Friday, April 19, 2024
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न खाने वाले अंडा, शाकाहारी लोगों के लिए दिक्कत क्यूंकि हर चीज में पड़ा है अंडा

SI News Today

मेरा मानना है कि अंडा खाने का विचार ही बेहद घिनौना है. यह एक मुर्गी का पीरियड ब्लड (माहवारी रक्त) होता है, अगर आप अंडा तोड़ें और कुछ समय के लिए खुले में छोड़ दें तो इससे वैसी ही गंध आएगी, जैसे सेनेटरी टॉवेल पर लगे खून से आती है. अपनी रोज की डाइट में मैं आखिर क्यों कोलेस्ट्रोल बढ़ाना चाहूंगी?

लेकिन अंडे का इस्तेमाल इतनी ढेर सारी चीजों में होता है कि अगर आप इसे सीधे नहीं खा रहे हैं तो भी इस बात की पूरी संभावना है कि आप किसी ना किसी रूप में इसे जरूर खा रहे होंगे. अंडे का छिलका पीसकर इसका इस्तेमाल ब्रेड, कन्फेक्शनरी, फ्रूट ड्रिंक, क्रैकर्स और मसालों को पौष्टिक बनाने के लिए किया जा सकता है. अगर आप इनमें से किसी भी ‘फोर्टिफाइड’ चीज को देखें- या ब्रेड में चमकीलापन देखें- तो जान लीजिए कि यह अंडा है.

अंडे के मेंब्रेन प्रोटीन का इस्तेमाल कई सौंदर्य प्रसाधन सामग्रियों में सॉफ्टनर के तौर पर किया जाता है. अंडे की जर्दी का इस्तेमाल शैंपू या कंडिशनर में और कई बार साबुन में भी किया जाता है. कोलेस्ट्रोल, लेसिथिन और कई बार अंडे के फैटी एसिड का इस्तेमाल रिवाइटलाइजर, मेकअप फाउंडेशन और यहां तक कि लिपस्टिक जैसे स्किन केयर उत्पादों में किया जाता है. लुइस-देजाइरे ब्लैंकार्त-एवरार्द ने 1850 में एल्बुमिन (अंडे की सफेदी) का इस्तेमाल कर फोटोग्राफ की प्रिंटिंग प्रक्रिया विकसित की थी. इसमें पेपर को एल्बुमिन और नमक के घोल में डाल दिया जाता था. सूखने पर यह ग्लासी कोटेड पेपर बन जाता था. यह इतना लोकप्रिय हुआ कि उन्नीसवीं सदी में पेपर निर्माता फैक्ट्री के साथ ही मुर्गियां भी रखने लगे!

चित्रकार पिगमेंट के बाइंडर्स के तौर पर अंडे का इस्तेमाल करते थे. पिगमेंट कलर प्रकृति में पाई जाने वाली तमाम चीजों को पीस कर तैयार किया जाता था. इसके लिए हर चीज का इस्तेमाल किया जाता था, सेमी प्रेसियस स्टोन लेपिस लाजुली से लेकर कवच वाले कीड़ों तक को पीसकर अंडे की जर्दी के साथ मिला एग टेंपरा (लेप) तैयार किया जाता था. आज भी अंडे के एल्बुमिन का इस्तेमाल पिगमेंट के बाइंडर, वाटरप्रूफ ग्लू के तौर पर किया जाता है और वार्निश एविडिन अंडे की सफेदी का ही प्रोटीन है. इसका बायोटेक्नोलॉजिकल प्रयोगों में, खासकर मेडिकल डाइग्नोस्टिक्स में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि एलिजा टेस्ट में.

