Friday, March 29, 2024
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जानिए कश्मीर में शांति के लिए धारा 370 / 35A क्यों हटाना है जरुरी

SI News Today

Know why it is necessary to remove Section 370 / 35A for peace in Kashmir.

       

        

हाल ही में दिए गए 2 कांग्रेस नेताओं सैफुद्दीन सोज और ग़ुलाम नबी आज़ाद के बयान कश्मीर को भारत से अलग करने की साज़िश है। अभी कल ही सोज ने एक नया बयान देकर फिर कश्मीर के मुद्दे को गर्म करने की कोशिश की। सोज़ ने दावा किया कि सरदार पटेल पाकिस्तान को कश्मीर देना चाहते थे, लेकिन जवाहरलाल नेहरू इसके पक्ष में नहीं थे। उनका दावा है कि पटेल आखिरी दम तक कश्मीर पाकिस्तान को देना चाहते थे। भारत और पाकिस्तान के बीच शांति के लिए जरूरी है कि दोनों देशों के बीच कश्मीर का बॉर्डर न बदले। कश्मीर पर उनकी आने वाली किताब पर हुए विवाद पर सोज़ ने कहा कि किताब में कोई ऐसी बात नहीं है जिससे कांग्रेस नाराज हो। सोज़ कहते हैं ‘मैंने किताब में लिखा है कि सरदार पटेल चाहते थे कि कश्मीर पाकिस्तान को दे दिया जाए, लेकिन नेहरू कश्मीर को भारत मे रखने के पक्ष में थे। आखिरी दम तक पटेल चाहते थे कि कश्मीर पाकिस्तान को दिया जाए।’ सैफ़ुद्दीन सोज़ का दावा है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह भी इस बात को अच्छे से समझते थे, लेकिन वो भी इसे हल नहीं कर पाए। सैफ़ुद्दीन सोज़ ने कहा कि कश्मीरी भारत और पाकिस्तान दोनों ही मुल्कों से अलग होना चाहते हैं। वो आजाद होना चाहते हैं। हालांकि, ऐसा होना मुमकिन नहीं है।

जबकि सोज के दावों और हक़ीक़त में काफी अंतर है। जब कश्मीर का भारत में विलय हुआ था तब सरदार पटेल के विरोध के बाद भी धारा 370 को संविधान में जोड़ा गया। कश्मीर में आज भी बहुत से भारत के कानून पूर्ण रूप से लागू नहीं होते। धारा 370 भारतीय अखंडता के लिए बहुत बड़ा विरोधी घटक है। जब तक इसे हटाया नहीं जाता तब तक कश्मीरी आतंकवाद से छुटकारा नहीं मिल सकता। एक देश एक कानून और 370 के खिलाफ लड़ते हुए कश्मीर में श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 23 जून 1953 को मृत्यु हो गयी थी। जिसे बीजेपी बलिदान दिवस के रूप में मनाती है। बीजेपी और संघ शुरुआत से ही 370 के खिलाफ रहे है। बीजेपी और खासकर मोदी धारा 370 को हटाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहेंगे । अगर मोदी 370 को ख़त्म कर एक देश एक कानून लागू करने में सफल रहे तो ये प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

धारा 370 कश्मीर की परेशानी की जड़ है और ये न होता तो आज कश्मीर भी देश के अन्य प्रांतों की तरह मुख्यधारा में शामिल हो गया होता, लेकिन नेहरू सरकार की एक कमी की वजह से आज यह देश का नासूर बन गया है। बिना कैबिनेट की सहमति के नेहरू ने किया था, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि जब वे चंद्रशेखर के सरकार में मंत्री थे, उस समय भी कश्मीर का प्रस्ताव सरकार के सामने आया था। उस प्रस्ताव से यह पता चला कि नेहरू ने कश्मीर मामले पर फैसला लेने के लिए अपनी कैबिनेट से कोई सलाह मशविरा नहीं किया था बल्कि अपनी व्यक्तिगत सोच से इसे अंजाम दिया था। अगर धारा 370 को समाप्त करने में किसी तरह की अड़चन आती है तो सरकार के सामने संयुक्त सत्र बुलाने का विकल्प खुला हुआ है।

