Monday, March 25, 2024
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क्या था ‘सेक्स गुरु’ ओशो का जीवन

SI News Today

What was the ‘sex guru’ life of Osho.

 

ओशो को हम क्या कहें- धर्मगुरु, संत, आचार्य, अवतारी, भगवान, मसीहा, प्रवचनकार, धर्म- विरोधी या फिर सेक्स गुरु?
साल 1981 से 1985 के बीच अपने अमरीका प्रवास के समय ओरेगॉन में उन्होंने 65 हज़ार एकड़ में आश्रम की स्थापना की। इस दरम्यान उनका प्रवास बेहद विवादास्पद रहा। रजनीश (ओशो) को कुछ हद तक ‘भगवान’ और ‘सेक्स गुरु’ कहा जाने लगा था क्योंकि वे अपने सार्वजनिक प्रवचनों में सेक्स और ऑर्गेज़म का अक्सर ज़िक्र करते थे। ओशो की एक पुस्तक भारत में बहुत चर्चित है–‘संभोग से समाधि की ओर,’ अब इस शिर्षक में दो शब्द प्रमुख हैं–एक संभोग, दूसरा समाधि। ये बात सबको मालूम थी कि वे अपनी महिला शिष्यों के साथ सोते थे. आश्रम में सभी को सेक्स की आज़ादी थी, नग्नावस्था, प्रेम और दूसरी तमाम चीज़ें यहां मौजूद थीं. महंगी घड़ियां, 90 रोल्स रॉयस कारें, डिजाइनर कपड़ों की वजह से वे हमेशा चर्चा में रहे। फिर वहां पांच सालों तक आश्रम के लोगों के साथ तनाव, क़ानूनी विवाद, क़त्ल की कोशिश के मामले, चुनावी धोखाधड़ी, हथियारों की तस्करी, ज़हर देने के जैसे आरोप  सामने आते रहे। रजनीश (ओशो) के शिष्यों के ज़हरीले सालमोनेला बैक्टीरिया के छिड़काव की वजह से जल्द ही लोग बीमार पड़ने लगे. डायरिया, उल्टी और कमज़ोरी की शिकायत लेकर लोग अस्पताल पंहुचने लगे। ये मामला तो अमरीका के इतिहास का सबसे बड़ा ‘बायो-टेरर’ अटैक माना जाता है। ओरेगॉन में ओशो के शिष्यों ने उनके आश्रम को रजनीशपुरम नाम से एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड कराना चाहा था लेकिन स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया। स्थानीय लोगों ने कम्यून पर मुक़दमा कर दिया। सरकारी जांच में सैलमोनेला बैक्टीरिया पैदा करने वाला प्रयोगशाला और टेलीफ़ोन टैप करने के उपकरण पाए गए। रजनीश के शिष्यों पर मुक़दमा चला। उनके शिष्यों ने ‘प्ली बारगेन’ के तहत कुछ दोष स्वीकार कर लिए और उनके तीन शिष्यों को जेल की सज़ा हुई। रजनीश पर नियम तोड़ने के आरोप लगे। इसके बाद साल 1985 में वे पुणे (भारत) के कोरेगांव पार्क इलाके में स्थित अपने आश्रम में वापस लौट आए औरयहीं उनकी मृत्यु 19 जनवरी, 1990 में हो गई।

उनकी मौत के बाद पुणे आश्रम का नियंत्रण ओशो के क़रीबी शिष्यों ने अपने हाथ में ले लिया। आश्रम की संपत्ति करोड़ों रुपये की मानी जाती है और इस बात को लेकर उनके शिष्यों के बीच विवाद भी है। ओशो के शिष्य रहे योगेश ठक्कर का दावा है कि उनके आश्रम की संपत्ति हज़ारों करोड़ रुपये में है और किताबों व् अन्य चीज़ों से क़रीब 100 करोड़ रुपये रॉयल्टी मिलती है। ओशो की विरासत पर इस समय ओशो इंटरनेशनल का नियंत्रण है उन्होंने दवा किया है कि उन्हें ओशो की विरासत वसीयत से मिली है और योगेश ठक्कर का दावा है कि ओशो इंटरनेशनल जिस वसीयत का हवाला दे रहा है, वो फ़र्ज़ी है। ओशो इंटरनेशनल ने यूरोप में ओशो नाम का ट्रेड मार्क ले रखा है। बीते साल 11 अक्टूबर को जनरल कोर्ट ऑफ़ यूरोपीयन यूनियन ने ओशो इंटरनेशनल के पक्ष में अपना फ़ैसला सुनाया। ओशो इंटरनेशनल का कॉपीराइट और ट्रेड मार्क पर उठने वाले विवादों को लेकर कहना है कि वे ओशो के विचारों को शुद्ध रूप में उनके चाहने वालों तक पहुंचाता है, इसलिए ये अधिकार वे अपने पास रखना चाहते हैं। लेकिन ओशो ने ख़ुद ही कभी कहा था कि –“कॉपीराइट वस्तुओं और चीज़ों का तो हो सकता है लेकिन विचारों का नहीं”। योगेश ठक्कर ने बताया कि – “ओशो का साहित्य सबके लिए उपलब्ध होना चाहिए, इसलिए मैंने उनकी वसीयत को बॉम्बे हाई कोर्ट में चैलेंज किया है।” ओशो की मौत के सालों बाद भी कई सवालों के जवाब नहीं मिल रहे और मौत के कारणों को लेकर रहस्य बरक़रार है। डॉक्टर गोकुल गोकाणी को सिर्फ उनकी मौत की जानकारी दी गई और कहा गया कि डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दें। ओशो के शिष्यों ने उन्हें मौत की वजह दिल का दौरा लिखने के लिए दबाव डाला। ओशो के आश्रम में किसी संन्यासी की मृत्यु को उत्सव की तरह मनाने का रिवाज़ था, लेकिन स्वयं कि मृत्यु पर ओशो का अंतिम संस्कार एक घंटे के भीतर ही कर दिया गया और उनके निर्वाण का उत्सव भी संक्षिप्त रखा गया था। ओशो के निधन की सूचना उनकी मां को भी देर से दी गई थी। ओशो की मां लंबे समय तक ये कहती रहीं कि बेटा उन्होंने तुम्हें मार डाला।
उनकी मृत्यु को 28 साल पूरे हो चुके हैं। साल 1990 में 19 जनवरी के दिन वो दुनिया छोड़ गए थे। ‘सेक्स गुरु’ ओशो की शख्सियत का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है पुणे स्थित उनकी समाधि पर एक बात लिखी हैं कि- “न कभी जन्मे, न कभी मरे. वे धरती पर 11 दिसंबर, 1931 से 19 जनवरी 1990 के बीच आए थे।”

भारत के जितने भी महान सृजनशील हैं, वे ओशो को पढ़ते हैं, ओशो आश्रम आते-जाते रहते हैं, पंडित जसराज, बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया, संतूर वादक शिवकुमार शर्मा, कल्याण जी आनंद जी, उस्ताद जाकिर हुसैन, किरण बेदी, अमृता प्रितम शायद ही कोई शास्त्रिय संगीत, नृत्य, चित्रकला, कवि, साहित्यकार, फिल्मकार, लेखक होगा जो आश्रम न आता हो। बॉलीवुड स्टार विनोद खन्ना तो उनके मुरीद थे।

 

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