श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुका है, इस बार इसकी अवधि 20 अक्टूबर तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष को ही श्राद्ध पक्ष कहा जाता है, इस दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने संतानों के पास आते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार श्राद्ध पक्ष यानि पितृ पक्ष के दिनों में कोई भी शुभ कार्य करना अनुचित माना गया है क्योंकि उन वस्तुओं में प्रेत का अंश होता है। ऐसी मान्यता है कि अगर कोई भी शुभ कार्य इस अवधि में किया जाता है तो इस कार्य में कोई सुख नहीं मिलता है बल्कि दुखों का भोग करना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान खरीदी हुई कोई भी चीज पितरों को समर्पित होती है अगर उसका इस्तेमाल कर लिया जाए तो पितर नाराज हो जाते हैं और व्यक्ति को अशुभ घटनाओं का सामना करना पड़ता है। लोगों में ये धारणाएं बनी हुई है कि ये समय अशुभ समय होता है। इसलिए वो इस दौरान ना ही कोई शुभ कार्य करते हैं और ना ही किसी तरह की कोई वस्तु खरीदते हैं।
श्राद्ध को अशुभ समय माना जाता है लेकिन शास्त्रों में देखा जाए तो ऐसा कहीं नहीं लिखा है कि श्राद्ध पक्ष में कोई शुभ कार्य या खरीददारी नहीं करनी चाहिए। श्राद्ध पक्ष को कहीं से भी अशुभ मानना उचित नहीं होता है क्योंकि श्राद्ध पक्ष गणेश चतुर्थी के बाद और नवरात्रों से पहले आता है। ऐसा शास्त्रों में लिखित है कि किसी भी शुभ काम को शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। अगर इस दृष्टि से देखा जाए तो श्राद्ध पक्ष अशुभ नहीं होते होते हैं। श्राद्ध में पितर धरती पर आते हैं और देखते हैं कि उनकी संतान किस स्थिति में है। अगर संतान नई चीज खरीदती और इस्तेमाल करती है तो पितरों को खुशी होती है।
कई पंडितों और ज्योतिष अपनी बात पर अडिग रहते हुए यही कहते हैं कि पितृ पक्ष में किसी भी तरह की नई चीज की खरीदारी और उसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ये इसलिए मना किया जाता है कि व्यक्ति का सारा ध्यान अपनी नई वस्तु के भोग में लग जाता है जिससे वो पितरों की सेवा नहीं करता है और पितृ निराश होकर वापस चले जाते हैं तो कई तरह के अशुभ घटनाएं घटित होती हैं। इसी बात का डर लोगों में बैठ जाता है और वो नई चीजों का इस्तेमाल नहीं करते हैं। अगर अपनी खुशियों के साथ पितरों का भी ध्यान रखेंगे तो अवश्य ही आपके घर में खुशियों का वास होगा और साथ ही पितरों का आशीर्वाद भी हमेशा आप पर बना रहेगा।