जितनी बड़ी दुनिया, उतने ही तौर-तरीके और रिवाज। चाहे जीने को लेकर हों या फिर मरने को। चीन भी आज से 400 साल पहले लोगों के अंतिम संस्कार की अनोखी प्रथा थी। लाश जलाई या दफ्नाई नहीं जाती थी। बल्कि ऊंची चट्टान पर ताबूत में बंद कर लटका दी जाती थी। जिस समुदाय में यह प्रथा आम थी, उसके गायब हो जाने के बाद से इस प्रथा का नामोनिशां मिट गया है। लेकिन यहां की चट्टानों पर अभी भी 400 साल पुराने ताबूत लटके हुए हैं। आइए जानते हैं इनके पीछे का रहस्य क्या है।
दक्षिणी चीन में सिचुआन (Sichuan) नाम का प्रांत हैं। यहां गोंग्जियान (Gongxian) में पहाड़ी चट्टानों पर 400 साल पुराने ताबूत लटके हैं। लकड़ी के पटरों के सहारे इन्हें चट्टानों पर लटकाया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक, इन्हें यहां बो ( Bo) समुदाय के लोग लटकाते थे। विशेषज्ञों का कहना है कि लोग यहां लाशें इसलिए लटकाते थे, जिससे मरने के बाद वे ईश्वर के संपर्क में रहें। बाकी लोगों का मानना है कि इस तरीके से लाशों को जानवरों से दूर रखा जा सकता है।
स्थानीय लोगों की मानें, तो यहां कुछ ताबूत तीन हजार साल और उससे भी पुराने हैं। किसी को नहीं पता कि वे लोग इन लाशों को यूं ताबूतों में क्यों लटका कर छोड़ गए। ऐसा माना गया कि ईश्वर वहां आसानी से पहुंच सकेगा, इसलिए उन्हें वहां लटकाया गया। ऐसा करने के पीछे मुख्य उद्देश्य पुरखों के अवशेषों को सहेज कर रखना होता है। पीछले दो महीनों में 40 ताबूत रीस्टोर किए गए और 16 को खोला गया था।
लोगों के मुताबित, यह बतलाता है कि हमारे पुरखों ने कैसे अपनों का अंतिम संस्कार किया था और किस तरह की हमारी परंपराएं थीं। आज भी इस इलाके में सैकड़ों ताबूत लटके देखने को मिल जाएंगे। ये जमीन से 10 मीटर की ऊंचाई से लेकर 130 मीटर की ऊंचाई तक होंगे। हालांकि उन्हें रीस्टोर करना बेहद कठिन होता है, लेकिन यह करना जरूरी होता है। पिछले 10 सालों में लगभग 20 ताबूत गिर चुके हैं, जिसे यह लोग सहेज कर रखना चाहते हैं।
बो समुदाय के लोग सिचुआन और युन्नान प्रांत से सटी सीमाओं के आसपास रहते थे। सबसे आखिर में जो ताबूत यहां टांगे गए, वे आज से 400 साल पहले के बताए जाते हैं। सबसे पहले लटकता हुआ ताबूत स्प्रिंग और ऑटम पीरियड में (770 बीसी-476 बीसी में) थ्री गॉर्ज्स इलाके में मिला था। दक्षिण पश्चिमी चीन में यह अंतिम संस्कार की खासा प्रचलित प्रथा रही है। हालांकि, बो समुदाय के लोगों के अचानक गायब हो जाने के बाद से यह प्रथा समाप्त हो चुकी है।