लखनऊ: मौजूदा सीजन में गन्ने का रकबा 20 से बढ़कर 22 लाख हेक्टेयर हो गया। मिलों की स्थिति के मद्देनजर रकबे में यह वृद्धि आने वाले सत्र में पेराई और भुगतान दोनों लिहाज से सरकार के लिए चुनौती बनेगा। प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान ही भाजपा ने किसानों के हित को मुद्दा बनाया।
सरकार बनी तो वादे के अनुसार लघु-सीमांत किसानों का एक लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने के साथ अभियान चलाकर गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान किया। सौ दिनों में सरकार 22 हजार 682 करोड़ रुपये का भुगतान कराया। माना यही जा रहा है कि बढ़े रकबे के पीछे सरकार के इन सकारात्मक संकेतों की भी भूमिका है, पर यह बढ़ा रकबा सरकार के लिए चुनौती भी है।
खासकर पूर्वाचल में जहां अधिकांश चीनी मिलें या तो बंद हैं या फिर बदहाल। रकबे में यह वृद्धि भले इस साल हुई हो, पर इसकी शुरुआत पिछले साल ही हो गई थी। वह भी तब जब मिलों पर किसानों का करोड़ों रुपये का बकाया था और चीनी मिलें एक-एक कर दम तोड़ रही थीं। इन विपरीत परिस्थितियों में भी किसानों ने साबित कर दिया कि उनमें सूबे में ही नहीं पूरे देश में मिठास घोलने का माद्दा है।
पेराई के पिछले सत्र में तो यहां के किसानों ने रिकार्ड ही बना दिया। एक दशक बाद महाराष्ट्र को पछाड़ कर उत्तर प्रदेश चीनी उत्पादन में पहले नंबर पर आया था। उस सत्र में देश में चीनी का जितना उत्पादन हुआ है, उसमें उत्तर प्रदेश का योगदान करीब 40 फीसद का था। तभी से जानकार यह कहने लगे थे कि किसानों ने तो अपना दम दिखा दिया अब सरकार की बारी है।