Friday, March 29, 2024
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गोली के जख्म तो भर गए मगर 9 साल में और गहरे हुए ‘देविका’ के दिल के घाव…

SI News Today

दिल्ली: मुंबई हमले में जीवित पकड़े गए एकमात्र आतंकी अजमल आमिर कसाब को 22 नवंबर, 2012 को पुणे की एक जेल में फांसी पर लटका दिया गया. कसाब को फांसी पर पहुंचाने में सबसे अहम भूमिका निभाई थी उस समय एक छोटी सी बच्ची देविका ने. हमले के वक्त देविका महज 9 साल की थी और आतंकियों की एक गोली उसे भी लगी थी. देविका ने ही अदालत को बताया कि उसने कसाब को गोलियां चलाते हुए देखा था. मासूम देविका की गवाही ने हत्यारे कसाब को फांसी तक पहुंचा दिया. देविका की बहादुरी के चर्चे चारों तरफ हुए. गोली लगने के बाद उसके छह ऑपरेशन हुए. अब गोली के जख्म भर चुके हैं. देविका का परिवार राजस्थान के पाली जिले के एक गांव सुमेरपुर का रहने वाला है. उस समय जब देविका को पूरा देश पलकों पर बैठा रहा था तो नन्हीं आंखों में भी सपने खिल उठे कि वह खूब पढ़-लिख कर पुलिस अधिकारी बनेगी और हजारों आतंकवादियों को मारेगी.

देविका ने उस दिन के दुखद घटना को याद करते हुए बताया, ‘मैं, पिताजी और बड़े भाई के साथ एक और भाई से मिलने के लिए सीएसटी रेलवे स्टेशन से पुना जाने वाली थी. अचानक मैंने देखा कसाब सामने से गोलियां चला रहा था. चारों और लोग गिर रहे थे खून बह रहा था. अचानक एक गोली मेरे पांव में लगी और मैं गिर गई. मुझे फिर पता नहीं लगा, पुलिस वालों ने मुझे अस्पताल पहुंचाया और फिर होश आया तो एक पांव में जोरों से दर्द हो रहा था.’ देविका ने बताया, ‘जब अदालत में कसाब मेरे सामने खड़ा था, मुझे लगा काश मेरे पास बंदुक होती तो मैं यहीं इसमें गोली मार देती.’ कसाब की फांसी के बाद देविका मानो हीरो बन गई थी. नेता से लेकर अभिनेता उसे सम्मानित करने लगे. हर कार्यक्रम में देविका को बहादुर बच्ची कहकर सम्मानित किया जाने लगा.

आज हम मुंबई हमले की 9वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. मीडिया ने फिर से इस हमले में प्रभावित लोगों को खोज निकाला और उनके शब्दों से हमले को बयां करके हमले की बरसी मनाई. लेकिन जुवां के अलावा पीड़ितों के दिल में क्या दर्द छिपा है शायद ही किसी को नज़र आए. अब देविका की ही बात करें तो देविका आज भी मुंबई की तंग गलियों की किराये की एक झुग्गी में अपने परिवार के साथ रह रही है. वह 18 साल की हो गई है. देविका के पिता नटवरलाल ने बताया कि अखबार के पन्नों और टीवी की स्क्रीन पर देखोगे तो लगेगा सब अच्छा ही है. लेकिन कहते हैं ना कि कब्र का हाल मुर्दा ही जानता है, कुछ यही हाल उनका है. मुंबई हमले को लेकर होने वाले कार्यक्रमों में उन्हें बुलाया जाता है, सम्मानित किया जाता है. लेकिन आर्थिक मदद के नाम पर सब पीछे हट जाते हैं. मुंबई हमले के हादसे के कारण उनका ड्राइ फ्रूट का काम ठप हो गया. दूसरे कारोबारी पैसा हड़प कर गए. घर चलाने के लिए उन्हें और उनके बेटे को दूसरों की दुकान पर नौकरी करनी पड़ रही है.

देविका ने बताया कि अवार्ड्स के कारण कई बक्से भरे हुए हैं. देविका कहती है कि सम्मान से पेट नहीं भरता. देविका ने बताया कि टीवी पर जब हम लोगों की फोटो आती है तो मकान मालिक कहता है, सरकार, नेताओं और सेठों से करोड़ों रुपये मिले होंगे, किराया बढ़ाना होगा. देविका के पिता कहते हैं कि अब तो यह सम्मान उनके के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. आलम ये है कि परिवार के लोगों ने नटवरलाल के परिवार से नाता तोड़ लिया है. शादी-विवाह में उन्हें नहीं बुलाया जाता. पूछने पर तर्क दिया जाता है कि उनकी आतंकवादियों से दुश्मनी है, इसलिए वे भी उनके निशाने पर आ जाएंगे. देविका के पिता ने बताया कि स्थानीय प्रशासन लेकर महाराष्ट्र, राजस्थान और केंद्र सरकार यहां तक कि स्पेशल कोर्ट ने भी बेटी की पढ़ाई-लिखाई का खर्च और रहने के लिए मकान का वादा किया था, लेकिन कुछ नहीं हुआ. देविका खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी तंगहाली का संदेश भेज चुकी है, मगर कोरे आश्वासन के अलावा कुछ नहीं हुआ.

देविका पिछले एक साल से टीवी की बीमारी से जूझ रही है. बीमार होने से 10वीं के दो पेपरों में कंपार्टमेंट आई है. वह उसकी तैयारी में लगी हुई है. आर्थिक तंगियों और कमजोर शरीर देविका के हौसलों को पस्त करने में नाकाम हुए हैं. देविका उसी जोश के साथ कहती है, ‘हमें किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं है, मैं पढ़-लिख कर पुलिस अधिकारी बनूंगी.’

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