साल 2008 में हुए बीजिंग ओलंपिक को शायद ही कोई भारतीय बॉक्सिंग फैन भूल पाएगा. यह पहला मौका था, जब विजेंदर सिंह ने देश को मुक्केबाजी में पहला ओलंपिक मेडल दिलाया था. उसके बाद देश में मुक्केबाजी की दिशा और दशा पूरी तरह से बदल गई. पूरे देश में विजेंदर के नाम की धूम थी. लेकिन जिस तरह से उम्मीदें परवान चढ़ीं उसी तरह से उतर भी गईं. बीजिंग के बाद लंदन, फिर रियो ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाजों के खराब प्रदर्शन ने देश को मायूस कर दिया. भारतीय मुक्केबाजी फेडरेशन का सस्पेंड होना, चीफ कोच जीएस संधू पर लगातार करप्शन के आरोपों ने न सिर्फ देश के युवा और होनहार मुक्केबाजों के हौसलों को तोड़ा बल्कि फैंस को भी मायूस किया. कोई भी भारतीय मुक्केबाज उम्मीदों की कसौटी पर खरा नहीं उतर सका. सरकार ने बॉक्सिंग पर पैसा तो पानी की तरह बहाया. लेकिन कुछ चापलूस और भ्रष्ट कोच और अधिकारियों ने भारतीय बॉक्सिंग को अर्श से फर्श तक पहुंचा दिया.
भारतीय बॉक्सिंग में फिर दी है नई सुबह को दस्तक
मजबूत इरादों के साथ एक बार फिर भारतीय बॉक्सिंग नये रास्ते पर चल पड़ी है. जिसकी बागडोर गुरु-चेले की जोड़ी के हाथों में हैं. इस जोड़ी ने बेहद ही कम में वो कर दिखाया, जिसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी. भारतीय बॉक्सिंग के नए चीफ कोच द्रोणाचार्य अवार्डी स्वतंत्र राज सिंह और देश के पहले प्रोफेशनल बॉक्सर, ओलंपियन और अर्जुन अवार्डी धर्मेंद्र सिंह यादव पूरी मेहनत और जोर-शोर के साथ भारतीय बॉक्सिंग को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाने में जी-जान से जुटे हैं. हाल ही में उज्बेकिस्तान में खेली गई एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारतीय मुक्केबाजों ने गजब का प्रदर्शन किया. इस चैंपियनशिप में भारत को दो सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल मिले और पहली बार भारत के 10 मुक्केबाजों में से सात बॉक्सर वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप के लिए क्वालिफाई करने में कामयाब रहे. जो अपने आप में बड़ा रिकॉर्ड है. इस पूरे टूर्नामेंट में भारत तीसरे नंबर पर रहा. शिवा थापा बेहद ही मामूली अंकों से गोल्ड मेडल से चूके. लेकिन इस बेहद ही शानदार रिजल्ट के बावजूद बॉक्सिंग के जानकार मान रहे हैं कि अगर ट्रायल के दौरान भाई-भतीजावाद नहीं होता तो, नतीजे इससे भी बेहतर हो सकते थे. शिवा थापा, सुमित सांगवान को सिल्वर और विकास कृष्ण यादव, अमित पंघल को ब्रॉन्ज मेडल से संतोष करना पड़ा.
भारतीय बॉक्सिंग फेडरेशन नई सोच के साथ आगे बढ़ रही है
मौजूदा भारतीय बॉक्सिंग फेडरेशन बेहद ही पेशेवर अंदाज में काम कर रही है. जिस तरह से फेडरेशन के अध्यक्ष अजय सिंह ने अनुभवी द्रोणाचार्य अवार्डी स्वतंत्र राज सिंह और धर्मेंद्र सिंह यादव जैसे धुरंधरों को भारतीय मुक्केबाजी की जिम्मेदारी सौंपी हैं. उससे यह साफ हो गया है कि आने वाले दिनों में भारतीय बॉक्सिंग नया इतिहास जरूर रचेगी. लेकिन इस जोड़ी को अच्छी सुविधाएं और पूरा समय देने की जरूरत है. जिससे यह जोड़ी अपनी आधुनिक सोच को सही तरीके से अंजाम तक पहुंचा सकें.
गुरु-शिष्य की जोड़ी पर देश को है भरोसा
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि इस समय भारतीय मुक्केबाजी की बागडोर देश के सबसे प्रतिभाशाली कोच के हाथों में हैं. धर्मेंद्र सिंह यादव देश के पहले प्रोफेशनल बॉक्सर रहे हैं और 1992 में बार्सिलोना ओलंपिक में देश का प्रतिनिधत्व कर चुके हैं. देश के सबसे युवा अर्जुन अवार्डी भी रहे हैं. धर्मेंद्र को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनके गुरु स्वतंत्र राज सिंह का सबसे बड़ा रोल रहा है. अब गुरू-शिष्य की जोड़ी नये रोल में इतिहास रचने के लिए तैयार में जुटी है. यह जोड़ी मुक्केबाजी की हर बारीकी को अच्छी तरह से जानती और पहचानती हैं. चीफ कोच स्वतंत्र राज सिंह विरोधी टीम के मुक्केबाज के खिलाफ रणनीति बनाने में बेहद माहिर माने जाते हैं. मौजूदा समय में उनकी गिनती दुनिया के बेहतरीन कोच के तौर पर होती है. वहीं धर्मेंद्र सिंह यादव का बेसिक देश के ज्यादातर मुक्केबाजों में सबसे मजबूत हैं, जिसका श्रेय स्वतंत्र राज सिंह को ही जाता है. अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होने के नाते धर्मेंद्र एक चैंपियन और अच्छे प्लेयर के बीच के फर्क को काफी बारीकी से समझते हैं. बस जरूरत है तो इस जोड़ी पर भरोसा बनाए रखने की.
नई दिशा की तरफ भारतीय बॉक्सिंग
तमाम उठा-पटक के बाद भारतीय बॉक्सिंग एक नई दिशा की तरफ आगे बढ़ रही है. स्वतंत्र राज सिंह और धर्मेंद्र सिंह यादव के अलावा फेडरेशन, साई और खेल मंत्रालय को पेशेवर रवैये के साथ एक दिशा में काम करना होगा. तभी 2020 में जापान की राजधानी टोक्यो में होने वाले ओलंपिक में इतिहास रचा जा सकता है