म्यांमार दौरे के आखिरी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रंगून में आखिर मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर भी पहुंचे। यहां उन्होंने मुगल बादशाह जफर को श्रद्धांजलि दी। हालांकि कथित तौर पर मुगलों के इतिहास को मिटाने वाली सरकार में प्रधानमंत्री द्वारा किसी मुगल बादशाह की मजार पर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि देना पहली नजर में बहुत चौंकाने वाला लगता है। क्योंकि भाजपा और आरएसएस की मुगलों की प्रति नफरत किसी से छिपी नहीं है। दोनों ही मुगलों की प्रति अपनी नफरत खुलकर जाहिर करते रहे हैं। ऐसे में पीएम मोदी ने बहादुर शाह जफर की मजार पर जाकर सबको चौंका दिया है।
सामने आईं तस्वीरों में पीएम मोदी को मजार पर इत्र छिड़कते और फूल चढ़ाते हुए देखा गया। इससे अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या वो वहीं मोदी हैं जिनके प्रधानमंत्री रहते भाजपा शासित राज्य सरकारें किताबों से मुगलों के इतिहास को गायब कर रही हैं या उसे बदल रही हैं। पीएम मोदी के ही शासनकाल में दिल्ली स्थित औरंगजेब सड़क का नाम बदल दिया। हालांकि इन बातों का जवाब तो समय आने पर ही मिलेगा। दूसरी तरफ अब सवाल ये हैं कि पीएम मोदी द्वारा किसी मुगल बादशाह की मजार पर जाने के बाद क्या भाजपा नेताओं, राज्य सरकारों और आरएसएस का नजिरया मुगलों के प्रति बदलेगा?
जानकारी के लिए बता दें कि भाजपा शासित राजस्थान में मुगलों को इतिहास को बदला गया। जहां वसुंधरा राजे ने सत्ता में आते ही सबसे ‘अकबर महान’ नाम के चैप्टर को हटाया। इसपर सरकार का तर्क था कि अकबर महान क्यों हैं? और महाराणा प्रताप महान क्यों नहीं हैं। बाद में सरकार ने हल्दी घाटी के इतिहास को भी बदल दिया। भाजपा के नए इतिहास के अनुसार हल्दी घाटी युद्ध में महाराणा प्रताप ने विजय हासिल की थी जबकि अकबर की सेना डरकर भाग गई थी। हालांकि इससे पहले किताबों में पढ़ाया जाता था कि हल्दी घाटी की लड़ाई में ना महाराणा जीते था और ना ही अकबर। लिखे गए नए इतिहास के अनुसार महाराणा प्रताप अपनी जन्मभूमि की रक्षा के लिए लड़े थे। उनकी सेना ने अकबर की सेना को धूल चटा दी थी और मैदान से भागने पर मजबूर कर दिया था।
दूसरी तरफ महाष्ट्र शिक्षा बोर्ड ने भी इतिहास की किताबों से मुगलों के इतिहास को गायब कर दिया है। राज्य के शिक्षा विभाग ने पूरे पाठ्यक्रम से मुस्लिम शासकों के इतिहास से हटा दिया है। अब नए इतिहास में मुगलों का कहीं पर जिक्र नहीं है। इन किताबों में यहां तक नहीं बताया कि ताजमहल, लालकिला और कुतुब मीनार जैसी ऐतिहासिक इमारतों को किसने बनवाया। हां, इन किताबों में बोफोर्स घोटाले और साल 1975 के आपातकाल का जिक्र विस्तार से किया गया है।
साल 1857 में आजादी की लड़ाई के दौरान बहादुर शाह जफर ने आंदोलन की अगुवाई की थी। बाद में ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को क्रूरता से कुचल मुगल बादशाह को साल 1858 में म्यांमार भेज दिया था। सात नवंबर साल 1862 में उनका निधन हो गया। बाद में उनकी मजार बना दी गई और लोगों ने उन्हें संत की उपाधि दी।