मूर्ति देखी है न। उसे हिलाने-डुलाने के लिए लोगों की जरूरत पड़ती है। खिसकाने के लिए ताकत लगती है। लेकिन अगर कोई इंसान मूर्ति जैसा हो जाए? सोचिए वह हिल न सके। ठीक से रोजमर्रा के काम न कर सके तो कैसी जिंदगी होगी।
ऐसी ही जिंदगी झेल रही हैं एशली कर्पाइल (33)। वह फायब्रोडीस्पलासिया ओसिफिकंस प्रोग्रेसिविया (fibrodysplasia ossificans progressiva) से पीड़ित हैं। वह अकेली नहीं हैं, जो इस बीमारी से जूझ रही हैं। दुनिया में तकरीबन 800 लोग इससे पीड़ित हैं। इस बीमारी में शरीर की मांसपेशियां धीमे-धीमे हड्डियों में तब्दील हो जाती हैं। इसी क्रम में यह बीमारी उनका दाहिना हाथ लील चुकी है। तस्वीरों में आप साफ देख सकते हैं कि उनका दाहिना हाथ नहीं है।
उन्होंने बताया कि जब मैं ढाई साल की थी तब डॉक्टरों ने कहा कि मुझे कैंसर है। वह उसे ठीक करने के प्रयास करने लगे। फिर उन्हें लगा कि यह ट्यूमर है। उन्होंने मेरे मां-बाप को बताया कि यह मुझमे फैल रहा है और उसे हटाना पड़ेगा।
पांच महीनों बाद डॉक्टरों ने बताया कि यह मिसडायग्नोसिस कैंसर था, जो कम ही लोगों को होता है। शारीरिक तौर पर धीमे-धीमे मैं मानव मूर्ति बनती जा रही हूं। 25 साल की हुईं, तो दाहिना पैर लगभग काम करना बंद हो चुका था। यह वह दौर था जब एशली नई तरह से जिंदगी से लड़ना सीख रही थीं।
यही नहीं, वह इंटरनेशनल फायब्रोडीस्पलासिया ओसिफिकंस प्रोग्रेसिविया एसोसिएशन (आईएफओपीए) के लिए साल भर में कई कार्यक्रमों में शिकरत करती हैं और उन बाकी लोगों से इस बारे में बात करती हैं।
कहती हैं कि मैं हर चीज को सकारात्मक नजरिए से देखती हूं। मैंने कठिन दौर देखा है। मुझे नहीं पता कि कल क्या होगा, इसलिए आज बेहतरी से जीती हूं।