Friday, April 12, 2024
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एक महान युग की समाप्ति

SI News Today

End of an greatest era.

       

अगर हमें किसी को समकालीन  भारतीय राजनीति का ग्रैंड ओल्ड मैन पद से सम्मानित करना हो तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सबकी पसंद होंगे. उन्होंने अपने आचरण और व्यक्तित्व ने न केवल सभी देशवासियों का, बल्कि विपक्षी दलों का भी दिल जीता है, इसलिए शायद 2004 में भारत के पीएम पद से हटने के बाद से लेकर आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ कि विपक्षी दाल ने उनकी  आलोचना की हो. इसलिए  अगर भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह और अजातशत्रु कहलाने का गौरव किसी को हासिल है तो वो अटल बिहारी वाजपेयी ही हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्‍म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था. मां का नाम कृष्णा वाजपेयी और पिता  पण्डित कृष्ण बिहारी वाजपेयी  थे. अटल जी के बी०ए० की शिक्षा ग्वालियर के विक्टोरिया कालेज (वर्तमान में लक्ष्मीबाई कालेज) में हुई. अपने छात्र जीवन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बने और तभी से राष्ट्रीय स्तर की वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे. उन्‍होंने कानपुर के डी०ए०वी० कॉलेज से राजनीति शास्त्र में एम०ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. जिसके बाद उन्होंने कानपुर में ही एल०एल०बी० की पढ़ाई शुरू की लेकिन उसे बीच में ही छोड़कर  संघ-कार्य में जुट गए.

अटल जी भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक रहे हैं, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी नाम से राजनैतिक पार्टी बनी. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी व मनमोहन सिंह के बाद अटल बिहारी वाजपेयी सबसे लंबे समय तक गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे हैं. 1955 में उन्होंने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. जिसके बाद 1959 में बलरामपुर  से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे. 1957 से 1977 जनता पार्टी की स्थापना तक अटल जी बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे.  वही मोरारजी देसाई की सरकार में वे 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे.

1980 में उन्होंने जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की. जिसके बाद 6 अप्रैल, 1980 में उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद का  सौंपा गया. दो बार राज्यसभा के लिए भी निर्वाचित होने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने 1996 में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली. पहली बार 16 से 31 मई, 1996 तक वे प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे.  19 मार्च, 1998 को फिर उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.  1998 में पोखरण में परमाणु विस्‍फोट करके उन्‍होंने देश को दुनिया के कुछ गिने-चुने परमाणु संपन्‍न देशों में शुमार करवा दिया.

1942  :  स्वतंत्रता संघर्ष में हिस्सा लिया जिसकी वजह से वे जेल गए.

1975-77 : आपातकाल के दौरान उन्हें  बन्दी बनाया गया था.

1992 :  उन्हें राष्ट्र की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए पद्म विभूषण दिया गया.

1993 : कानपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें फिलॉस्फी की मानद डाक्टरेट उपाधि प्रदान की गई.

1994 :  लोकमान्य तिलक पुरस्कार तथा सर्वोत्तम सांसद के लिए भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत पुरस्कार उन्हें प्रदान किया गया.

1999 : का कारगिल युद्ध और 2001 में संसद पर हमला उनके कार्यकाल में ही हुआ.

अटल जी ने पाकिस्‍तान के साथ संबंधों को सुधारने के लिए दिल्‍ली से लाहौर के बीच बस सेवा शुरू की. जिससे वह खुद पहले पाकिस्‍तान गए. वे ऐसे पहले विदेश मंत्री थे, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था. उन्होंने सौ साल से भी ज्यादा पुराने कावेरी जल विवाद को सुलझाने से लेकर सॉफ्टवेयर विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल, केन्द्रीय बिजली नियंत्रण आयोग आदि का गठन किया.

बता दें कि एक लंबे समय तक अटल जी ने राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया. इसके अलावा वे ओजस्वी एवं पटु वक्ता एवं प्रसिद्ध हिन्दी कवि भी रहे. उनकी लिखी हुई कविता का पंक्ति कुछ इस प्रकार है-

मनाली मत जइयो
मनाली मत जइयो, गोरी
राजा के राज में.
जइयो तो जइयो,
उड़िके मत जइयो,
अधर में लटकीहौ,
वायुदूत के जहाज़ में.
जइयो तो जइयो,
सन्देसा न पइयो,
टेलिफोन बिगड़े हैं,
मिर्धा महाराज में.
जइयो तो जइयो,
मशाल ले के जइयो,
बिजुरी भइ बैरिन
अंधेरिया रात में.
जइयो तो जइयो,
त्रिशूल बांध जइयो,
मिलेंगे ख़ालिस्तानी,
राजीव के राज में.
मनाली तो जइहो.
सुरग सुख पइहों.
दुख नीको लागे, मोहे
राजा के राज में.

कहा जाता है कि महात्मा रामचंद्र वीर द्वारा रचित अमर कृति ‘विजय पताका’ को पढ़कर अटल जी के जीवन की दिशा ही बदल गई.

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