Friday, April 19, 2024
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देश में बढ़ रही बायो-डीजल की मांग, जानिये क्या है इसका असली राज

SI News Today

The demand for increasing biodiesel in the country, know what is the real secret .

       

पॉल्यूशन दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जा रहा है। यह तो कम होने का या खत्म होने का नाम ही नही ले रहा है। जिसके चलते पॉल्यूशन को कम करने के लिए बायोडीजल को लाया गया है। जी हां इन दिनो शायद आपने बायोडीजल का नाम सुना होगा। दरअसल इसका प्रयोग अब धीरे-धीरे बढता ही जा रहा है। आपको बता दें कि जैविक स्रोतों से प्राप्त है ये बायो डीजल व डीजल की तुलना में एक वैकल्पिक ईंधन है, जो बिना परिवर्तित किये ही परम्परागत डीजल इंजनों को चला सकता है। काकीनाड़ा सेज में स्थापित भारत का यह सर्वप्रथम बायोडीजल संयंत्र आस्ट्रेलिया के सहयोग से किया गया है। यह नवीनीकरकण से बनाया जाता है। भविष्य का इंधन माना जाने वाला यह परम्परागत ईंधन का एक साफ-सुथरा विकल्प है। इसमें पेट्रोलियम न होने पर भी समान्य मात्रा में पेट्रोलियम मिलाकर कई तरह की गाड़ियों में इस्तेमाल किया जाता है। बायोडीजल विषैला न होकर बायोग्रेडिबल होता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि यह भविष्य का ईंधन है। जो अन्य वैकल्पिक ईंधनो से अलग वानस्पतिक तेलों से प्राप्त होता है। इसका प्रयोग बिना किसी परिवर्तन के डीजल इंजन में कर सकते हैं। जबकि वनस्पति तेलों से प्राप्त ईंधनों में ऐसा कुछ भी नही होता है। उसमें सिर्फ इग्निशन कम्बस्शन वाले इंजनो में ही इस्तेमाल किया सकता है और वो भी कुछ परिवर्तनों के बाद ही। बायो डीजल को बनाने हेतु मेथेनोल, सोडियम हाइड्रोक्साइड, जेट्रोफा तेल का इस्तेमाल होता है। इसका सबसे कारण यह है कि सबसे ज्यादा आसान ईंधनो में से एक है बायोडीजल प्रयोग। इतना ही नही खेती में काम करने वाले उपकरणों में भी इसका प्रयोग किया जा सकता है।

दरअसल ट्रान्स-इस्टरीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनता है ये बायोडीजल। जिसमें वसा, तेल या फिर वनस्पति से गिल्रीन निकाला जाता है और इसमें ग्लिसरीन व मेथ्ल इस्टर आदि चाजें मिलती हैं। परम्परागत ईंधनो में पाया जाने वाला अरोमैटिक्स व बायोडीन में सलिफर नही पाया जाता है। इसकी सबसे अच्छी व बड़ी बात यह है कि दूसरे ईंधनों की अपेक्षा यह पर्यावरण के लिए हानिकारक नही होता है। बायोडीडल फिर से नवीन किये जा सकने वाले स्रोतों से प्राप्त है और यह प्रदूषण करने वाले धुवें को पैदा नही करता है।

जिस प्रकार से देश में पेट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल बढ़ रहा है, उसको देखकर तो ये साफ पता चलता है कि 40-50 वर्षों में तेल का भंडार खत्म हो जाएगा। भविष्य में ईंधन का विकास करना बहुत जरूरी है और इस जरूरत को जैट्रौफा नाम का पौधा ही खत्म कर पाएगा। यह पौधा ज्यादातर कई भागों में उगने लगा है और इसको रतनजोत, बायोफ्यूल जैव ईंधन, जैट्रोफा , ट्रोफा मिथाईल ईस्टर, जैव डीजल, करकास व बायोडीजल के नाम से भी जाना जाता है। यह पौधा कई सालों तक फल व 8-10 सालों तक लगातार बीज देने वाला होता है। इसके बीजों में लगभग 40 प्रतिशत तेल होता है व डीजल बनाने के लिए वास्तविक डीजल में करीब 18 प्रतिशत जैट्रोफा के बीजों से प्राप्त तेल को मिलाकर बनाया जाता है। जिसके बने इस बायोडीजल का प्रयोग बस, ट्रक, जनरेटर, ट्रैक्टर इत्यादि में किया जा सकता है।

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