Saturday, April 13, 2024
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निचली अदालत ने WhatsApp के जरिये सुनाया आदेश, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- न्याय प्रशासन की बदनामी की अनुमति नहीं है

SI News Today

The lower court ordered through WhatsApp, Supreme Court said, defamation of justice administration is not allowed

    

क्या आपने कभी किसी आपराधिक मामले में व्हाट्स ऐप के जरिये मुकदमा चलाते सुना है?अगर नहीं तो अब हम आपको बताएंगे. दरअसल, वाकया हजारीबाग की अदालत का है, जहां न्यायाधीश ने व्हाट्स ऐप कॉल के जरिये आरोप तय करने का आदेश देकर आरोपियों को मुकदमे का सामना करने को कहा.

बता दें, झारखंड के पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और उनकी पत्नी निर्मला देवी 2016 के दंगा मामले में आरोपी हैं. जिन्हे पिछले साल शीर्ष अदालत ने इस शर्त पर जमानत दी थी कि वे भोपाल में रहकर अदालती कार्यवाही में हिस्सा लेने के अतिरिक्त झारखंड में प्रवेश नहीं करेंगे. हालांकि, आरोपियों ने अब शीर्ष अदालत से कहा है कि आपत्ति जताने के बावजूद निचली अदालत के न्यायाधीश ने 19 अप्रैल को व्हाट्स ऐप कॉल के जरिये उनके खिलाफ आरोप तय कर दिया.

न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एलएन राव की पीठ ने इस दलील को गंभीरता से लेते हुए कहा, झारखंड में क्या हो रहा है. इस प्रक्रिया की अनुमति नहीं दी जा सकती है और हम न्याय प्रशासन की बदनामी की अनुमति नहीं दे सकते.

वहीं पीठ ने झारखंड सरकार की ओर से मौजूद वकील से कहा, हम यहां व्हाट्स ऐप के जरिये मुकदमा चलाए जाने की राह पर हैं. इसे नहीं किया जा सकता. यह किस तरह का मुकदमा है. क्या यह मजाक है.

पीठ ने दोनों आरोपियों की याचिका पर झारखंड सरकार को नोटिस भेजा है और दो सप्ताह के अंदर राज्य से इसका जवाब देने को कहा है. आरोपियों ने अपने मामले को हजारीबाग से नयी दिल्ली स्थानांतरित करने की मांग की है. झारखंड के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा कि साव जमानत की शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं और ज्यादातर समय भोपाल से बाहर रहे हैं, जिसकी वजह से मुकदमे की सुनवाई में देरी हो रही है.

वहीं इस पर पीठ ने कहा, अगर आपको आरोपी के जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने से दिक्कत है तो आप जमानत रद्द करने के लिये अलग आवेदन दे सकते हैं. हम साफ करते हैं कि जमानत की शर्तों का उल्लंघन करने वाले लोगों से हमें कोई सहानुभूति नहीं है.

वहीं दंपति के अधिवक्ता विवेक तन्खा ने कहा कि आरोपी को 15 दिसंबर 2017 को शीर्ष अदालत ने जमानत दी थी और उन्हें जमानत की शर्तों के तहत मध्य प्रदेश के भोपाल में रहने का निर्देश दिया गया था.

उन्होंने कहा, मुकदमा भोपाल में जिला अदालत और झारखंड में हजारीबाग की जिला अदालत से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये चलाने का निर्देश दिया गया था. तन्खा ने कहा कि भोपाल और हजारीबाग जिला अदालतों में ज्यादातर समय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग संपर्क बहुत खराब रहता है और निचली अदालत के न्यायाधीश ने ‘व्हाट्स ऐप’ कॉल के जरिये 19 अप्रैल को आदेश सुनाया. पीठ ने तन्खा से पूछा कि दोनों आरोपियों के खिलाफ कितने मामले लंबित हैं. तनखा ने बताया कि साव के खिलाफ 21 मामले जबकि उनकी पत्नी के खिलाफ नौ मामले लंबित हैं.

उन्होंने कहा, दोनों नेता हैं और राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम द्वारा भूमि अधिग्रहण किये जाने के खिलाफ विभिन्न प्रदर्शनों का नेतृत्व किया है और इनमें से ज्यादातर मामले उन आंदोलनों से जुड़े हैं.

तन्खा ने कहा कि चूंकि दोनों ये मामले दायर करने के समय विधायक थे इसलिये उनके खिलाफ इन मामलों में मुकदमा दिल्ली की विशेष अदालत में अंतरित किया जाना चाहिये, जो नेताओं से संबंधित मामलों पर विशेष तौर पर विचार कर रही है.

बता दें , साव और उनकी पत्नी 2016 में ग्रामीणों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प से संबंधित मामले में आरोपी हैं. इसमें चार लोग मारे गए थे. साव अगस्त 2013 में हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री बने थे.

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