Tuesday, April 29, 2025
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कच्‍चा दूध पीने से सेहत को खतरा, हो सकती है ये बीमारियां…

SI News Today

ग्रामीण क्षेत्रों में पशुओं का दूध कच्चा ही पीने का चलन है और लोग इसे फायदेमंद मानते हैं, वहीं पिछले कुछ समय से बकरी के कच्चे दूध को डेंगू की कारगर दवा बताकर प्रचारित किया जा रहा है और शहरों में भी लोग इसका सेवन कर रहे हैं, लेकिन इन सबके विपरीत विशेषज्ञ कहते हैं कि बिना उबाले किसी भी पशु के दूध का सेवन करना नुकसानदेह है और इससे ब्रूसेलोसिस जैसी बीमारी भी हो सकती है जो उपचार नहीं होने पर जानलेवा साबित होती है। हाल ही में मेदांता-मेडिसिटी गुड़गांव में इस तरह का मामला सामने आया जहां आये एक बुजुर्ग रोगी को पिछले करीब दो महीने से सांस लेने में दिक्कत और बार बार बुखार की समस्या थी। ब्लड कल्चर की जांच में ब्रूसेलोसिस का पता चला जो पशुओं से होने वाला बैक्टीरियल संक्रमण है। डॉक्टरों ने जब कारणों की पड़ताल की तो पता चला कि वह नियमित बकरी का कच्चा दूध पीते थे और आम तौर पर पशुओं में पाये जाने वाला घातक बैक्टीरिया उनके शरीर में आ गया।

मेदांता की इंटरनल मेडिसिन की निदेशक डॉ सुशीला कटारिया ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में आज भी कच्चा दूध पीने का चलन है और लोग इसे रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला मानकर इसका नियमित सेवन करते हैं। इस समय डेंगू के रोगियों को भी दवा के रूप में बकरी का कच्चा दूध पीने की सलाह दी जाती है। लेकिन इन सब मामलों में बकरी के कच्चे दूध से चिकित्सकीय लाभ के कोई क्लीनिकल साक्ष्य नहीं है। उन्होंने बताया कि किसी भी मवेशी का कच्चा दूध बहुत घातक है जिसके माध्यम से मानव शरीर में ब्रूसेला बैक्टीरिया आ जाता है और सही समय पर इसकी पहचान और इसका उपचार नहीं होने पर यह जानलेवा भी हो सकता है।

डॉ कटारिया ने बताया कि ब्रूसेलोसिस के आम लक्षणों में लंबे समय तक बुखार होता है जो कई महीनों तक भी रह सकता है। इनके अलावा अन्य लक्षणों में कमजोरी, सिर में दर्द और जोड़ों, मांसपेशियों तथा कमर का दर्द शामिल है। लेकिन कई मामलों में बुखार को सामान्य मान लिया जाता है और जांच में रोग का पता नहीं चल पाता। उन्होंने कहा कि सही हाइजीन आदि का ख्याल नहीं रखने पर पशु इस तरह के बैक्टीरिया के संक्रमण से ग्रस्त होते हैं और ऐसा नहीं है कि बार बार दूध पीने से ही संक्रमण होने की आशंका रहती है, बल्कि मनुष्य को एक बार भी दूध बिना उबाले पीने पर संक्रमण का जोखिम होता है।

डॉ कटारिया ने कहा कि पनीर और आइसक्रीम जैसे उत्पाद भी दूध को उबलने तक गर्म करके नहीं बनाये जाते तो ब्रूसेलोसिस का खतरा होता है। उन्होंने कच्चे दूध से बनी आइसक्रीम का सेवन करने वाले एक व्यक्ति को ब्रूसेलोसिस का संक्रमण होने के वाकये का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कच्चे दूध के फायदों के कोई क्लीनिकल साक्ष्य नहीं हैं और दूध का इस्तेमाल उबालकर ही करना चाहिए।

डॉ कटारिया ने कहा कि बीमारी का पता चलने पर इसका शत प्रतिशत इलाज हो सकता है और छह सप्ताह तक दवाइयां लेनी होती हैं। सामान्य रक्त रिपोर्ट में इसका पता चलने की संभावना कम होती है। विशेष रूप से जांच करानी होती है। कुछ अध्ययनों में भी उबले दूध की तुलना में कच्चे दूध का सेवन नुकसानदायक बताया गया है।

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