लखनऊ: आरुषि-हेमराज हत्याकांड में हाई कोर्ट से गुरुवार को बरी होने के बाद भी डासना जेल में बंद डॉ. राजेश तलवार व उनकी पत्नी डॉ. नूपुर तलवार जेल से रिहा नहीं हो सके। यह जानकारी तलवार दंपती के वकील तनवीर मीर अहमद ने दी है।
उल्लेखनीय है कि तलवार दंपती को कल हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया था। अभी जेल प्रशासन को इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश की सर्टीफाइट कॉपी नहीं मिली है। हलांकि उनकी रिहाई 16 अक्टूबर को हो सकेगी। आज सीबीआइ अदालत में हाई कोर्ट के आदेश की सत्यापित कॉपी नहीं आ सकी। माह का दूसरा शनिवार होने के चलते शनिवार और रविवार छुट्टी रहेगी। ऐसे में तलवार दंपती को बरी करने के आदेश की सत्यापित कॉपी सोमवार को मिलने के बाद ही रिहाई का आदेश जारी हो सकेगा।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में धारा 437 (ए) का क्लॉज लगाया है। इसके तहत तलवार दंपती को सीबीआइ स्पेशल कोर्ट में बेल बांड भरना होगा और तलवार दंपती पूरी तरह बरी हो जाएंगे। तलवार दंपती को एक एक लाख रुपये और दो-दो जमानतदार पेश करने पड़ेंगे। सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही सीबीआइ कोर्ट दोनों को रिहाई आदेश जारी करेगा।
कल हत्या के आरोप से बरी होने के बाद डासना जेल में बंद डॉ. राजेश तलवार व उनकी पत्नी डॉ. नूपुर तलवार भावुक हो उठे थे। बेटी को खोने का गम और इंसाफ मिलने के भाव चेहरे पर दिखने के साथ आंखें भी छलक उठीं थीं। जेल अधीक्षक दधिराम मौर्य ने का कहना है कि जेल प्रशासन ने भी तलवार दंपती को बरी होने की सूचना दे दी है। कल इस सूचना पर उन दोनों की आंखें छलक पड़ीं था। डॉ. राजेश तलवार ने फैसले के बाद कहा कि कानून पर उन्हें हमेशा से भरोसा था। उन्हें इंसाफ मिल गया। जेल प्रशासन का कहना है कि बरी होने की प्रमाणित प्रति और सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें रिहा किया जाएगा।
सीबीआइ कोर्ट से हाईर्कोर्ट तक तलवार दंपती
25 नवंबर 2013 में तलवार दंपती को गाजिय़ाबाद सीबीआइ कोर्ट ने दोषी मान उम्रकैद की सजा सुनाई।
जनवरी 2014 में तलवार दंपती ने लोअर कोर्ट के फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी।
11 जनवरी 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलवार की अपील पर फैसला सुरक्षित किया।
01 अगस्त 2017 में हाईकोर्ट ने सीबीआइ के दावों में विरोधाभास पाया और अपील दुबारा सुनी
08 सितंबर 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरुषि हत्याकांड में फैसला सुरक्षित किया।
12 अक्टूबर 2017 को हाईकोर्ट ने तलवार दंपती को हत्या के आरोप से बरी कर दिया
क्या है धारा 437 (ए)
धारा 437 (ए) के मुताबिक जब कोई व्यक्ति दोषमुक्त होता है तो एक निश्चित समयावधि में ऊपरी अदालत में अपील होने तक जमानत देनी होती है, क्योंकि ऊपरी अदालत में कोई अपील होने पर अगर संबंधित शख्स के कोर्ट में उपस्थित होने की जरूरत पड़ती है, तो उसे उपस्थित होना पड़ता है।