Wednesday, March 27, 2024
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जूली आदिवासी : एक महिला का लाल बत्ती से लेकर बकरी चराने तक का कठिन सफर

SI News Today

A woman’s journey from red light car to grazing up a goat.

      

शिवपुरी, मध्य प्रदेश।

एक दुःख भरी दास्तान है मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले बदरवास की। एक तरफ जहाँ कई साधुओं को राज्यमंत्री बनाने पर आमादा वर्तमान शिवराज सरकार मध्य प्रदेश को पूरी दुनिया में मज़ाक बनाने पर तुले हैं वही अपने पूर्वत और ईमानदार राजयमंत्रियों की खबर लेने तक की सुध नहीं है। नरेंद्र मोदी जी महिला सशक्तिकरण पर बल दे रहें हैं मगर इस बात पर अमल कौन करता है? कौन बिल्ली के गले में घंटी बांधे?

कभी राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त जूली एक समय में लाल बत्ती वाली गाड़ी में घूमती थी। अफसर उन्हें सलाम ठोकते थे, मैडम-मैडम कहकर बुलाते थे आज उसी वक्त ने एक राज्यमंत्री को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर कर दिया।

जूली आदिवासी यहां शिवपुरी की जिला अध्यक्ष थी, लेकिन समय ने जैसे ही अपना पासा पलटा लाल बत्ती में घूमने वाली जूली सड़कों पर आ गयी और आज वो गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर है। वह आज अपने परिवार के पालन पोषण के लिए रामपुरी के ग्राम लुहारपुरा में जद्दोजहद कर रही है, पेट पालने के लिए बकरियां चरा रही है। जिला पंचायत अध्यक्ष के पद पर आसीन रह चुकी जूली गरीबी रेखा के नीचे आती है। जूली को इंदिरा आवास योजना के तहत रहने के लिए घर तो मिला लेकिन वो घर भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, इस वजह से आज जूली अदद आवास तक के लिए मोहताज हैं।

साल 2005 में वार्ड क्रमांक-3 से कोलारस के पूर्व विधायक रामसिंह यादव ने जूली आदिवासी को जिला पंचायत सदस्य बनाया था। जिला पंचायत सदस्य बनने से पहले जूली मजदूरी का काम काम किया करती थी। जिला पंचायत की सदस्य बनने के बाद शिवपुरी के पूर्व विधायक वीरेंद्र रघुवंशी ने उसे जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया। पांच साल तक महिला को राज्य मंत्री का दर्जा मिला और अफसर उन्हें सलाम ठोकने लगे, तब लालबत्ती में उनका आना जाना शुरू हो गया।

सरकारी दस्तावेजों में तो उन्हें इंदिरा आवास योजना का लाभ मिल चुका है लेकिन हकीकत कुछ और ही है। दरअसल, सरकारी जमीन पर बनी उसकी झोपड़ी किसी के रहने लायक नहीं है। जूली के अनुसार इस योजना की क़िस्त तो उन्हें जारी कर दी गयी लेकिन उसे एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली, इसलिए घर बनाने के लिए खरीदी गयी ईंटें वैसी की वैसी रखी हुई हैं।

उन्हें बस बकरी चराने के लिए 40 रुपये महीने दिए जाते हैं। फिलहाल वे रोजाना 40 बकरियों को चराकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रही है, जब बकरियां नहीं होती तब वे मजदूरी करने चली जाती हैं और जब मजदूरी भी नहीं मिलती तो परिवार का पेट पालने के लिए उन्हें गुजरात जाना पड़ता है। जूली ने बताया कि जिन लोगों ने उसकी मदद से उंची पोस्ट और पहचान हासिल की है, अब वो लोग भी उसे पहचानने से इंकार करते हैं, इस बात का उन्हें बहुत दुख है।

जूली ने बताया कि वह प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत स्वीकृत हो रहे मकानों के लिए जब सेक्रेट्री और जनपद पंचायत के पास पहुंची तो अधिकारियों ने उसे भगा दिया। उनकी खुद की झोंपड़ी की हालत बहुत खराब है, आम इंसान तो छोड़िये वह झोपड़ी जानवर के रहने लायक भी नहीं है।

Source: Social World

SI News Today

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