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अशोक सिंह राजपूत–मयंमार के सैनिकों द्वारा रोहिंग्या को आखिरकार इसलिए खदेड़ा गया क्यूंकि मयंमार के बहुसंख्यक बौद्ध-नागरिकों, परिवारों और गावंवालों पर किये गए अत्याचार और लूट को बीते कई दशकों से व्यापकता से अंजाम दिया गया था सेना भी गठित के विद्रोह किया, रोहिंग्या-घुसपैठिये मयंमार के अलावा असम और वेस्ट-बंगाल में वोटर और राशन कार्ड जुगाड़ लेने के बाद अब भी यह समझ रहे हैं बांग्लादेश के रास्ते भारत उनके लिए एक स्थाई-धर्मशाला के बतौर है
सन् 1962 में म्यांमार के अंदर तख्तापलट के बाद से आई सरकारों ने लगातार रोहिंग्याओं के अधिकार सीमित करने शुरू कर दिए थे रोहिंग्या-मुस्लिमो ने अपनी सेना तक बना रखी है और यह घुसपैठिये शरणार्थी के बजाय इस्लामिक मुल्क बनाना चाहते है, कौन देश अपने मुल्क के टुकड़े सहन करेगा? भारत मे अवैध-बंग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या सरकारी आंकडों मे 3.1 करोड और गैर सरकारी आंकडे 4 करोड से उपर पहुंचने के बाद भारत देश के लोग टैक्स भरे और मानवता के नाम पर घुसपैठियों को लालन-पालना क्यों किया जाये बोलो लकड़बग्घों क्यों?
बीते साल हथियारबंद रोहिंग्या चरमपंथियों ने अराकन रोहिंग्या सलवेशन आर्मी के आतंकियों ने म्यांमार में 3 बॉर्डर-गार्ड पोस्ट्स पर हमले किए, ताजा एआइएमआइएम प्रमुख ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विषय पर गोलबंदी कर भारत में रोहिंग्या-रिफ्यूजी को भारत में रहने देने की वकालत की, इंडोनेशिया, मलयेशिया, पाकिस्तान और तुर्की जैसे मुस्लिम देशों ने म्यांमार की हिंसा को लेकर चिंता व्यक्त की है
रोहिंग्या-समुदाय पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा भारत के असम, बिहार, बंगाल और कश्मीर, दिल्ली और महाराष्ट्र में लाखों-लाख की संख्या में अवैध-बंग्लादेशी कई वर्षों से भारत में घुस चुके हैं विविधता-मानवता को तिलांजली देते हुए रोहिंग्या-घुसपैठियों को हथौडे से ठोको समय की पुकार है रोहिंग्या ही नहीं बंग्लादेशी घुसपैठिए भी देश से बाहर किये जाएं क्योंकि अब साफ़ जानकारियां हैं कश्मीर के आतंककवाद की घटनाओं में रोहिंग्या -घुसपैठियों की संलिप्तता वाया पाकिस्तान मिलती है।