गोल्ड कोस्ट की यादें भारतवासियों के जेहन में हमेशा ताजा रहेंगी। यह इसलिए नहीं कि भारत ने ग्लास्गो में 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों से अधिक पदक और पीला तमगे हासिल किए हैं, बल्कि इसलिए कि यहां भारतीय युवा खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। साथ ही, यह भी सही है कि भारत दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों की कामयाबी से काफी पीछे रहा। खैर, 15 साल के अनीस भानवाल का 25 मीटर रैपिड फायर पिस्टल का स्वर्ण हो या 16 साल की मनु भाकर की 10 मीटर एअर पिस्टल में जीत, इन किशोरों ने अपने पदार्पण में ही देश को पीला तमगा दिलाया। हालांकि इन सब के बाद भी आंखों के सामने से टेबल टेनिस में मनिका बत्रा का प्रदर्शन ओझल होने का नाम नहीं ले रहा।
गोल्ड कोस्ट में भारतीय महिला टेबल टेनिस टीम ने पहली बार स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया। दरअसल, यह जीत इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि 2002 में टेबल टेनिस को राष्ट्रमंडल खेलों का हिस्सा बनाया गया था और सिंगापुर की टीम लगातार इसमें चैंपियन बनती आ रही थी। सिंगापुर के वर्चस्व को तोड़ते हुए भारत की महिला टेबल टेनिस खिलाड़ियों ने इतिहास रच दिया। प्रदर्शन के लिहाज से टेबल टेनिस खिलाड़यों की दस सदस्यीय टीम ने कुल आठ पदक अपने नाम किए। बत्रा के लिए यह सत्र यादगार रहा। उन्होंने एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण, महिला युगल में स्वर्ण और महिला टीम को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। एकल में स्वर्ण पदक के साथ मनिका पहली भारतीय टेबल टेनिस खिलाड़ी बन गई जिसने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीता।
50 फीसद व्यक्तिगत स्वर्ण पदक 25 साल से कम उम्र के खिलाड़ियों ने जीते
भारत ने गोल्ड कोस्ट में कुल 26 स्वर्ण पदक अपने नाम किए। इनमें से 23 स्वर्ण पदक व्यक्तिगत स्पर्धाओं में जीते गए। तीन पदक टीम स्पर्धाओं में भारत ने जीते। 23 में से कुल 11 पदक विजेता खिलाड़ी ऐसे हैं जिनकी उम्र 25 साल या इससे कम हैं। यानी कि लगभग 50 फीसद स्वर्ण भारत के युवाओं के नाम रहे। यह आने वाले ओलंपिक की तैयारी के लिहाज से काफी महत्त्वपूर्ण आंकड़ा है। पुरुष वर्ग में 15 साल के अनीस भानवाल स्वर्ण पदक विजेताओं में सबसे कम उम्र के खिलाड़ी रहे और महिला वर्ग में 16 साल की मनु भाकर सबसे कम उम्र की खिलाड़ी रहीं।
वापसी के लिए भी जाना जाएगा
21वें राष्ट्रमंडल खेलों को भारत कई दिग्गजों की वापसी के तौर पर याद रखेगा। दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार ने राष्ट्रमंडल खेलों में तीसरा स्वर्ण जीतकर धाक जमाई। 2010 और 2014 खेलों में पीला तमगा हासिल करने वाले इस पहलवान ने एक बार फिर साबित कर दिया कि उनके पास अब भी काफी हुनर और ताकत बाकी है। महज 80 सेकंड में अपने प्रतिद्वंद्वी को चित करके सुशील ने सोने पर कब्जा जमाया। वहीं, 35 साल की ओलंपिक पदक विजेता एमसी मैरीकॉम ने राष्ट्रमंडल खेलों में पदार्पण करते हुए 48 किलो वर्ग में स्वर्णिम जीत दर्ज की। एथलेटिक्स में भारत का खाता खोलते हुए सीमा पूनिया ने चक्का फेंक में 60.41 मीटर का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए रजत पदक जीता।
ग्लास्गो को पीछे छोड़ा लेकिन दिल्ली तक नहीं पहुंचे
भारतीय खिलाड़ियों ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से राष्ट्रमंडल खेलों के 21वें संस्करण की पदक तालिका में तीसरा स्थान दिलाया लेकिन क्या यही सर्वश्रेष्ठ है, नहीं 2010 में दिल्ली की मेजबानी तले भारत ने 101 पदकों के साथ तालिका में दूसरा स्थान पाया था। उस समय भारत की झोली में कुल 38 स्वर्ण पदक आए थे। साथ ही यह भी जानकारी जरूरी है कि 2002 के राष्ट्रमंडल खेलों में भारत ने कुल 30 स्वर्ण पदकों सहित 69 पदक अपने नाम किए थे। ग्लास्गो खेलों में भारत के नाम मात्र 15 स्वर्ण पदक थे।
हरियाणवी खिलाड़ियों का दबदबा
हरियाणा का नाम लेते ही लोगों के जहन में वहां की खेल संस्कृति और देश के लिए पदक जीता तो खिलाड़ियों की तस्वीरें तैरने लगती हैं। 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में भी यहां के खिलाड़ियों ने डंका बजाया। निशानेबाजी हो या कुश्ती या फिर एथलेटिक्स हरियाणा के खिलाड़ियों ने हर वर्ग में पदक जीता। कुल 66 पदक के साथ पदक तालिका में तीसरे स्थान पर काबिज भारत को 22 पदक यहीं के खिलाड़ियों ने दिलाए। दूसरे नंबर पर तमिलानाडु है जिसने 11 पदक जीते।