गुजरात में विभिन्न समुदायों से युवा नेताओं के उभार से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के माथे पर चिंता की लकीरे आने लगी हैं। आरएसएस ने हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवानी और अल्पेश ठाकोर जैसे नेताओं का का प्रभाव कम करने के लिए अपने 12 विभागों को मतदाताओं को समझाने का जिम्मा सौंपा है। आरएसएस के सूत्रों के अनुसार संगठन के कार्यकर्ता आम मतदाताओं खासकर युवाओं से एक-एक कर मिलेंगे और उन्हें बीजेपी का समर्थन करने को लेकर समझाएंगे। आरएसएस ने इस काम के लिए 15 सदस्यों वाली एक समिति बनायी है जो इस “सामाजिक सद्भाव” अभियान का संचालन करेगी। आरएसएस के एक नेता के अनुसार 176 तहसीलों में करीब 1400 सामाजिक सद्भाव कार्यकर्ता मौजूद हैं।
इस अभियानन में सामाजिक सद्भाव कार्यकर्ताओं की मदद करेंगे प्रचारक जिन्हें “सामाजिक नेतृत्वकर्ता” नाम दिया गया है। आरएसएस से जुड़े कई स्वयंसेवक और प्रचारक सोशल मीडिया पर अपने निजी अकाउंट से “एकता और राष्ट्रवाद” का संदेश लोगों तक पहुंचाएंगे। आरएसएस अपने स्वयंसेवकों और प्रचारकों के लिए एक विशेष बैठक का भी आयोजन कर रहा है जिसमें गुजरात की वर्तमान राजनीतिक स्थिति की चर्चा की जाएगी। आरएसएस का हर नेता उस दिए गये इलाके में हर घर में जाकर लोगों से मिलेगा और हिंदू समाज के लोगों से चर्चा करेगा। आरएसएस इस अभियान के लिए एक व्हाट्सऐप ग्रुप और ‘संदर्भ’ नाम की ब्रॉडकॉस्ट लिस्ट भी बना रहा है। आरएसएस के सूत्रों के अनुसार इन व्हाट्सऐप ग्रुप इत्यादि मकसद “मतदाताओं की सोच के लिए प्रेरित करना” है।
आरएसएस (पश्चिमी प्रांत) के सचिव सुनील मेहता ने बताया कि संगठन का मकसद जाति के आधार पर हो रहे हिंदू समाज के विभाजन को रोकना है। मेहता ने कहा, “जहां भी संघ के प्रचारक हैं वो लोगों को समझाएंगे कि जाति के आधार पर नहीं बंटे। चुनाव के समय जातिगत राजनीति होना स्वाभाविक है। पढ़े लिखे युवाओं और वोटरों का प्रभाव बढ़ने से ऐसे नेताओं का असर कम हो रहा है। पहले लोग आसानी से इसके शिकार हो जाते थे। संघ राजनीतिक अभियानों में सीधे-सीधे नहीं शामिल होता लेकिन हम लोगों से मिलकर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते हैं। वो समझते हैं कि हम समाज को एकजुट रखना चाहते हैं।”
साल 2014 के लोक सभा चुनाव में आरएसएस ने प्रधानमंत्री पद के बीजेपी के उम्मीदवार के समर्थन में करीब 500 स्वयंसेवकों को गुजरात के घर-घर जाकर वोट देने के लिए अपील की थी। ये कार्यकर्ता लोगों से कहते थे कि वो “राष्ट्रवादी” नेताओं को बढ़ावा देने की आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की “सलाह पर अमल” कर रहे हैं। आरएसएस नेताओं के अनुसार इस बार के गुजरात चुनाव कोई अपवाद नहीं हैं, उनका संगठन पहले भी ऐसा करता रहा है।