Sunday, March 24, 2024
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जब अंग्रेज टीचर की सुभाष चंद्र बोस ने की थी जम कर धुनाई….

SI News Today

दिल्ली: सुभाष चंद्र बोस की जिंदगी पर आधारित वेब सीरिज बोस: डेड/ अलाइव पिछले काफी वक्त से सुर्खियों में है. इस सीरिज में राजकुमार राव और पत्रलेखा ने मुख्य किरदार निभाए हैं. इस सीरिज को ऑल्ट बालाजी पर दिखाया जा रहा है. सीरीज 20 नवंबर से शुरू की जा चुकी है. इस सीरीज की कहानी पूरी तरह सुभाष चंद्र बोस पर ही आधारित है. इसमें उनकी जिंदगी से जुड़े हर पहलु को दिखाया गया है. अब तक इस सीरीज के 2 एपिसोड प्रसारित किए जा चुके हैं. इन दो एपिसोड में क्या दिखाया गया है वो आप नीचे पढ़ सकते हैं.

पहले एपिसोड की शुरुआत होती है ब्लैंक स्क्रीन और एक आवाज के साथ. 18 अगस्त 1945 ताइवान की बात है. चिता जल रही है. कुछ बौद्ध लोग हाथ जोड़े अपनी भाषा में किसी की आत्मा की शांति की कामना कर रहे हैं. यह किसकी मौत का मातम था पता नहीं, पर पीछे से एक आवाज जरूर गूंज रही थी. हर कहानी जो शुरू होती है उसका अंत निश्चित है. जैसे आदमी के पैदा होने पर उसका अंत निश्चित है. वहीं दूसरी ओर एक कमरे में बैठी अंग्रेज लड़की कुछ लिख थी कि, तभी रेडियो में एक खबर को सुनकर उसके पैरों तले जमीन खिसक जाती है. चारों ओर सन्नाटा छा जाता है. सुनाई देता है फ्रीडम फाइटर सुभाषचंद्र बोस की एक प्लेन क्रैश मौत हो गई.

सुभाष की मौत की खबर से उनके घर में मातम का माहौल है. फोटो पर फूलों का हार लटका हुआ है लेकिन, तभी एक टेलिग्राम के माध्यम से महात्मा गांधी का संदेश आता है सुभाष का श्राद्ध मत करना. सुभाष की मां के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है. होंठ बुदबुदा उठते हैं ‘सुभाष जिंदा है’. सबके चेहरे खिल जाते हैं. लेकिन क्या था उनकी मौत का रहस्य ये अभी भी बरकरार था. खैर, कहानी आगे बढ़ती है. नेता जी के बचपन के दोस्त हेमंत सरकार एक पुलिस अधिकारी के साथ चर्चा में बताते हैं कि उसका (सुभाष) एक ही सपना है, अंग्रेजों और उसकी सरकार को लात मारकर हमारे देश से निकालना. जिससे हम सब एक आजाद हिदुंस्तान में सांस ले सके और आपको क्या लगता है सुभाष पहली बार गायब हुआ है. वह बचपन में भी कई बार स्कूल से भाग जाते थे और इस वजह से घरवालों से डांट भी खाते थे.

वह अपने देश को आजाद देखना चाहते थे. आजाद हवा में सांस लेना चाहते थे. सुभाष ने बचपन में ही तय कर लिया था उन्हें किसी जानवर या भेड़ बकरी की तरह नहीं जीना है. वह घर से भाग जाते हैं और इस बात को सात महीने बीत जाते हैं. उनका कोई अता-पता नहीं रहता, लेकिन फिर वे एक वापस घर लौट आते हैं. अपनी मर्जी से. सुभाष के बचपन के दोस्त बताते हैं जब एक बच्चा सात महीने के लिए अपने घर से भाग सकता है तो वह अंग्रेजों को धोखा देकर क्यों नहीं भाग सकता. बोस जिंदा है और वो जरूर वापस आएगा.

अंग्रेजों के लिए भी इस बात का पचा पाना मुश्किल हो जाता है कि सुभाष इतनी जल्दी मर नहीं सकते. अगर नेताजी मरे नहीं. जिंदा हैं, तो हैं कहां? यह सवाल सबको परेशान कर रहा था. अंग्रेज अपने आदमियों से जेल में जासूसी करवाने लगे कि कैसे भी करके उनके बारे में कुछ जानकारी हासिल कर लें. लेकिन कुछ पता नहीं चल पाता.

