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कोई बड़ी बात नहीं बता रहा, बस बचपन के कुछ वाकये हैं। तभी लगा था कि अंग्रेजी की तो रद्दी भी कीमती होती है। गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ते समय बच्चे अपनी कॉपी पर कवर चढ़ाने के लिए दुकान पर खड़े हो जाते थे। उस समय भी अंग्रेजी अखबार की मैगजीन का बेहद चिकन और अच्छा हुआ करता था। अखबार कितने का था तब पता नहीं पर दो किताब पर चढ़ने भर का वो पेज 25 पैसे का मिला करता था। जबकि उतने में हिंदी अखबार इतना मिल जाता था कि 10 किताब पर कवर हो जाये। इसलिए अंग्रेजी की कीमत का अंदाजा हुआ। थोड़ा बड़ा हुआ अपने बाग की देखभाल और आम तुड़वाकर मंडी भेजने का चस्का लगा। दूसरी बात तब पता चली। मंडी में आम लकड़ी की पेटी में भरकर ले जाते थे। उससे पहले उसके नीचे अखबार ही बिछाया जाता था। अच्छी पैकिंग वाली पेटी को मंडी में कुछ ज्यादा दाम मिल जाते थे। अच्छी पैकिंग की परिभाषा में अंग्रेजी अखबार का इस्तेमाल भी शामिल था।
बात इतनी सी ही है बस अब आप इसे अगर हर क्षेत्र में जोड़ते हैं तो ये आपकी तर्कक्षमता और काल्पनिकता होगी। क्योंकि सच तो उसमें भी काफी होगा। जोड़ने के लिए तो कुछ साथी देशी और अंग्रेजी का भी उदाहरण देंगे।