अंडे की सफेदी में पाया जाने वाले लाइसोजाइम का इस्तेमाल कुछ यूरोपीय किस्म के चीज को तैयार करने में किया जाता है. लाइसोजाइम दूध में पैदा हो सकने वाले एक जहरीले पदार्थ क्लॉस्ट्रिडियम टाइरोबूटाइरीसियम के विकास को बाधित करता है. लाइसोजाइम का एक हालिया इस्तेमाल शराब तैयार करने में सल्फाइट्स के तौर पर शुरू हुआ है. लाइसोजाइम का इस्तेमाल बीजाणु बनाने वाले जीवों के निर्माण में बाधा पैदा कर या उन्हें नष्ट कर प्रोसेस्ड फूड्स की सेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए किया जाता है.

लाइसोजाइम का इस्तेमाल दवाओं में एंटी-माइक्रोबायोलॉजिकल कारक के रूप में भी किया जाता है. लिपोजोम्स, जो कि अंडे में पाई जाने वाली चर्बी की बूंदें होती हैं, इनका इस्तेमाल विभिन्न दवाओं में कंट्रोल्ड डिलिवरी मैकेनिज्म के तौर पर किया जाता है. इम्यूनोग्लोबुलिन योल्क (आईजीवाई), जो कि अंडी की जर्दी का एक साधारण प्रोटीन है, का इस्तेमाल फूड प्रोडक्ट्स में एंटी-ह्यूमन-रोटावाइरस (एचआरवी) एंटीबॉडी के तौर पर किया जाता है.

शेल-मेंबरेन प्रोटीन (अंडे का छिलका) का इस्तेमाल प्रायोगिक तौर पर गंभीर रूप से जले हुए लोगों के लिए मानव त्वचा के कनेक्टिव टिश्यू कोशिकाएं विकसित करने में किया जा रहा है और जापान में इसका इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन सामग्री (एंटीजन स्पेसिफिक इम्युनोग्लोबुलिंस (आईजीवाईएस) में किया जा रहा है. अंडे का इस्तेमाल दांतों को खराब होने से बचाने के लिए करने की योजना तैयार की जा रही है: जापान में कैंडी, चॉकलेट और गम में अंडे से निकलने वाले एंटी-स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस (एक बैक्टीरिया जो दांतों के नष्ट होने के लिए जिम्मेदार होता है) का इस्तेमाल किया जाता है.

अंडे की सफेदी में पाया जाने वाले एक और प्रोटीन ओवोट्रांसफेरिन या कोनाल्बुमिन का इस्तेमाल पीने के पानी से आयरन को अलग करने के लिए किया जाता है. अंडे की सफेदी में प्रचुरता से पाया जाने वाला ओवल्बुमिन का इस्तेमाल डाइग्नोस्टिक इंडस्ट्री में किया जाता है. चार दशकों से ज्यादा समय से, इन्फ्लुएंजा वायरस का टीका तैयार करने के लिए कल्चर मीडियम के तौर पर संसेचित अंडे का इस्तेमाल.

इन्फ्लुएंजा वायरस को विकसित एंब्रियो में इनजेक्ट कर दिया जाता है. तीन दिन तक यह अंडे में अपनी संख्या बढ़ाता है. इसके बाद अंडे को तोड़ लिया जाता है. इससे फ्लूड को निकाल लिया जाता है और वायरस का इस्तेमाल वैक्सीन के तौर पर किया जाता है. अंडे की जर्दी का इस्तेमाल प्रयोगशाला में आगर कल्चर में माइक्रोआर्गेनिज्म ब्रेड विकसित करने में किया जाता है. संसेचित अंडे का इस्तेमाल कृत्रिम गर्भाधान के वास्ते सांड का सीमेन सुरक्षित रखने के लिए होता है. अंडे की सफेदी का इस्तेमाल एडिबल पैकिंग फिल्म्स तैयार करने, खाद्य पदार्थों के इनग्रेडिएंट, केमिकल और दवा उद्योग में होता है.

