Thursday, October 3, 2024
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पहलवानी छोड़ वडाली ब्रदर्स ने सीखा था संगीत! 1992 में पाया संगीत नाटक अवॉर्ड…

SI News Today

उस्ताद पूरणचंद वडाली के छोटे भाई उस्ताद प्यारेलाल वडाली का निधन शुक्रवार को दिल का दौरा पड़ने से हुआ था. वह पिछले कुछ समय से बीमार थे. उस्ताद पूरणचंद और उस्ताद प्यारे लाल की जोड़ी वडाली ब्रदर्स के नाम से मशहूर है और दोनों कई पंजाबी और सूफी गीत गा चुके हैं. दोनों की जोड़ी ने बॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया है. वडाली ब्रदर्स पहले पहलवानी करते थे लेकिन पिता के कहने पर संगीत सीखा और शिखर तक पहुंचे. 1992 में जब उनको केंद्र सरकार ने संगीत नाटक अवॉर्ड से नवाजा था तो उन्‍हें विश्‍वास ही नहीं हो रहा था कि उन्‍हें सम्‍मानित किया गया है. उनसे जुड़ी ऐसी ही कुछ दिलचस्‍प बातें जानिए :

बीमार चल रह थे प्‍यारे लाल
प्‍यारे लाल पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. वह हमेशा अपने बड़े भाई पूरणचंद के साथ ही शो किया करते थे. ऐसे में उनकी बीमारी के समय पूरणचंद ने अपने बेटे लखविंदर वडाली के साथ सभी शो करने शुरू कर दिए थे. इस दौरान पूरणचंद को उनकी कमी भी खलती थी.

संगीत में शुरू से थी दिलचस्‍पी
संगीत में वडाली ब्रदर्स की दिलचस्‍पी शुरुआत से ही थी. वे संगीत की विभिन्‍न विधाओं में भी पारंगत थे. उनके घर में भी संगीत को तवज्‍जो दी जाती थी. जिस संगीत घराने (पटियाला घराना) से उस्‍ताद बड़े गुलाम अली आते थे, उसी से ही वडाली ब्रदर्स भी आते थे. वैसे तो वडाली ब्रदर्स फिल्मों में गाने से हमेशा पीछे ही हटते थे. वे रंगरेज गाने को अपनी आवाज देने का ऑफर ठुकरा नहीं पाए. उन्‍होंने गाना गाया और गाना हिट हो गया.

उतार-चढ़ाव वाला रहा सफरनामा
वडाली ब्रदर्स का ताल्‍लुक पंजाब के अमृतसर जिले के गुरु की वडाली गांव से है. अपने गांव से बाहर पहली बार अपनी परफार्मेंस देने के‍ लिए वे जालंधर स्थित हरबल्‍लभ मंदिर गए थे. लेकिन वहां के हरबल्‍लभ संगीत सम्‍मेलन में उन्‍हें गाने की अनुमति नहीं मिली. ऐसा उनकी आवाज के कारण हुआ. वहां वडाली ब्रदर्स को रिजेक्‍ट कर दिया गया था. इसके बाद वडाली ब्रदर्स ने जालंधर में एक संगीत सम्‍मेलन किया. वहां उन्‍हें ऑल इंडिया रेडियो में काम करने वाले एक शख्‍स ने देखा. दोनों को पहला गाना इसी के बाद रिकॉर्ड किया गया.

करते थे पहलवानी, पिता के कहने पर संगीत सीखा
वडाली ब्रदर्स ने अपने जीवन में पहलवानी भी की थी. वे स्‍कूल नहीं गए थे. उन्‍होंने दो साल से अधिक समय अखाड़े में बिताया. दोनों पहलवानी में भी इतने पारंगत थे कि उसमें कई खिताब अपने नाम किए थे. लेकिन एक दिन उनके पिता ठाकुर दास वडाली ने उन्‍हें संगीत सीखने के लिए कहा और प्रेरित भी किया. उन्‍होंने पिता की बात मानी और उन्‍हीं से शुरुआत में संगीत सीखा. पिता से संगीत सीखने के बाद उन्‍होंने पंडित दुर्गादास और पटियाला घराना के उस्‍ताद बड़े गुलाम अली से संगीत और आवाज की शिक्षा ली. 1975 में दोनों ने जालंधर के हरबल्लभ गांव में पहली बार सूफी गायन की प्रस्तुति दी थी.

सम्‍मान से भी नवाजे गए
1992 में वडाली ब्रदर्स को भारत सरकार ने संगीत नाटक अवॉर्ड से नवाजा. इस पर उन्‍हें भरोसा ही नहीं हुआ था. क्‍योंकि उन्‍हें लगा कि जो स्‍कूल ही नहीं गए उन्‍हें सम्‍मान कैसे मिल सकता है. इसके बाद उन्‍हें 1998 में तुलसी अवॉर्ड और 2003 में पंजाब संगीत अवार्ड से सम्‍मानित किया गया. प्‍यारे लाल के बड़े भाई पूरणचंद को 2005 भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया।

सूफी गायन प्रार्थना जैसा
उस्‍ताद पूरणचंद के मुताबिक सूफी गायन की अपनी विशेषता है. उनका मानना है कि अगर सूफी गायन को फिल्‍मी गानों के रूप में भी सुना जाए तो यह प्रार्थना जैसा ही लगता है. वह सूफी गायन को प्रार्थना ही मानते है, जो व्‍यक्ति को परमात्‍मा से जोड़ने का एक जरिया है. हालांकि पूरणचंद का हाथ हिंदी में थोड़ा कमजोर है. उन्‍हें सिंधी-पंजाबी में ही बोलने में सहूलियत होती है.

सूरदास, खुसरो की रचनाओं को भी संगीत में पिरोया
वडाली ब्रदर्स ने जीवन में कई बड़े और लोकप्रिय कवियों की रचनाओं को अपने संगीत में पिरोया है. इनमें बुल्‍ले शाह, अमीर खुसरो, सूरदास और कबीर जैसे बड़े नाम शामिल हैं. वडाली ब्रदर्स ने 2003 में बॉलीवुड में शुरुआत की. फिल्‍म पिंजर में उन्‍होंने गुलजार का गाना गाया. दोनों ने काफियान, गजल और भजन, गुरबानी भी गाई. बॉलीवुड में इनकी जोड़ी को तनु वेड्स मनु में ए रंगरेज मेरे और मौसम फिल्‍म के इक तू ही तू ही गाना गाने के लिए जाना जाता है.

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