When people were forcibly sterilized in the Emergency of 1975
25 और 26 जून की दरमियानी रात आपातकाल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दस्तखत के साथ देश में आपातकाल लागू हो गया. अगली सुबह समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा की आवाज में संदेश सुना कि भाइयो और बहनो, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. जिसके साथ ही भारत के इतिहास में उस काले अध्याय की शुरूआत जिसका दर्द लोग आजतक भूल नहीं पाए हैं. सरकार का विरोध करने पर दमनकारी को मीसा कानून और डीआईआर के तहत देश में एक लाख ग्यारह हजार लोग जेल में ठूंस दिए गए.
सुंदरीकरण के नाम पर संजय गांधी ने एक ही दिन में दिल्ली के तुर्कमान गेट की झुग्गियों को साफ करवा डाला लेकिन पांच सूत्रीय कार्यक्रम में ज्यादा जोर परिवार नियोजन पर था. लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराई गई. कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी कहते हैं कि उस समय यूथ कांग्रेस ने बहुत अच्छा काम भी किया था लेकिन नसबंदी प्रोग्राम ने खेल खराब कर दिया क्योंकि यूथ कांग्रेस और अधिकारियों ने जबरदस्ती शुरू की और जनता में आक्रोश फैल गया.
आपातकाल वो दौर था जब सत्ता ने आम आदमी की आवाज को कुचलने की सबसे निरंकुश कोशिश की. इसका आधार वो प्रावधान था जो धारा-352 के तहत सरकार को असीमित अधिकार देती है.<br />इंदिरा जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीं और मीडिया और अखबार आजाद नहीं थे.
विरोध प्रदर्शन का तो सवाल ही नहीं उठता था क्योंकि जनता को जगाने वाले लेखक-कवि और फिल्म कलाकारों तक को नहीं छोड़ा गया. कहते हैं मीडिया, कवियों और कलाकारों का मुंह बंद करने के लिए ही नहीं बल्कि इनसे सरकार की प्रशंसा कराने के लिए भी विद्या चरण शुक्ला सूचना प्रसारण मंत्री बनाए गए थे.