Friday, March 29, 2024
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दहेज कानून में फर्जी केस में गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला

SI News Today

Supreme Court decides on arrest of fake case in dowry law

   

भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए के तहत दहेज प्रताड़ना केस में शुक्रवार को सर्वोच्च अदालत ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों में गिरफ्तारी होने या न होने को तय करने का अधिकार पुलिस को फिर से दे दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि प्रत्येक राज्य के डीजीपी को इस मामले में पुलिस अफसरों व कर्मियों में जागरुकता फैलाएं व उन्हें बताएं कि सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी को लेकर जो सिद्धान्त दिया है आखिर है क्या।

वहीं गिरफ्तारी से पहले दहेज प्रताड़ना की जांच के लिए सिविल सोसायटी की कमेटी बनाने की गाइडलाइन को भा हटाया दिया गया है। पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पति व उसके रिश्तेदारों के सरंक्षण करने के लिए जमानत के रूप में अदालत के पास अधिकार मौजूद है। तो कोर्ट इस प्रकार के आपराधिक मामले की जांच के लिए सिविल कमेटी नियुक्त नहीं कर सकता है और इसालिए इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। जिसके पश्चात सुप्रीम कोर्ट के दो सदस्यीय बेंच के फैसले को संशोधित करते हुए तीन सदस्यी बेंच ने कहा कि इस प्रकार कोर्ट कानून की खामियों को नहीं भर सकता। ये कानून कार्यपालिका द्वारा लाकर ही करना संभव है। इसी के आगे सुप्रीम ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि यदि दोनों पक्षों में समझौता होता है तो कानून के नियम के अनुसार वो हाईकोर्ट जा सकते हैं। और यदि पति पक्ष कोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करता है तो केस की उसी दिन सुनवाई की जा सकती है।

बता दे कि इससे पहले भी  इसी साल अप्रैल माह में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के पश्चात अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 2017 में इस मामले में चली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने आदेश देकर कहा था कि दहेज उत्पीड़न की शिकायतों पर तुरंत गिरफ्तारी न हो और ऐसे मामलों को देखने के लिए हर ज़िले में फैमिली वेलफेयर कमिटी बनाया जाए। साथ ही, उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई हो। दो जजों की बेंच के आदेश को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। वहीं इस पर याचिका दायर कर कहा गया कि कोर्ट को कानून में इस तरह का बदलाव करने का हक नहीं है। कानून का मकसद महिलाओं को इंसाफ दिलाना है पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण देश भर में दहेज उत्पीड़न के मामलों में गिरफ्तारी बंद हो गई।

गौरतलब है कि इसके पहले भी  जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस यूयू ललित की दो जजों की बेंच ने महिलाओं के लिए बने कानूनों के दुरुपयोग के मामले को लेकर अहम निर्देश जारी किए थे। कोर्ट ने अपने आदेश में दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग की शिकायतों को देखते हुए ऐसे मामलों में तत्काल गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी। जिसमें दहेज प्रताड़ना के मामलों में अब पति या ससुराल वालों की तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी व आईपीसी की धारा 498-ए के दुरुपयोग से सुप्रीम कोर्ट ने एक मुख्य कदम उठाते हुए इस सिलसिले में कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किए थे। एनसीआरबी के रिकॉर्ड के मुताबिक, साल 2009 के दौरान करीब 1 लाख 74 हजार लोगों की गिरफ्तारी 498ए के अंतर्गत हुई थी व इनमें 8,352 केस फर्जी साबित हुए। 2012 में 498ए के तहत केस दर्ज करने का रेट 93.6फीसदी रहा जबकि इसमें सिर्फ 14.3 फीसदी ही दोषी ठहराए गए थे।

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