जब अपने अंग्रेज प्रोफेसर की बोस ने की थी धुनाई
इसी एपीसोड का एक मजेदार किस्सा है. कॉलेज में परीक्षा चल रही है. एक लड़के के पास एक कागज का टुकड़ पड़ा हुआ मिलता है. प्रोफेसर को लगता है वो लड़का वो नकल कर रहा है. अंग्रेज उसे डांटने लगता है लेकिन लड़का अपनी सफाई में कहता है उस कागज के टुकड़े पर बस गायत्री मंत्र लिखा हुआ है वो नकल नहीं कर रहा है. इस पर अंग्रेज प्रोफेसर और नाराज हो जाता है और क्लास में उपस्थित सभी लड़कों से अपने हाथ से लाल धागे भी उतारने को कहता है. प्रोफेसर इसे भारतीयों की दकियानूस सोच बताता है. लेकिन सुभाष को ये नागवार गुजरता है. वे अपनी सीट से उठते हैं और प्रोफेसर को बोलते हैं

अगर मैं आपके पद का ख्याल न करूं तो वो कर सकता हूं जो मैं करना चाहता हूं. अंग्रेज समझ नहीं पाता. सुभाष अपने पैर से जूता निकालते हैं और अंग्रेज प्रोफेसर की धुनाई कर देते हैं. सभी लोग आवाक रह जाते हैं. पुलिस आती है. उनकी बहुत पिटाई करती है. लेकिन प्रोफेसर सुभाष के खिलाफ शिकायत करने से मना कर देते हैं. इसलिए उन्हें आजाद कर दिया जाता है. सुभाष चंद्र बोस के बारे में ऐसे कई मजेदार किस्से हैं जिन्हें हमें जानना चाहिए.

दूसरा एपिसोड
वहीं, इसके दूसरे एपिसोड में एमिली को बोस का एक ख़त पढ़ती है जिसमें बोस एमिली को बताते हैं कि वह उन्हें काफी ज्यादा प्यार करते हैं. कहानी आगे बढ़ती है बोस के घर पर नंदिनी (पत्रलेखा) की एंट्री होती हैं. जो ब्रिटेन के अच्छे स्कूल से पढ़ी लिखी है और अपनी मां के साथ बोस के घर पर आई हैं.

1921 में बोस ने इन्डियन सिविल सर्विस पास किया था और उनको नौकरी मिल गई थी लेकिन आजाद ख्याल के बोस ने इस नौकरी को ठुकरा दिया. जिस वजह से नंदनी की मां ने बोस के साथ अपनी बेटी की शादी करने से मना कर दिया. सुभास के पिता को उनका नौकरी छोड़ना पसंद नहीं आता. वह अपने पिता से कहते हैं यह नौकरी नहीं चाकरी थी.. चाकर ही रहता मैं.. गुलाम और क्रांतिकारी में बस एक ही फर्क होता है…नियत का…गुलाम की नियत होती है चाकरी, जी हुजूरी. और क्रांतिकारी की नियत होती है सिपाही की.

बोस अपने कुछ साथियों के साथ योजना बनाते हैं कि वह इस बार सिर्फ अंग्रेजी माल का बहिष्कार ही नहीं करेंगे, इस बार वो अंगेजों को अपना माल खादी बेचेंगे. इतना बड़ा प्रिंस हिंदुस्तान आ रहा है और बिना कुछ ख़रीदे चला जाए ये तो अच्छा नहीं लगेगा. जाओ सबको बताओ.. बोस अपने दोस्तों के साथ प्रिंस ऑफ वेल्स की पार्टी में खादी के कपड़ों के साथ पहुंचते हैं लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है. रास्ते में उन्हें नंदिनी मिलती है बोस उनसे कहते हैं कि तुम प्रिंस को खादी के बारे में बताओ..

नंदिनी भी दिल से भारतीय और क्रांतिकारी ख्यालों की है. सुभाष की बातों का उस पर फर्क पड़ता है और वो सीधे जाकर प्रिंस को खादी का रुमाल थमा डालती है और उनसे 50 रुपये मांगती है. प्रिंस को यह बात पसंद नहीं आती है. जिसके बाद नंदिनी भी बोस के साथ जेल में बंद कर दी जाती है. नंदनी की मां बोस के पिता जानकी बाबू से कहती है कि ये आपका सुभाष, ये एक बीमारी है. इसने सबका दिमाग ख़राब किया है मेरी नंदिनी ऐसी नहीं है. इसने इसे बदल दिया है. फ़िलहाल ये पूरा मामला कोर्ट में जाता है और सुभास को अलीपुर जेल में 6 महीने कारावास मिलती है.

कहानी आगे बढ़ती है ब्रिटिश हुकूमत को अब भी बोस के बारे कुछ पता नहीं है कि वह जिन्दा है या मर चुके हैं. कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है. उनके घर पर ख़त आता है कि बोस का श्राद्ध मत करना. वहीं दूसरी तरफ एमिली को अब भी बोस के आने का इंतजार है. वहीं ब्रिटिश अफसर स्टेनली को भी बोस का इंतजार था. दोनों को यकीन था कि बोस जरुर आएंगे. कहानी के अंत में एक आदमी कहता है उन्हें आपके बारे में सब पता चल गया है. बोस को बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ दिखाया जाता है. फ़िलहाल दूसरा एपिसोड यहीं ख़त्म होता है.

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