हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। इस खेल में भारत का गौरवमयी अतीत रही है। एक समय में भारतीय हॉकी टीम इतनी मजबूत होती थी कि जिसे हरा पाना दुनिया में किसी भी देश की टीम के लिए असंभव जैसा था। उस समय भारत की टीम की रीढ़ की हड्डी होते थे मेजर ध्यानचंद। मेजर ध्यानचंद को तुलना विश्व के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ियों में होती है। सभी हॉकी प्रमियो की इच्छा उन्हें खेलते देखने की है। सब जानना जाहते हैं कि आखिर ध्यानचंद ऐसा क्या करते थे कि उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है। यूट्यूब पर एक हॉकी मैच का वीडियो उपलब्ध है जिसमें ध्यानचंद को ध्यानचंद को खेलते हुए देखा जा सकता है। वीडियो की शुरुआत ओलंपिक के फ्लैग सेरेमनी से होती है सभी देश अपने अपने झंडे लेकरकर मैदान में आते हैं। इसके बाद भारतीय हॉकी टीम का मैच दिखाया गया है और मैच में बेहद खास है। ये मैच साल 1936 में हुए बर्लिन ओलंपिक के हॉकी फाइनल का है। इस समय तक हिटलर जर्मनी का तानाशाह बन चुका था। जर्मनी पर नाजी पार्टी का शासन था।
जर्मनी ने इन खेलों में अपनी पूरी जान लगा रखी थी। हॉकी में भी जर्मनी की टीम मजबूत मानी जाती थी। जर्मनी की मुख्य टक्कर साल 1928 और 1932 में स्वर्ण जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम से ही थी। टूनामेंट शुरू होने से पहले एक अभ्यान मैच में जर्मनी ने भारत को 4-1 से हरा दिया था जिसके बाद उनके हौसले बुलंद थे। दोनों टीमों का आमना सामना सीधे फाइनल में हुआ। जर्मनी के खिलाफ फाइनल मैच 14 अगस्त को खेला जाना था लेकिन तेज बारिश के चलते ये मैच एक दिन के लिए टल गए और मैच हुआ 15 अगस्त को। कहा जाता है कि मैच से पहले भारतीय टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता ने कांग्रेस का झंडा निकाला था। उस समय भारत ब्रिटेन का गुलाम था जिस कारण भारत का अपना कोई झंडा नहीं था इसलिए भारतीय खिलाड़ियों ने उसी झंडे को सलामी दी और अपनी अपनी स्टिक लिए मैदान की ओर चल पड़े। जर्मनी शुरू काफी आक्रमक खेल रही थी। हाफ टाइम तक भारत सिर्फ एक गोल से आगे था। इसके बाद ध्यान चंद ने अपने स्पाइक वाले जूते और मोज़े उतारे और नंगे पांव ही मैदान में अपनी हॉकी स्टिक लिए खेलने लगे। इसके बाद मैच का रुख ही बदल गया। इस मैच को भारत ने 8-1 से जीता। जर्मनी द्वारा किया गया ये एकलौता गोल था जो पूरे टूनामेंट में भारतीय टीम पर किया था। भारत द्वार किए गए आठ गोल में से तीन गोल अकेले ध्यानचंद ने किए थे। एेसा माना जाता है कि हिटलर ध्यानचंद के खेल से इतना प्रभावित हुआ था कि उन्होंने उन्हें अपनी सेना में उच्च पद और जर्मनी की टीम से खेलने का ऑफर तक दे दिया था जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था।