांग्रेस से मिले पांच लाख रुपये को मुकदमे के खर्च के लिए अलग से रखा गया है। बालू सरवैया कहते हैं, “घटना के वीडियो ने हमें बचा लिया। अगर दुकानदारों और दूसरे लोगों ने वो वीडियो नहीं बनाया होता तो किसी को पता भी नहीं चलता कि हमारे साथ क्या हुआ।”

बालू स्वीकार करते हैं कि उना तालुका के दलित एक्टिविस्टों से उनके मतभेद हो गए हैं। बालू दावा करते हैं कई दशकों तक बीजेपी के साथ रहने के बाद अब वो बीएसपी के साथ हो गए हैं। उना कांड के बाद इन सभी दलितों ने गाय का चमड़ा उतारने का काम छोड़ दिया है। एक दलित बुजुर्ग सवाल पूछते हैं कि अगर गाय माता है तो मर जाने पर खुद क्यों नहीं उठाते?

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