Friday, April 19, 2024
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संविधान से अनुच्‍छेद 35A हटाने की बात पर भड़के उमर अब्‍दुल्‍ला…

SI News Today

जम्मू एवं कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोमवार को कहा कि अलगाववादी नेताओं को धारा 35ए के बारे में बात करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि वे भारत के संविधान में विश्वास नहीं रखते हैं। नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकारी अध्यक्ष ने यहां संवाददाताओं से कहा कि धारा 35ए को रद्द करने से सिर्फ कश्मीर घाटी ही नहीं, बल्कि जम्मू एवं लद्दाख इलाकों पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। उन्होंने कहा, “लोग सिर्फ घाटी में नौकरियों या छात्रवृत्ति से वंचित नहीं होंगे, बल्कि जम्मू एवं लद्दाख में भी होंगे।” उन्होंने कहा, “यदि धारा से छेड़छाड़ किया जाता है तो आप पाएंगे कि कार्यालयों में लोग आपकी भाषा को नहीं समझेंगे, क्योंकि बाहरी लोग इन नौकरियों को हासिल करेंगे।”

नेशनल कांफ्रेंस के नेता ने कहा कि यह एक मिथक है कि राज्य में धारा 370 व जम्मू एवं कश्मीर के विशेष दर्जे की वजह से निवेश नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा, “हमारा राज्य देश के सबसे उत्तरी भाग में स्थित एक छोटा राज्य है। जम्मू एवं कश्मीर के किसी उत्पादक के लिए अपने उत्पाद को चेन्नई में बेचना कठिन है। सच्चाई यह है कि निवेश इसलिए नहीं आ रहा क्योंकि यहां हालात ठीक नहीं हैं, धारा 35ए इसकी वहज नहीं है।”

यह पूछे जाने पर कि वह जम्मू एवं कश्मीर के लिए अलग दर्जे पर जोर देकर एक भारत एक देश के विचार का विरोध क्यों कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “हमने चार मामलों -मुद्रा, संचार, रक्षा व विदेश- पर भारतीय संघ को स्वीकार किया है।”

उन्होंने कहा, “इसका मतलब यह नहीं है कि वे एक भारत एक राष्ट्र के विचार का विरोध कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि यह दुष्प्रचार गलत है, जिसमें कहा जा रहा है कि राज्य की कोई महिला राज्य के बाहर शादी करती है तो इस धारा की वजह से वह राज्य में संपत्ति का अधिकार खो देगी।

वहीं उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को संकेत दिया कि अगर जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के विशेष अधिकारों से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 35ए को चुनौती देने वाली याचिका पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर सकती है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा तथा न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने सुनवाई के लिये आयी याचिका को पहले ही लंबित ऐसी ही एक अन्य याचिका के साथ संलग्न कर दिया जिस पर इस महीने के आखिर में तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ सुनवाई करेगी। पीठ ने कहा, ‘‘अगर इस विषय पर पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ से सुनवाई की आवश्यकता महसूस की गयी तो तीन न्यायाधीशों वाली पीठ इसे उसके पास भेज सकती है।’’

याचिका पर सुनवाई के दौरान जम्मू-कश्मीर सरकार के वकील ने कहा कि जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने 2002 में सुनाए गए अपने फैसले में अनुच्छेद 35ए के मुद्दे का प्रथम दृष्टया निपटान कर दिया था। उच्चतम न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 35ए तथा जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा छह (राज्य के स्थायी निवासियों से संबंधित) को चुनौती देने वाली चारू वली खन्ना की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। याचिका में संविधान के उन प्रावधानों को चुनौती दी गयी है जो राज्य के बाहर के व्यक्ति से शादी करने वाली महिला को संपत्ति के अधिकार से वंचित करता है। राज्य की इस तरह की महिला को संपत्ति के अधिकार से वंचित करने वाला प्रावधान उसके बेटे पर भी लागू होता है।

वकील बिमल रॉय जाड के जरिये दायर की गयी याचिका में चारू ने कहा है कि अगर कोई महिला जम्मू-कश्मीर के बाहर के व्यक्ति से शादी करती है तो वह संपत्ति के अधिकार के साथ ही राज्य में रोजगार के अवसरों से भी वंचित हो जाती है। जम्मू-कश्मीर के अस्थायी निवासी प्रमाणपत्र धारक लोकसभा चुनाव में तो मतदान कर सकते हैं परंतु वे राज्य के स्थानीय चुनावों में मतदान नहीं कर सकते।
दिल्ली स्थित एक गैर सरकारी संगठन ‘‘वी द सिटीजन्स’’ ने भी संविधान के अनुच्छेद 35ए को चुनौती दे रखी है जिसे प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने वृहद पीठ के पास भेज दिया था।

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