Friday, March 29, 2024
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क्या भगवान शिव और गौतम बुद्ध एक ही थे? पालि ग्रंथ में मिलते हैं तथ्य….

SI News Today

महादेव यानि देवों के देव हैं भगवान शिव, इन्हें महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म के प्रमुख देवता हैं भगवान शिव। इनकी पत्नी मां पार्वती हैं जिन्होनें दुर्गा का रुप लेकर कई राक्षसों का वध किया है। भगवान शिव से ही साधना और उपासना की उत्पत्ति होती है। इसी तरह गौतम बुद्ध विश्व के प्राचीनतम धर्मो में से एक बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। उन्होंने भी कई वर्षो की कठिन साधना के बाद ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बन गए। भगवान बुद्ध बौद्ध धर्म के अनुयायी थे और भगवान शिव हिंदू धर्म के पहले, अंतिम और मध्य ही नहीं उसके सब कुछ हैं। ऐसा कई जगह सुनने में आया है और इस विषय पर रिसर्च भी सामने आया है कि भगवान शिव और गौतम बुद्ध एक ही थे। ऐसी एक और मान्यता है की बौद्ध धर्म के 27 बुद्धों में से पहले भगवान शिव थे और अंतिम सिद्धार्थ थे। लेकिन एक प्रोफेसर ने साबित किया है भगवान शिव और बौद्ध एक ही रहे हैं।

पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया गया कि इनमें बुद्ध के तीन नाम अति प्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर। अन्य 24 बुद्धों के संबन्ध में अनेक विस्तृत चर्चा का उल्लेख मिलता है। 24वें बुद्ध सिद्धार्थ गौतम का वर्णन सबसे ज्यादा मिलता है। मनुष्य दस गुणों से संपन्न होता है, जो अन्य जीवों में विद्यमान नहीं हैं। ये गुण हैं- दान, शील, वीर्य, नैष्क्रम्य, अधिष्ठान, ध्यान, सत्य, मैत्री, समता भाव और प्रज्ञा। जो इन गुणों की पराकाष्ठा को पार कर लेता है, ऐसे व्यक्तित्व को शास्त्रीय शैली में ‘बुद्ध’ कहा जाता है। प्रत्येक मनुष्य में ‘बुद्ध बीज’ है, लेकिन जिन्होंने दस पारमिताओं को प्राप्त किया हो, वही ‘बुद्धत्व’ को प्राप्त कर सकता है। शणंकर अर्थात शंकर भी बौद्ध परंपरा में एक ‘बुद्ध’ थे, जिन्होंने दसों पारमिताएं प्राप्त की थीं और शंकर सिद्धार्थ गौतम के अतिरिक्त ऐसे बुद्ध हैं, जिनका ज्ञान और प्रभाव आधुनिक भारत के लोगों में देखने को मिलता है।

शंकर के जो अन्य नाम हैं, वे भी उनके ‘बुद्ध’ होने की ओर संकेत करते हैं। शंकर को मृत्युंजय महादेव कहा जाता है। अर्थात जिसने मृत्यु को ‘जीतकर’ ‘अर्हत्व’ प्राप्त कर लिया हो, इसलिए उन्हें जो हर-हर महादेव कहा जाता है, वह मूलतः अर्हत्व का ही द्योतक है। बौद्ध शास्त्रों में ऐसी परंपरा है कि ‘मार विजय’ होने पर ही संबोधि प्राप्त होती है। सिद्धार्थ गौतम ने बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे वैशाख पूर्णिमा को ‘मार विजय’ प्राप्त की थी और ‘बुद्ध’ कहलाए। इसी प्रकार शंकर को मारकण्डेय महादेव कहा जाता है। अर्थात जिसके जीवन में ‘मारकाण्ड’ संबद्ध है। शंकर को स्वयंभू नाथ (शम्भुनाथ) भी कहा जाता है।

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