खाने की चीजों में शाकाहारी लोगों के लिए अंडे सबसे बड़ी समस्या हैं. पास्ता और ब्रेड, कन्फेक्शनरी- इनमें ज्यादातर में अंडा पड़ा होता है. आपको अंडा नहीं खाना है तो आपको सुनिश्चित करना होगा कि अनग्लेज्ड ब्रेड ही खरीदें. स्पंज केक, मेरिंगस या सफली में अंडे की फेंटी हुई सफेदी पड़ी होती है. अंडा बिखरने वाली चीजों को एक साथ बांधे रखने में मददगार होता है इसलिए इसका इस्तेमाल पैटीज, कटलेट्स, फ्रिटर्स और फिलिंग में किया जाता है. कस्टर्ड सॉसेज, बेक्ड कस्टर्ड, पाई फिलिंग में गाढ़ापन लाने के लिए फेंटे हुए अंडे को इस्तेमाल किया जाता है. मैनीज अंडे की जर्दी से बनाया जाता है. पेस्ट्री में कड़ापन लाने के लिए अंडे की सफेदी का इस्तेमाल होता है. अंडे का इस्तेमाल आइसक्रीम, बेबी फूड, सॉसेज और डेयरी उत्पादों में भी होता है. एग पाउडर का इस्तेमाल मीट उत्पादों (सॉसेज, हैंबर्गर, हैम) के साथ ही शाकाहारी फूड (सोया सॉसेज, हैमबर्गर) में भी होता है. अंडे और मीट से बच पाना बारूदी सुरंगों से बचने जितना मुश्किल है.

एग इंडस्ट्री से जुड़े तथाकथित गैरजिम्मेदार और असंवेदनशील वैज्ञानिक अपने उत्पादों को खपाने के लिए नए तरीके ढूंढते रहते हैं. इन्हें रोकने के लिए बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन सब बेकार है. इससे होने वाली परेशानी की कल्पना नहीं की जा सकती. उदाहरण के लिए चिकन को जेनेटिकली बदल देने पर काम चल रहा है, जिससे कि वह बड़ी मात्रा में मानव सीरम एब्लुमिन (एचएसए) का उत्पादन कर सकें. यह ऐसा प्रोटीन है, जो अस्पतालों में सेलाइन ड्रिप्स में इस्तेमाल होता है. अभी यह प्रोट्रीन मानव ब्लड प्लाज्मा से निकाला जाता है. कारोबारी कंपनियों में ऐसा भी शोध चल रहा है कि ट्रांसजेनिक चिकन की मदद से हेपेटाइटिस और कैंसर से लड़ने वाले एग एंटीबॉडीज का निर्माण किया जाए.

खुद एग इंडस्ट्री की तरफ से दावा किया गया है कि सिर्फ मुर्गी के खाने में बदलाव करके अंडे के कंटेंट को बदला जा सकता है. उनके शब्द हैंः ‘अंडे देने वाली मुर्गी की डाइट में समायोजन करके फैटी एसिड, फैट-सॉल्यूबल विटामिन और आयोडीन, फ्लोरीन, मैंगनीज, व बी विटामिंस के प्रोफाइल में बदलाव किया जा सकता है. अलसी के बीज आधारित डाइट या रेपीसीड या फिश ऑयल्स आधारित फूड देकर अंडे को ओमेगा-3 या ओमेगा-6 फैटी एसिड से भरपूर बनाया जा सकता है. अंडे में विटामिन ई के साथ-साथ आयोडीन का स्तर बढ़ाया जा सकता है. अंडे में कंज्यूगेटेड लायनोलेइक एसिड (सीएलए) शामिल करने के लिए शोध जारी है.’

अगर यह बात सच है तो भारत में मुर्गियों को खिलाई जाने वाली कबाड़ की चीजें- जिनमें से कार्डबोर्ड, ग्रेनाइट का चूरा, मर चुकी मुर्गियों के शरीर से तैयार भोजन, फिप्रोनिल जैसे कीटनाशक अनगिनत चीजें शामिल हैं, के असर से निश्चित रूप से अंडा एकदम बेकार या सेहत के लिए खतरनाक हो जाता होगा. इन हालात में हमारी खाद्य सुरक्षा व मानक के लिए काम करने वाली संस्था एफएसएसआई को बाजार में बिकने वाले अंडे की क्वालिटी की जरूर जांच करनी चाहिए.

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