Friday, March 29, 2024
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दलित-मुस्लिम गठजोड़ ने तैयार किया तबस्सुम की जीत का रास्ता: कैराना उपचुनाव

SI News Today
Dalit-Muslim alliance prepares Tabasud's path of victory: Karaana bypoll

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भाई साहब आप क्या कहते हो. इस बार बीजेपी का जीतना नामुमकिन है. सवाल ही नहीं पैदा होता है कि बीजेपी जीत जाए. इस बात को आप लिख लीजिए. यहां आप जितने लोगों को देख रहे हैं वो सब बीजेपी के खिलाफ वोट करने वाले हैं.ठीक है. आप अपने इलाके की बात कर रहे हैं. लेकिन दूसरे दलित इलाकों के लोगों का क्या मूड है. इसका आपको क्या पता. आप इतने दावे के साथ कैसे कह सकते हैं कि बीजेपी हार रही है.

देखिए एक बात मैं आपको साफ बता दूं. हमलोग दलित हैं. और ये पूरा इलाका दलितों का है. मैं आपको ये भी बता दूं कि हमलोग किसी पार्टी से बंधे नहीं हैं. लेकिन फिर भी बीजेपी को हराने के लिए काम कर रहे हैं. हम अपने खर्चे पर कैराना के कई इलाकों में जा रहे हैं. अपने दलित भाइयों को समझा रहे हैं कि चाहे कुछ हो जाए बीजेपी को वोट नहीं करना है. आप विश्वास करेंगे कि हम इस स्तर तक जाकर कोशिश कर रहे हैं. यहां इस बार बीजेपी की दाल नहीं गलने वाली है.

एक दलित युवक कर्मवीर सिंह से हमारी ये बातचीत कैराना उपचुनावों की गहमागहमी के दौरान हो रही थी. हम कैराना से सटे शामली के एक दलित बहुल इलाके मोहल्ला गौशाला रोड में थे. यहां के लोगों के साथ बातचीत से साफ लग रहा था कि वो बीजेपी के खिलाफ गुस्से से भरे हैं और अपने गुस्से को वो अपने वोट के जरिए जाहिर करने वाले हैं.

आमतौर पर मिलीजुली आबादी में रहने वाले दलित इतने मुखर होकर नहीं बोलते लेकिन शामली के इस इलाके में दलित खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार कर रहे थे. ये अपनेआप को बीएसपी का वोटर्स भी नहीं बता रहे थे और ना ही किसी बीएसपी नेता ने इनलोगों से संपर्क स्थापित किया था. बीजेपी के खिलाफ माहौल अपनेआप बन गया था.

शामली के इस इलाके के एक बुजुर्ग मास्टर वीरसेन से मैंने पूछा कि आपलोग बीजेपी से इतने नाराज क्यों हैं. 78 साल के वीरसेन छूटते ही बोलने लगे, ‘ये हमारे पक्के दुश्मन हैं. इन्होंने हमें हर मौके, हर स्तर पर दबाने का प्रयास किया है. अब देखिए एससीएसटी एक्ट को कमजोर कर दिया. नौकरियों के प्रमोशन में आरक्षण को खत्म कर दिया. सहारनपुर में दलितों पर अत्याचार हो रहा है. वहां चंद्रशेखर रावण को जबरदस्ती जेल में ठूंस दिया है. हम कैसे कहें कि दलितों को लेकर इनके दिल में थोड़ी भी हमदर्दी है. हमने 2014 में मोदी के चेहरे के नाम पर वोट दिया है. अब हम उस गलती का अच्छा खासा खामियाजा भुगत चुके हैं.’

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सहारनपुर मे हुए दलितों और ठाकुरों के बीच हुए जातीय दंगों का असर कम नहीं हुआ है. दलित इस मामले में अपने साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ खुलकर बोलते हैं. मास्टर वीरसेन जैसे बुजुर्ग से लेकर युवा लड़के तक बीजेपी के रवैये को दलित विरोधी मानते हैं. कैराना चुनाव के नतीजों को दलितों की इसी नाराजगी से जोड़कर देखा जा सकता है. तबस्सुम हसन की जीत से साफ है कि बदले माहौल में दलित और मुसलमान एकसाथ आए हैं.

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी दलितों के इस गुस्से से वाकिफ नहीं थी. दलितों को करीब लाने की तमाम कोशिशें की गईं. बीजेपी के केंद्रीय मंत्री से लेकर विधायक नेता तक दलितों बहुल इलाकों में जाकर रात्रि विश्राम और उनके यहां खाना-पीना किया. लेकिन बीजेपी की इन कोशिशों का ज्यादा असर नहीं देख गया. ज्यादातर इलाकों के दलित समुदाय के लोगों ने इसे बेवजह का दिखावा माना. दलित समुदाय नाराज था और मुसलमान हमेशा से नाराज रहे हैं. दो समुदायों की नाराजगी ने आरएलडी के उम्मीदवार तबस्सुम हसन के लिए जीत का रास्ता तैयार कर दिया.

समाजवादी पार्टी और बीएसपी के साथ आने और उसके बाद इस गठजोड़ से आरएलडी के हाथ मिलाने के बाद से ही ये साफ हो गया था कि बीजेपी के सामने मुश्किल आने वाली है. वोटों का अंकगणित साफ था. कैराना लोकसभा सीट पर 17 लाख वोटर्स हैं. इनमें 5 लाख मुस्लिम, 4 लाख पिछड़ी जाति (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) और करीब ढाई लाख वोट दलितों के हैं. इसमें डेढ़ लाख वोट जाटव दलित के हैं और 1 लाख के करीब गैरजाटव दलित मतदाता हैं.

3 लाख के करीब अकेले गुर्जर समुदाय है. इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों गुर्जर शामिल हैं. एसपी-बीएसपी औऱ आरएलडी के साथ आने से मुस्लिम और दलितों (करीब साढ़े सात लाख वोटर्स) का मजबूत गठजोड़ बना. तबस्सुम हसन मुस्लिम गुर्जर हैं. इसलिए गुर्जर वोटों पर भी भरोसा था. इस लिहाज से देखें तो इस चुनावी नतीजे का पहले ही अंदेशा था. लेकिन बीजेपी 2014 के अपने चुनावी जीत पर आंकड़े पर भरोसा करके चल रही थी.

2014 के चुनावी नतीजों के आंकड़ों में फंसी रह गई बीजेपी?
2014 में हुकुम सिंह ने 5 लाख 65 हजार 909 वोट हासिल किए थे. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी के नाहिद हसन को 2 लाख वोटों के ज्यादा अंतर से हराया था. 2014 के चुनावी नतीजे के आंकड़ों को देखें तो हुकुम सिंह ने समाजवादी पार्टी, बीएसपी और आरएलडी के प्रत्याशियों को कुल मिले वोटों से भी ज्यादा वोट हासिल किए थे.

कैराना चुनाव के दौरान जब हमने बीजेपी नेताओं से बात की तो वो इसी आंकड़े के बूते अपनी जीत का दावा कर रहे थे. लेकिन 2014 की हवा से आज के माहौल की तुलना करना भारी पड़ गया. हुकुमसिंह की जीत के सामने तबस्सुम की जीत की आंकड़ों के हिसाब से बहुत पीछे है. लेकिन एक बात तो है कि इस जीत ने आगे का रास्ता तैयार कर दिया है.

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