आधुनिक क्रिकेट के सबसे जेंटलमैन खिलाड़ी राहुल द्रविड़ के करियर की एक बड़ी कमी आज (3 फरवरी, 2017) दूर हो गई। यह कमी थी एक विश्वकप ट्राफी जीतने की। द्रविड़ अपने सफल-सुनहरे कैरियर में भले ही यह सपना पूरा नहीं कर पाए लेकिन उनके शिष्यों ने अंडर 19 विश्वकप जीतकर यह ट्राफी आज ‘गुरूदक्षिणा’ के रूप में उनकी झोली में डाल दी। जीत के बाद उन्होंने कहा, ‘जिस तरह इन युवा खिलाड़ियों ने मेहनत की उस पर मुझे गर्व है। यह इन खिलाड़ियों के जीवन का अब तक का सबसे यादगार लम्हा है लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि यह आखिरी हो। हो। इन्होंने अभी काफी कुछ हासिल करना है। इनकी पहचान सिर्फ इस टूर्नमेंट तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए।’
उन्होंने आगे कहा, ‘बेशक सभी खिलाड़ियों को भारत के लिए खेलने का मौका नहीं मिलता लेकिन अगर फर्स्ट क्लास क्रिकेट में भी वे अच्छा प्रदर्शन कर पाए तो यह बड़ी उपलब्धि होगी।’ बता दें कि क्रिकेट की दुनिया में ‘श्रीमान भरोसेमंद’, ‘संकटमोचक’ और ‘भारत की दीवार’ जैसे नामों से मशूह द्रविड़ अब तक किसी विश्वकप विजेता टीम का हिस्सा नहीं रहे थे। लेकिन शनिवार को भारत के जिन युवाओं ने अंडर 19 विश्वकप जीता उसके गुरु यानी कोच राहुल द्रविड़ हैं।
दरअसल भारतीय क्रिकेट की अगली नस्ल को तैयार करने की जिम्मेदारी उठाने वाले द्रविड़ ने सितारों की फौज में नहीं बल्कि टीमवर्क में भरोसा रखने वाली एकादश बनाई है और इसकी बानगी अंडर 19 विश्व कप में देखने को मिली। यह द्रविड़ का ही जज्बा था कि टूर्नामेंट के दौरान बेंगलूरू में आईपीएल की नीलामी हुई लेकिन अपनी युवा ब्रिगेड का ध्यान उन्होंने भटकने नहीं दिया। उन्होंने सिर्फ इतना कहा, ‘आईपीएल नीलामी हर साल होगी लेकिन देश के लिए विश्व कप खेलने का मौका बार बार नहीं मिलेगा।’ इसके बाद जो हुआ, वह अब इतिहास है।
द्रविड़ ने इन खिलाड़ियों को सपने देखने का हौसला दिया और वह सपना हकीकत में बदला जो वह बतौर खिलाड़ी पूरा नहीं कर पाए थे।भारत अंडर 19 विश्व कप में सबसे ज्यादा चार बार विश्व कप जीतने वाली एकमात्र टीम बन गई। अब तक आस्ट्रेलिया और उसके नाम तीन तीन खिताब थे। अपने 16 साल के टेस्ट कैरियर में 164 टेस्ट में 13288 रन बनाने वाले द्रविड़ ने वनडे क्रिकेट में 344 मैच खेलकर 10889 रन बनाए। विश्व कप में 1999 में बतौर रिजर्व विकेटकीपर उन्होंने पदार्पण किया लेकिन भारत का प्रदर्शन टूर्नामेंट में बेहद खराब रहा।
इसी विश्व कप से हालांकि द्रविड़, सौरव गांगुली और सचिन तेंदुलकर की तिकड़ी का दबदबा दिखाई देने लगा था। चार साल बाद दक्षिण अफ्रीका में गांगुली की कप्तानी में भारतीय टीम खिताब के बिल्कुल करीब पहुंची लेकिन फाइनल में यह सपना टूट गया जब आस्ट्रेलिया ने उसे हराकर खिताब जीता। द्रविड़ की कप्तानी में 2007 में भारत ने वेस्टइंडीज में विश्व कप खेला जो किसी बुरे सपने से कम नहीं था। भारतीय टीम शुरूआती दौर से ही हारकर बाहर हो गई। द्रविड़ का सपना फिर अधूरा रहा।
विधि का विधान देखिए कि भारत ने 2011 में अपनी मेजबानी में 28 साल बाद विश्व कप अपने नाम किया लेकिन महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी वाली टीम में द्रविड़ नहीं थे। द्रविड़ और गांगुली को टीम में जगह नहीं मिली और विश्व कप इनके सुनहरे कैरियर का हिस्सा नहीं बन सका। इसके बाद सितंबर 2011 में इंग्लैंड के खिलाफ आखिरी वनडे खेलकर द्रविड़ ने इस प्रारूप से विदा ली तो कहीं ना कहीं विश्व कप नहीं जीत पाने की कसक रही होगी। सात साल बाद गुरू द्रविड़ के शिष्यों ने उनके इस सपने को जिया और हकीकत में बदला। भारत के अंडर 19 चैम्पियन बनने की खुशी इस तथ्य के साथ दोहरी हो गई कि द्रविड़ का अधूरा सपना आखिरकार पूरा हुआ।