Thursday, April 18, 2024
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जब दादा साहब फाल्‍के हीरोइन तलाशने गए थे रेड लाइट एरिया, जानिए…

SI News Today

साल 1913 में आई फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ भारत की पहली फुल लेंथ फीचर फिल्म थी। हालांकि यह एक म्यूट फिल्म थी लेकिन सिर्फ मराठी कलाकारों को कास्ट करने वाली इस फिल्म ने इतिहास रच दिया। फिल्म का निर्देशन और प्रोडक्शन करने वाले दादा साहेब फाल्के की पत्नी ने इस फिल्म का बजट जुटाने में मदद करने के लिए अपने जेवर तक बेच दिए थे। 1913 के उस दौर में इस फिल्म को बनाने में कुल 15 हजार रुपए की रकम खर्च हुई थी। आज दादा साहेब फाल्के के नाम पर भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जाता है। आज उनकी पुण्यतिथि है और हम आपको उनकी जिंदगी से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा बताने जा रहे हैं।

दादा साहेब फाल्के को जब अपनी फिल्म के लिए एक्ट्रेस नहीं मिल रही थी तो वह इसकी खोज में वेश्यालय तक पहुंच गए। तारामती का किरदार निभाने के लिए उन्हें एक्ट्रेस की जरूरत थी और उन्होंने इसके लिए रेड लाइट एरिया की कई वेश्याओं से बात की। दादासाहेब फाल्के के नाती चंद्रशेखर के मुताबिक फाल्के से सेक्स वर्करों ने पूछा कि इस काम के उन्हें कितने पैसे दिए जाएंगे? दादा साहेब ने जब उन्हें इस काम की फीस बताई तो सेक्स वर्कर्स ने कहा कि इतना तो हम एक रात में कमा लेती हैं।

हालांकि रेड लाइट एरिया में उन्हें एक भी लड़की उनकी फिल्म के लिए नहीं मिली लेकिन एक दिन जब वह होटल में चाय पी रहे थे तब उनकी नजर एक गोरे दुबले पतले लड़के पर पड़ी जो उन्हें इस किरदार के लिए ठीक लगा। बाद में इसी लड़के ने उनकी फिल्म में तारामती का किरदार निभाया था। दादा साहेब फाल्के की यह फिल्म राजा हरिश्चंद्र और उनकी कहानी पर आधारित थी जिसकी सिर्फ एक ही प्रति बनाई गई थी जिसे खूब पसंद किया गया। इसी प्रति को कोरोनेशन सिनेमेटोग्राफ में दिखाया गया था।

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