Tuesday, April 16, 2024
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संतान की प्राप्ति और रक्षा के लिए किया जाता है व्रत: संकष्टी चतुर्थी

SI News Today

हिंदू पंचाग के अनुसार हर माह संकष्टी चतुर्थी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के चौथे दिन आती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी या सकट हारा कहा जाता है। शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यदि चतुर्थी मंगलवार के दिन हो तो उसकी महत्वता बढ़ जाती है और उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस पर्व को दक्षिण भारत में उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत किया जाता है। भगवान गणेश के लिए किया गया व्रत विद्या, बुद्धि, सुख-समृद्धि की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक माना जाता है।

पूजा विधि-
भगवान गणेश का पूजन करते हुए पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख किया जाता है और भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को लगाकर उन्हें स्वच्छ चौंकी पर विराजित किया जाता है और खुद आसन पर बैठकर भगवान गणेश का पूजन करें। फल, फूल, रोली, मौली, अक्षत, पंचामृत आदि से भगवान गणेश को स्नान कराएं और इसके बाद विधि के साथ पूजा की जाती है। धूप, दीप के साथ गणेश मंत्र का जाप किया जाता है। गणेश जी को चतुर्थी के दिन तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाना शुभ माना जाता है। इसके साथ ऊं सिद्ध बुद्धि महागणपति नमः का जाप करें। शाम के समय व्रत पूर्ण करने से पहले संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें। संकष्टी व्रत का पूजन शुभ मुहूर्त में करना ही लाभदायक माना जाता है। 3 फरवरी 2018 को पूजा का शुभ मुहूर्त रात 9 बजकर 20 मिनट से शुरु होगा और चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला जाता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सतयुग काल में हरिशचंद्र के राज्य में एक कुम्हार वास करता था। वो हर दिन बर्तनों का आंवा लगाता था लेकिन उसके बर्तन कच्चे रह जाते थे। इस तरह का हर दिन नुकसान देखने के बाद उसने गांव में आए तांत्रिक से उपाय पूछा। तांत्रिक ने बताया कि अपने आंवे में किसी बच्चे की बलि दे दो, उसके बाद काम बनने लगेंगे। गांव के ऋषि शर्मा की मृत्यु के बाद कुम्हार उनके पुत्र को पकड़ लाया और सकट चौथ के दिन आंवा में डाल दिया। बालक की माता भगवान गणेश की भक्त थी और उसने अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए व्रत किया था। सुबह कुम्हार ने जब आंवा देखा तो लड़का जिंदा था। कुम्हार ये देखकर डर गया और उसने राजा के पास जाकर अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने बालक की माता को बुलाकर उसका पुत्र सौंपा और इस चमत्कार का कारण पूछा तो उसकी माता ने बताया कि वो सकट चौथ के दिन भगवान गणेश का विधि पूर्वक पूजन और व्रत करती है। इस दिन के बाद से कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।

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