Saturday, February 15, 2025
featuredमेरी कलम से

रानी पद्मावती एक गौरवमयी आस्था का जौहर…

SI News Today

ब्युरो S.I.न्यूज़ टुडे-(पुष्पेन्द्र प्रताप सिंह): आज और बीते हुए कल के बीच के निरंतर संवाद को इतिहास कहते हैं। यही इतिहास देश का गौरव उसकी बुनियाद और वर्तमान समाज का दर्पण होता है। इतिहास मात्र एक कहानी नहीं राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का लेखा जोखा है। इतिहास से छेड़ छाड़ पर हमारा भूत ही नहीं हमारा वर्तमान और भविष्य भी प्रभावित होता है। वैसे भी हमारे देश का इतिहास खुद के अस्तित्व के लिए हमेशा से संघर्षरत रहा है। चाहे वह मैकाले हो या बाहरी आक्रमणकारी सबकी यही नीति रही है कि यदि किसी देश का वर्तमान बदलना हो तो पहले उसका इतिहास बदलो। तमाम प्रकार की समस्याओं और आक्रमण से हमारा इतिहास आज भी कहीं न कहीं अस्तित्व में होकर हमारे गौरव को महिमामंडित करता है और हमारी गलतियों का हमे एहसास भी कराता है। और जब कभी इतिहास के अस्तित्व पर आंच आयी है तब एक संघर्ष देखने को मिला है। आज हमारे सामने एक ऐसी ही समस्या खड़ी है पूरे भारत मे एक जनाक्रोश देखने को मिल रहा है। यह जनाक्रोश फ़िल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली द्वारा निर्मित फ़िल्म ” रानी पद्मावती”को लेकर है। लोगों का कहना है कि संजय लीला भंसाली ने अभिव्यक्ति की आजादी रूपी हथियार से गढ़े गए एक अलग ही इतिहास से हमारे वर्तमान इतिहास को एक बार फिर घायल करने का प्रयास किया है। रानी पद्मावती को लेकर लोगों के मन मे कई प्रकार के सवालों ने घर कर लिया है। रानी पद्मावती को लेकर बुद्धिजीवियों के अलग अलग मत देखने को मिल रहे हैं। कुछ लोग रानी पद्मावती को मलिक मुहम्मद जायसी की कल्पना मात्र मान रहे हैं। और कुछ लोग रानी पद्मावती को देवी और बलिदान का प्रतीक मान रहे हैं। इतिहास इस बात को कहां तक प्रमाणित करता है यह कहना मुश्किल है। लेकिन अगर इतिहास को देखा जाए तो 1301 ई० में रणथंभौर के शासक हमीरदेव से युद्ध जीतने के बाद अल्लाउद्दीन खिलजी को चित्तौड़ के राजा रतनसिंह ने अपने राज्य से होकर गुजरात जाने से रोका और यह बात अल्लाउद्दीन खिलजी को नागवार गुजरी उसने राजस्थान के सबसे मजबूत राज्यों में से एक चितौड़ राज्य को जीतने का मन बनाया। और 1303 ई० में अल्लाउदीन ने चित्तौड़ पर सख्त घेरा कसा। कई महीनों के घेराबन्दी के दौरान हुए चित्तौड़ के शौर्यपूर्ण प्रतिरोध के बाद अल्लाउद्दीन ने किले पर हमला बोल दिया। अनेक योद्धा लड़ते हुए मारे गए और राजपूत स्त्रियों ने और रतन सिंह की रानी पद्मनी ने वहशी अल्लाउद्दीन और उसकी दुर्दांत सेना से अपनी अस्मिता और अपने राजपुताना गौरव को बचाए रखने के लिए जौहर किया। इतनी घटना इतिहास में लिखी पढ़ी जाती है। लेकिन फिर 1540 में सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा अवधी भाषा मे एक रचना सामने आती है “पद्मावत” जिसमे यह कहा जाता है कि अल्लाउद्दीन ने रानी पद्मावती को पाने की चाहत में चितौड़ पर हमला किया। इतिहासकार इस बात को लेकर भी दो पक्ष में हैं। खैर इतिहास कैसा भी हो लेकिन हर पक्ष में रानी पद्मावती को बलिदान का प्रतीक ही माना गया है। रानी पद्मावती पर बनी फिल्म को लेकर कई हिन्दू संघठन और करणी सेना का विरोध देखने को मिल रहा है। लोगों का कहना है कि पद्मावती एक आस्था का हिस्सा हैं वो एक वीरांगना हैं उनको नृत्यांगना क्यों बनाया गया। अगर पद्मावती लोगों के भावनात्मक सम्मान