दिल्ली: ग्लोबल आइकन प्रियंका चोपड़ा भारत ही नहीं, दुनिया भर की महिलाओं की प्रेरणा बन चुकी हैं. यूनिसेफ की वैश्विक सद्भावना राजदूत के रूप में वह कई देशों में जा-जाकर बच्चों के अधिकारों पर बात कर रही हैं. प्रियंका का मानना है कि समाज में बदलाव लाने के लिए कि हमें व्यक्तिगत तौर पर अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और समाज से इन बुराइयों को जड़ से उखाड़कर फेंकना चाहिए. हमें बंद दरवाजों के अंदर नहीं, बल्कि सामने आकर बात करनी चाहिए.
प्रियंका ने यूनिसेफ कार्यालय में एक कार्यक्रम के दौरान विशेष बातचीत में कहा, “मुझे लगता है कि पिछले 10 सालों में काफी बदलाव आया है, क्योंकि आज की पीढ़ी किसी से नहीं डरती है. शायद मेरी पीढ़ी के लोगों को थोड़ा डर लगता था. हमारे माता-पिता ने जिन चीजों का सामना किया, हमने उसे बदला और हमारी पीढ़ी जिन चीजों का सामना कर रही है, उन्हें आज की नई पीढ़ी बदलेगी और इसके लिए हमें उन्हें लगातार सशक्त करना होगा. मैं 10 साल से यूनिसेफ से जुड़ी हूं और 17 साल से फिल्म उद्योग में हूं. मैंने तो यहां बहुत बदलाव देखे हैं. मैंने देखा कि अब आवाम की आवाज को रोकना मुश्किल हुआ है और आवाज ही सबसे बड़ी ताकत है.”
वह आगे कहती हैं, “अगर आप यूनिसेफ का उदाहरण लें तो यह संस्था दुनिया भर में बच्चों, किशोरों को उनके अधिकार दिलाने के लिए सरकारों, प्रशासन और कानून-निर्माताओं के पास जाकर उनसे बात करती है. वह पुराने कानून में बदलाव लाने के लिए काम करती है, ताकि बच्चों की आवाज सुनी जा सके और अभी तक इस पर काफी काम हुआ है, लेकिन बहुत काम बाकी है.”
बाल विवाह, दहेज प्रथा, शिक्षा या स्वच्छता जैसी तमाम समस्याओं को सुलझाने के लिए लोग नेताओं या बॉलीवुड हस्तियों की तरफ देखते हैं, जबकि कई समस्याएं लोग एकजुट होकर खुद भी सुलझा सकते हैं. प्रियंका कहती हैं, “मुझसे हर कोई यह सवाल करता है कि आप क्या कर रही हैं या आप क्या करेंगी. मैं कहती हूं मैं तो कर ही रही हूं. मैं पिछले 10 सालों से इस पर काम कर रही हूं. यह केवल मेरी नहीं, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है. यह हमारा देश है..हमारा घर है..यहां की समस्याओं को कोई और आकर नहीं ठीक करेगा, बल्कि हमें ही मिलकर करना होगा.”
वह कहती हैं, “हम एक साथ बड़ी संख्या में चीजों को बदलने के बारे में क्यों सोचते हैं. हम अपने स्तर पर छोटी-छोटी चीजों को भी बदल सकते हैं. हमारे समाज में अगर एक बच्चा भी प्रताड़ित है तो वह हमारे लिए कलंक है और इस कलंक को दूर करना हम सबकी जिम्मेदारी है.”
प्रियंका अभिनय और गायन के अलावा कई क्षेत्रीय फिल्मों का निर्माण भी कर रही हैं. सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाने के सवाल पर प्रियंका ने कहा, “समाज की सारी जिम्मेदारी आप केवल फिल्म उद्योग पर नहीं डाल सकते हैं. यह एक मनोरंजन का क्षेत्र है. निर्माता सामाजिक मुद्दों पर फिल्में बनाते हैं, ताकि आवाम की सोच बदल सके. उन्हें खुलकर बात करने का मौका मिले, इसीलिए मैं कहती हूं कि हम बदलाव का माध्यम हैं. पिछले 100 सालों में कई ऐसी फिल्में बनी हैं और मैंने भी बनाई हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि फिल्में बनी हैं तो बात करनी चाहिए. फिल्म आपको बोल रही है कि आपने अभी तक बात क्यों नहीं की, वह आपको आईना दिखा रही है.”
वह कहती हैं, “मैं बदलाव का एक माध्यम हूं. न ही मैं सरकार हूं और न यूनिसेफ. मेरे पास आवाज है और मैं अपनी आवाज का इस्तेमाल करती हूं. क्योंकि मैं एक सार्वजनिक शख्सियत हूं, इसलिए लोग मेरी बात सुनते हैं. मैं जहां भी जाऊंगी बदलाव के लिए जरूर काम करूंगी.” सुष्मिता सेन व रवीना टंडन जैसी कई अभिनेत्रियों ने गर्ल चाइल्ड (बच्चियों) को गोद लिया है. भविष्य में अगर आपको भी ऐसा मौका मिलता है तो क्या आप भी कुछ ऐसा करेंगी? उन्होंने कहा, “मैं अपना खुद का फाउंडेशन चलाती हूं, जहां 80 से ज्यादा बच्चे हैं. मैं उन्हें खुद पढ़ाती भी हूं और यह पूरी तरह से स्वयंसेवी संस्था है. मेरे पास उनके रिपोर्ट कार्ड्स आते हैं, इसलिए मुझे लगता है कि यह मेरे गोद लिए बच्चे ही हैं.” अपनी परियोजनाओं के बारे में प्रियंका ने कहा, “मैं फिलहाल क्वांटिको के तीसरे सीजन पर काम कर रही हूं. यह मार्च-अप्रैल तक खत्म हो जाएगा. मैं इसके बाद फिल्म पर काम करूंगी. इसके साथ मेरे पास छह-सात फिल्मों के निर्माण का काम भी है, जिनमें कुछ हिंदी व कुछ क्षेत्रीय होंगी.”