सत्तरवीं वर्षगांठ के मौके पर मैं पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह आप सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई देता हूं और ईश्वर से कामना करता हूँ कि भारत अपने विकास के पथ पर बिना लडख़ड़ाये चलता रहे। और समस्त भारतवासी इस विकास के रथ को बढ़ाने में अपना पूरा सहयोग दें। 15 अगस्त की सुबह परम्परा अनुसार भारत के प्रधानमंत्री समस्त भारत अपितु समस्त विश्व को लालकिले की प्राचीर से संबोधित किया और दूसरों की कमियां और अपनी अच्छाईयां गिनाई यह कोई नई परम्परा नही है यही तो होता आया है हमारे भारत में, एक ने बोला और हम गूंगों की तरह बस सुनते गए। पिछले कुछ समय से मुझको भारत में एक विकास की लहर बहती दिख रही थी,महसूस हो रहा था कि मैं भी एक मजबूत और विकसित देश का निवासी हूँ।मेरे प्रधानमंत्री जी अपने हर भाषण में मुझको मंत्रमुग्ध कर देते थे। पिछले कुछ दिनों में भारत ने कई क्षेत्रों में अभूतपूर्व सफलता भी प्राप्त की चाहे वह चाँद पर भेजा गया मंगलयान हो या फिर पटरियों पर दौड़ती टेलगो ट्रैन। लेकिन 12 अगस्त की सुबह कुछ चीखों ने मन की शांति को झखझोर कर रख दिया। वह चीखें उन माओं की थी जिन्होंने अपने नौनिहालों को इंसेफलाइटिस नामक बीमारी से खो दिया। जिस भारत की तारीफ सारा विश्व उसके अंतरिक्ष विज्ञान के प्रगति को लेकर कर रहा था। उसी भारत मे गंदगी मात्र से होने वाली बीमारी हर साल औसत 350 बच्चों को काल के ग्रास में ले जाती है,यह आंकड़ा मात्र भारत के गोरखपुर जिले का है। लाल किले के प्राचीर से भारत के प्रधानमंत्री ने स्वस्थ भारत के लिए काफी बातें बताई लेकिन गोरखपुर के मामले को लेकर चुप से दिखे। बैरहाल यह कोई चर्चा का विषय नहीं है।लेकिन स्वच्छ भारत मिशन जैसी एक लहर चलने के बाद भी उत्तर प्रदेश के इतने महत्वपूर्ण शहरों की यह दुर्दशा कहीं न कहीं भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार के मुंह पर बदनामी का कालिख पोत रही है। और गोरखपुर जैसे संवेदन शील मुद्दे पर नेताओं के बयान भी जख्मों पर नमक लगाने के लिए काफी है। मुख्यमंत्री द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की बात कही और इंसेफलाइटिस बीमारी से 20 साल से लड़ने का दावा भी किया जो कि कहीं न कहीं सत्य प्रतीत होता है। आज भारत के साथ विश्व के कई देश अपने आपको सुरक्षित महसूस करते हैं वही भारत गंदगी मात्र से होने वाली बीमारी के आगे घुटने के बल बैठा दिख रहा है। इसी 12 अगस्त को मैं गोण्डा जिले में संकल्प तिरंगा यात्रा की कवरेज के लिए रघुकुल स्कूल गया था मुझे आशा थी कि आज यहां मौजूद तमाम नेता गोरखपुर की इस घटना पर बोलेंगे जरूर लेकिन वहां पर गजब की असंवेदनशीलता देखने को मिली सारे नेता फ़ोटो खिंचाने और मंच पर बड़े नेताओं की जी हुज़ूरी करते दिखे। नौनिहालों के परिवार की करुण पुकार डीजे और नेताओं के जयकारों के आगे दब गई। मुझे आशा थी कि आज 15 अगस्त के दिन लाल किले पर माननीय द्वारा उन मृत बच्चों के आत्मा के शांति के लिए दो शब्द तो कहे ही जायेंगे लेकिन जैसा कि होता आया है कि भारत में हमेशा से ही “कब्र पर मेले” लगते आये हैं।
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