Friday, March 29, 2024
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किस विधि से किया जाता है कार्तिक पूर्णिमा का व्रत, जानिए…

SI News Today

Kartik Purnima 2017 Vrat Vidhi: हिंदू पंचाग के अनुसार दिवाली से ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली आती है। इस पर्व के लिए मान्यता है कि इस दिन इतनी रौशनी की जाती है जिससे विश्व फैला हर तरह का अंधकार मिट जाए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा स्नान का महत्व माना जाता है। गंगा पूजा के साथ शाम के समय दीप जलाए जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था और तीनों लोकों को असुरों के प्रकोप से बचाया था। इस दिन के लिए ये भी मान्यता है कि सभी देव काशी आकर गंगा माता का पूजन करके दिवाली मनाते हैं। इस दिन अधिकतर स्त्रियां करती हैं और घर की शांति आदि के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना करती हैं। इस वर्ष कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 3 नवंबर दोपहर एक बजे से शुरु होकर 4 नवंबर की सुबह 10 बजे तक है।

नारद पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान करके विधि के साथ कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए। इस दिन शाम के समय दीपदान करने से संसार के दुखों और परेशानियों से छुटकारा मिलता है।कार्तिक पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान करके पूरे दिन व्रत किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की अराधना की जाती है। कई लोग इस दिन गंगा स्नान भी करते हैं, गंगा स्नान का कार्तिक माह में महत्व माना जाता है। भगवान शंकर का पूजन किया जाता है। ब्राह्मणों इस दिन भोजन करवाना शुभ माना जाता है। इस दिन भोजन से पहले हवन करवाना शुभ माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन रात्रि में चन्द्रमा के दर्शन करने पर शिवा, प्रीति, संभूति, अनुसूया, क्षमा तथा सन्तति इन छहों कृत्तिकाओं का पूजन करना चाहिए| पूजन तथा व्रत के उपरान्त बैल दान से व्यक्ति को शिवलोक प्राप्त होता है, जो लोग इस दिन गंगा तथा अन्य पवित्र स्थानों पर श्रद्धा-भक्ति से स्नान करते हैं, वह भाग्यशाली होते हैं।

इस दिन के लिए मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मछली के रुप में यानि अपना पहला अवतार मत्सय के रुप में लिया था। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान होता है। इसके साथ ही मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने तीनों लोकों में आतंक मचाने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इसी विजय का उत्सव मनाने के लिए सभी देवता धरती पर आते हैं और दिवाली मनाते हैं। इस दिन माता गंगा की पूजा भी की जाती है और माता को साल भर हमें पौषित रखने के लिए शुक्रिया किया जाता है।

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