क्या है धारा 370-
स्वतंत्रता के समय जम्मू कश्मीर भारत के गणराज्य में शामिल नहीं था, लेकिन उसके सामने तो विकल्प थे वह या तो भारत या फिर पाकिस्तान में शामिल हो जाए। उस समय कश्मीर की मुस्लिम बहुल जनसंख्‍या पाकिस्तान से मिलना चाहती थी लेकिन राज्य के अंतिम महाराजा हरिसिंह का झुकाव भारत के प्रति था। हरिसिंह ने भारत के साथ एक ”इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन” नामक दस्तावेज पर हस्‍ताक्षर किए थे। इसके बाद भारतीय संविधान की धारा 370 के तहत जम्मू कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला एक कश्मीरी राजनेता थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर, उत्तरीतम भारतीय राज्य की राजनीति में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक नेता और जम्मू-कश्मीर के चौथे मुख्यमंत्री थे। उन्होंने महाराजा हरि सिंह के शासन के खिलाफ आंदोलन किया और कश्मीर के लिए आत्म-शासन का समर्थन किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री बनवा दिया था। वहां मुख्यमंत्री की बजाय प्रधानमंत्री और राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत होता था। उल्लेखनीय है कि इसी कारण से कश्मीर का अपना एक अलग झंडा और प्रतीक चिन्ह भी है। इसी विशेष दर्जें के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। इस कारण राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बरख़ास्त करने का अधिकार नहीं है।

जम्‍मू-कश्‍मीर का संविधान?
जम्मू कश्मीर का संविधान 1956 में बनाया गया था. इस संविधान के मुताबिक स्थायी नागरिक वो व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 वर्षों से राज्य में रह रहा हो। साथ ही उसने वहां संपत्ति हासिल की हो। 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता। सूचना का अधिकार कानून भी यहां लागू नहीं होता। इसके तहत भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कही भी भूमि ख़रीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन नहीं ख़रीद सकते हैं। भारतीय संविधान की धारा 360 जिसमें देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है।वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती। राज्य की महिला अगर राज्य के बाहर शादी करती है तो वह यहां की नागरिकता गंवा देती है।

इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35A को लेकर अहम सुनवाई होने जा रही है। अनुच्छेद 35A, धारा 370 का ही हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में लोगों ने शिकायत की थी कि अनुच्छेद 35A के कारण संविधान प्रदत्त उनके मूल अधिकार जम्मू-कश्मीर राज्य में छीन लिए गए हैं, लिहाजा राष्ट्रपति के आदेश से लागू इस धारा को केंद्र सरकार फौरन रद्द किया जाए। इस धारा के कारण दूसरे राज्यों का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में ना तो संपत्ति खरीद सकता है और ना ही वहां का स्थायी नागरिक बनकर रह सकता है। अलगाववादी संगठन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने इसे लेकर रविवार को खुली चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अनुच्छेद 35A के खिलाफ आता है, तो घाटी में इसके खिलाफ विद्रोह किया जाएगा।

क्या है अनुच्छेद35A?
अनुच्छेद 35A, 14 मई 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिए भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35A जोड़ दिया गया। कभी अनुच्छेद 35A को संविधान का हिस्सा बनाने के संदर्भ में किसी संविधान संशोधन या बिल लाने का जिक्र नहीं मिलता है लेकिन अनुच्छेद 35A को लागू करने के लिए तत्कालीन सरकार ने धारा 370 के अंतर्गत प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल किया था। अनुच्छेद 35A, जम्मू-कश्मीर को राज्य के रूप में विशेष अधिकार देता है। इसके तहत दिए गए अधिकार ‘स्थाई निवासियों’ से जुड़े हुए हैं। इसका मतलब है कि राज्य सरकार को ये अधिकार है कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सहूलियतें दे अथवा न दे। अनुच्छेद 35A के मुताबिक अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी बाहर के लड़के से शादी कर लेती है तो उसके सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं। साथ ही उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं।

इस अनुच्छेद को हटाने के लिए आवाजे उठने लगी हैं पहला इसलिए कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया गया था, दूसरी ये कि देश के विभाजन के वक्त बड़ी तादाद में पाकिस्तान से शरणार्थी भारत आए। इनमें लाखों की तादाद में शरणार्थी जम्मू-कश्मीर राज्य में भी रह रहे हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार ने अनुच्छेद 35A के जरिए इन सभी भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी प्रमाणपत्र से वंचित कर दिया। इन वंचितों में 80 फीसद लोग पिछड़े और दलित हिंदू समुदाय से हैं। इसी के साथ जम्मू-कश्मीर में विवाह कर बसने वाली महिलाओं और अन्य भारतीय नागरिकों के साथ भी जम्मू-कश्मीर सरकार अनुच्छेद 35A की आड़ लेकर भेदभाव करती है।

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