Friday, April 19, 2024
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कुंवारी कन्याएं रखना चाहती हैं करवाचौथ का व्रत तो ये विधि करती है प्रार्थना सफल…

SI News Today

करवाचौथ का पर्व हिंदू पंचार के अनुसार कार्तिक माह के चौथे दिन होता है। इस वर्ष करवाचौथ 8 अक्टूबर रविवार को है। पौराणिक परंपराओं के अनुसार इस दिन शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत करती हैं। इस व्रत में बिना पानी और बिना अन्न का दाना लिए हुए रहना होता है। इस एकदिवसीय व्रत की अवधि सुबह सूरज उगने से पहले से लेकर शाम चंद्रमा की पूजा करने के पश्चात तक रहती है। कई बार कुछ महिलाएं इसे अर्ध रात्रि तक भी करती हैं। ये त्योहार अधिकतर उत्तरी भारत के राज्यों में मनाया जाता है। हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, पंजाब, राज्यस्थान और उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सिर्फ पति की लंबी आयु की ही नहीं उसके काम-धंधे, धन आदि इच्छाओं की पूर्ति की प्रार्थना करती हैं। करवाचौथ की शुरुआत किसी एक कथा के कारण नहीं हुई थी इसलिए इस त्योहार की बहुत अधिक महत्वता है। इस दिन के लिए कई सारी कथाओं का प्रचलन है।

पहले ये त्योहार सिर्फ उत्तर भारत के कुछ राज्यों तक ही सीमित था लेकिन फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों ने हर त्योहार को ग्लोबल बना दिया है। ये व्रत शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करती थीं लेकिन आज कुंवारी कन्याओं में भी इस व्रत को करने के प्रति इच्छा देखी गयी है वो भी चाहती हैं कि उनके होने वाले पति की सलामती की प्रार्थना वो करें और जिनसे उनका विवाह होने वाला है उनके साथ उनका रिश्ता गहरा होता जाए। अगर आप भी कुंवारी हैं और करवाचौथ का व्रत करने जा रही हैं तो इस दिन सिर्फ चंद्रमा की पूजा नहीं की जाती है भगवान शिव और माता पार्वती की अराधना करके होने वाले जीवनसाथी की लंबी उम्र की प्रार्थना कर सकती हैं। साथ ही इस कथा का पाठ करना आपके लिए शुभ हो सकता है।

कुंवारी कन्याओं के लिए करवाचौथ व्रत कथा-
व्रत के दौरान कथा सुनने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है। कथा सुनते समय एक तांबे के लोटे में पानी लें अब हाथ में कुछ दाने गेहूं के लेकर कथा सुनें। और कथा सुनते समय बीच -बीच में गेहूं के दानों को लोटे में डालते रहें। एक नगर में साहूकार रहता था उसके सात लड़के और एक लड़की थी। कार्तिक महीने में जब कृष्ण पक्ष की चतुर्थी आयी तो साहूकार के परिवार की महिलाओं ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। जब रात के समय साहूकार के लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने साहूकार की बेटी को भी भोजन करने के लिए कहा। ये सुनकर बहन ने अपने भाइयो को कहा कि आज मेरा उपवास है। मैं चांद के निकलने पर पूजा विधि सम्पन्न करके ही भोजन करुंगी। भाइयों से अपनी बहन का मुर्झाया हुआ चेहरा देखा नहीं गया।

उन्होंने घर से बाहर जाकर अग्नि जला दी उस अग्नि का प्रकाश अपनी बहन को दिखाते हुए कहने लगे कि देखो बहन चांद निकल आया है। तुम चांद को अर्ध्य देकर अपनी पूजा करके भोजन ग्रहण कर लो। चांद निकलने की बात सुनकर बहन ने अपनी भाभियो से कहा कि भाभी चांद निकल आया है चलो पूजा कर लें। उसकी भाभी अपने पतियों द्वारा की गयी युक्ति को जानती थी। उन्होंने अपनी ननद को भी इस बारे में बताया लेकिन बहन ने भाभियों की बात पर न ध्यान देते हुए पूजा संपन्न कर भोजन ग्रहण कर लिया इस प्रकार उसका व्रत टूट गया और गणेश जी उससे नाराज हो गए।

इसके तुरंत बाद उसका पति बीमार हो गया और घर का सारा धन उसकी बीमारी में खर्च हो गया। जब साहूकार की बेटी को उसके द्वारा किये गलत व्रत का पता चला तो उसे बहोत दुःख हुआ। फिर उसने पुनः पूरी विधि विधान से व्रत का पूजन किया और गणेश जी की आराधना की। अब उसके किये हुए व्रत से गणेश जी प्रसन्न हो गए। अब गणेश जी ने उसके पति को जीवन दान किया और उसके परिवार को सम्पति प्रदान की। इस प्रकार जो भी श्रद्धा भगति से करवा चौथ व्रत को करता है वह प्रसन्नता पूर्वक अपना जीवन यापन करता है।

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