से जुड़ी हैं तो क्या भावनात्मक सम्मान का इस संविधान में कोई दर्ज़ा नहीं है। और क्या भावनाओं पर व्यवसायीकरण इतना हावी है। और तो और समाज के कुछ बुद्धिजीवी इस व्यवसायीकरण को समाज का विकास और भावनात्मक सम्मान को पिछड़ी सोच की पहचान बताने से भी नहीं हिचक रहे। राजपूत संगठन की महिलाओं का कहना है कि यह एक महिला की सम्मान की बात है। लेकिन महिला के सम्मान की रक्षा के लिए एक दूसरी महिला के नाक काटने की बात कहां तक जायज़ है। विरोध हो लेकिन वह संवैधानिक दायरे में हो तो अच्छा होगा। राजपूत संगठन फ़िल्म में फिल्माए गए घूमर पर जो एक लोक नृत्य है उसमें उपयोग किये गए परिधान का और वीरांगना को नृत्यांगना दिखाने का विरोध कर रहे हैं। इस फ़िल्म का एक विवाद यह भी माना जा रहा है कि यह फ़िल्म अल्लाउद्दीन और रानी पद्मावती के इर्द – गिर्द ही नाच रही है इसमें राजा रतन सिंह को मात्र सह नायक के रूप में दिखाया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ खण्डपीठ बेंच के अधिवक्ता वीरेंद्र मिश्रा ने भी इस फ़िल्म के खिलाफ हाईकोर्ट में जनहित याचिका स० 26899/2017 दायर की है जिसमे उन्होंने SATI( PREVENTION) Act,1988 का हवाला देते हुए कहा है कि यह फ़िल्म सती प्रथा को बढ़ावा दे रही है। अधिवक्ता वीरेन्द्र मिश्रा के अनुसार सती प्रथा को किसी भी प्रकार से महिमामंडित करना सती प्रथा निवारण अधिनियम 1988 का उल्लंघन माना जायेगा। बैरहाल हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा की वह सिनेमेटोग्राफी एक्ट के तहत सेंसर बोर्ड के निर्णय के खिलाफ सक्षम प्राधिकारी के समक्ष अपील कर सकता है। लोगों के मन मे एक सवाल यह आया कि क्या जौहर और सती होना अलग बात है। ऐतिहासिक दृष्टि से दोनों प्रथायें भिन्न हैं लेकिन भारतीय संविधान में सती प्रथा निवारण अधिनियम 1988 का अध्ययन करने पर जौहर की परिभाषा ज्ञात होती है की जब कई महिलाएं एक साथ किसी कारण वश सती होती हैं तो वह “जौहर” कहलाता है। संविधान ने सती प्रथा के महिमामण्डन को पूर्ण रूप से अवैध माना है। लेकिन क्या इतिहास में हुई घटनाओं को दिखाने का मतलब उसको महिमामंडित करना है। और फ़िल्म को देखे बिना अभी से इस तरह की समीक्षा करने में भी कहीं न कहीं जल्दबाजी भी हो रही है। एक तरफ जहां करोड़ों लोग महारानी पद्मावती के गौरवशाली इतिहास से हो रहे छेड़-छाड़ के विरोध में हैं वहीं दूसरी तरफ भारत मे एक धड़ा एक व्यक्ति के अभिव्यक्ति के आजादी के लिए उसका पक्ष लिए हुए हैं। क्या करोड़ों लोगों की आस्था पर एक व्यक्ति विशेष के अभिव्यक्ति की आज़ादी भारी पड़ रही है। अगर रानी पद्मावती के बारे में बताना ही था तो वास्तविकता दिखाने में क्या समस्या आ रही थी। गौरवशाली इतिहास में अपनी कल्पनाओं को घुसेड़ना क्या सही बात है। हम अपने पीढियों को क्या देना चाहते हैं इसका फैसला हमे करना है क्या हमें आने वाली पीढ़ियों को राजा रतन सिंह,गोरा,बादल रानी पद्मावती के बलिदान की वीरगाथा विरासत में देनी है या फिर अपने चाचा व ससुर जलालुद्दीन खिलजी की धोखे से हत्या करके राजगद्दी हथियाने वाले वहशी और क्रूर अल्लाउद्दीन खिलजी के चरित्र को प्रभावशाली बताना है। फिल्मकारों को पूरा हक है कि वह इतिहास पर फ़िल्म बना कर इतिहास को दुनिया के सामने लाये। लेकिन उनको कोई भी हक नहीं हैं कि वह इतिहास का चरित्र चित्रण अपने इच्छानुसार करें। अब देखना यह है कि इस आस्था के जौहर की ज्वाला कब शांत होगी।।

SI News Today

Leave a Reply