लखनऊ: फोरेंसिक साइंस लैब के निलंबित निदेशक डॉ. श्याम बिहारी उपाध्याय का विवादों से पुराना नाता रहा है। अधिकारियों से लेकर कोर्ट तक को भ्रमित करने के संगीन आरोप उन पर पहले भी लग चुके हैं। डॉ. उपाध्याय पर पटना (बिहार) में तो बिना उपकरण के डीएनए जांच कर उसकी रिपोर्ट देने का गंभीर मामला है। उन्होंने डीएनए टेस्ट की झूठी रिपोर्ट को तो पटना के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की कोर्ट में पेश कर दिया था।
पीईटीएन की झूठी रिपोर्ट देने के मामले में डॉ. उपाध्याय के खिलाफ जारी आरोपपत्र ने उनके कई झूठ के पुलिंदे खोले हैं। डॉ.उपाध्याय पटना स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला में फरवरी, 2008 अगस्त 2010 तक प्रभारी निदेशक के पद पर तैनात थे। आरोपपत्र में कहा गया है कि उन्होंने पटना में तैनाती के दौरान वर्ष 2007 में हुए गांधी मैदान थाना कांड (दहेज हत्या) के मामले में डीएनए जांच रिपोर्ट में खेल किया था।
दहेज हत्याकांड से संबंधित अभिलेख देखने पर सामने आया कि चार सितंबर 2008 को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, पटना को डॉ. उपाध्याय की ओर से भेजे गए प्रतिवेदन को इस प्रकार समर्पित किया गया, मानो डीएनए की जांच उन्होंने खुद अपनी प्रयोगशाला में की हो।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में डीएनए की जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला, पटना में कोई उपकरण स्थापित नहीं था। ऐसी स्थिति में यदि जांच का जिम्मा किसी थाने के द्वारा इस विधि विज्ञान प्रयोगशाला को दिया गया था, तो उसे किसी सक्षम विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा जाना चाहिए था लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। यहां के आरोपपत्र में इस तथ्य को शामिल किया गया है।
जमकर किरकिरी हुई थी सरकार की: इस प्रकरण ने सरकार की बहुत किरकिरी कराई थी, क्योंकि उपाध्याय की रिपोर्ट पर भरोसा करते हुए मुख्यमंत्री ने खुद सदन में बयान दिया था। इसके बाद विधानसभा की सुरक्षा के लिए भी एहतियातन कई कदम उठाए गए थे। यहां तक कि पूर्व विधायकों के प्रवेश पत्र तक निलंबित कर दिए गए थे। कई दिनों तक यह प्रकरण मीडिया में सुर्खियों में रहा था।
जो टीम ने कहा, वैसा परीक्षण कर दिया: आरोपपत्र में कहा गया है कि संदिग्ध पाउडर की जांच आगरा स्थित एफएसएल से न कराए जाने के बाबत जब डॉ. उपाध्याय से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि लखनऊ स्थित लैब में प्रारंभिक परीक्षण किया जा सकता है। इसके लिए कनिष्ठ प्रयोगशाला सहायक श्यामसुंदर को एक्सप्लोसिव के परीक्षण में दक्ष कराया गया है। जबकि श्यामसुंदर ने अपने बयान में कहा कि रसायन टीम के सदस्यों ने जो निर्देश दिए उन्होंने उसके अनुरूप परीक्षण कार्य किया गया।
अधीनस्थों को पहुंचाया आर्थिक लाभ: फोरेंसिक साइंस लैब में 18 जुलाई को तत्कालीन वैज्ञानिक अधिकारी महेश नरायण व श्याम सहाय शुक्ला को सहायक निदेशक पद पर पदोन्नति मिली। आरोप है कि दो अगस्त को दोनों अधिकारियों को समयमान वेतनमान स्वीकृत करते हुए लाखों रुपये के अवशेष वेतन आदि का भुगतान बिना शासन की अनुमति के कर दिया गया। डॉ.उपाध्याय पर पटना स्थित विधि विज्ञान प्रयोगशाला के प्रभारी रहने के दौरान आर्थिक अनियमितता के गंभीर आरोप लगे हैं।