Tuesday, April 16, 2024
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ऐसी बुलंद हौसलों वाली कहानी जानकर करेंगे सलाम, एवरेस्ट को फतह करने वाली विश्व की पहली विकलांग महिला पर्वतारोही

SI News Today

The world’s first handicapped women climbers, who will conquer Everest.

      

दोस्तों अक्सर आपके सामने ऐसे लोगों की कहानियां खुलकर सामने आ जाती हैं जिनको पढ़ने, सुनने व जानने के बाद आपके रोगटें खडे हो जाते हैं, आप भावुक भी हो जाते हैं लेकिन सबसे ज्यादा वो आपको प्रेरणा देते हैं हार नही मानने का, हर हाल में जीत हासिल करने का। तो आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताएंगे जिनके सामने न जाने कितनी परेशानियां आई, न जाने कितनी बार उन्हें लोगो से ताना सुनना पड़ा और घटनाएं तो ऐसी घटी जो उनकी जिंदगी ही छीन लेना चाहती थी। वो कहते हैं न अगर इंसान के अंदर जज्बा हो कुछ करने का कुछ बनने का तो उसे दुनिया की कोई भी चीज आगे बढने से रोक नही सकती है। जी हां कुछ ऐसा ही हुआ था अरुणिमा सिन्हा के साथ, जिन्होंने अपनी कमजोरी, लाचारी व बेबसी को ही अपनी ताकत बनाया और निकल पड़ी पूरा करने अपना सपना। शायद इसीलिए कहा गया है कि जहां चाह है वहां राह है।

हम आपको बता दे कि अरुणिमा वहीं महिला हैं जो सिर्फ शरीर से विकलांग थी पर दिमाग से नही। अरुणिमा देश की वो पहली विकलांग महिला है जिन्होंने अपने एक पैर को खोने को बावजूद दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी-एवरेस्ट को फतह करने वाली विश्व की पहली महिला पर्वतारोही बनी, जिन्होंने स्वयं को नारी शक्ति के अद्वितीय उदाहरण के रूप में पेश किया। तो आईये जानते हैं देश की उस महिला के बारे में जो उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर अंबेडकर नगर की रहने वाली है और आज वो किसी परिचय की मोहताज भी नहीं है। अरुणिमा ने 3 साल की उम्र में ही अपने पिता जो सेना में इंजीनियर थे उनको खो दिया था। और उनकी मां हेल्थ डिपार्टमेंट में सुपरवाइजर थी। क्या आप जानते हैं कि अरुणिमा की जिंदगी की 2011 में 11 अप्रैल को एक काली रात थी। जिसे वो चाहकर भी कभी भूल नही सकती हैं। दरअसल उस दिन वो सीआईएसएफ की परीक्षा देने पद्मावती एक्सप्रेस से लखनऊ से दिल्ली जा रही थी। रात के लगभग 1 बजे कुछ शातिर व खूंखार अपराधी ट्रेन के डिब्बे में चढ़ गए। और जब उन्होंने अरुणिमा को अकेले देखा तो वो उनके गले की चेन खींचने लगे। तो अरुणिमा ने जब इसका विरोध किया तो उन चोरों ने अरुणिमा को चलती हुई ट्रेन से फेंक दिया जिसके बाद वो दूसरे ट्रैक पर जा गिरी और चलती हुई ट्रेन उनके बाएं पैर को कुचलते हुए उनको लहू लुहान करके चली गई। बता दे कि अरुणिमा अपने कटे हुए पैर के साथ हेल्प की गुहार लगाती रही, वह चीखती रही, चिल्लाती रही,पर लोगों तक उनकी आवाज नही पहुंची और उनको पूरी रात किसी भी प्रकार की कोई भी हेल्प नही मिली। उस बीच अरुणिमा के पास से 49 ट्रेन गुजर गई। वहीं सुबह कुछ गांव वालों ने जब अरुणिमा को ऐसी हालत में देखा तो वो उन्हें पास के ही अस्पताल में ले गए, जहां चिकित्सकों को उनके एक पैर को काटना पड़ा। जिसके बाद उनके पैर में रॉड लगाई गई। उस अस्पताल में एनीस्थीसिया भी नहीं था, जब अरुणिमा को ये बात पता चली तो उन्होंने कहा कि उन्हें बिना एनीस्थीसिया दिए ही उनके घायल पैर को ठीक करें। पूरी रात असहनीय दर्द को झेलने वाली अरुणिमा के लिए यह दर्द तो कुछ भी नही था। इसके बाद अरुणिमा ने शासन और प्रशासन से तमाम लड़ाइयां लड़ीं और अपना हक ली। भले ही उस रेल दुर्घटना में उन्होंने जो खो दिया था वह कभी भी पा नही सकती थीं। पर उन्होंने अपने लिए लडाईयां लड़ी और वह जीती भी। बहरहाल इसके बाद अरुणिमा को नई दिल्ली स्थित एम्स में भर्ती कराया गया जहां पर चार महीने तक उनका इलाज चला और वह जिंदगी व मौत के बीच लड़ती रही। और उन्होंने जीत हासिल की जिसके बाद उनके को कृत्रिम पैर के सहारे जोड़ दिया गया। जिसके बाद उन्हें भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा यूएस 3,100 के मुवाअजे ने की बात कही गई व आयोजक ने उन्हें एक बेहतर व सुनिश्चित उपचार भी किया। उसी दौरान उन्होंने प्रण किया कि अब वो माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करेंगी।

वहीं अरुणिमा सिन्हा की ऐसी हालत को देखकर डॉक्टर्स भी हार मान चुके थे। और वो अपने परिवार व रिश्तेदार के लिए वह बस एक बेबस, लाचार व बिकलांग महिला थी इससे ज्यादा कुछ भी नही। हादसे के बाद से तो उनके जख्मों को कुरेदने वाले बहुत लोग थे लेकिन मरहम लगाने वाला कोई न था। पर वो अपनी जिंदगी ऐसे नही जीना चाहती थी क्योंकि वह खुद को कभी बेबस व लाचार घोषित नही करना चाहती थी। जब वो हॉकी स्टिक लेकर खेलने जाती थी मोहल्ले के लोग लोग उनपर हंसते थे, मजाक उड़ाते थे। उनकी शादी हुई तलाक हुआ, उनका साथ उनकी बहन ने दिया लेकिन वो हार नही मानी। सोंचने वाली बात है कि शरीर हर प्रकार से निपुण रहने वाले लोग भी एवरेस्ट फतह के नाम हिल जाते हैं तो अगर अरुणिमा सिन्हा का फैसला जानता तो उसके पैरो तले जमीन ही खिसक जाती। लेकिन उनका सपना तो माउंट एवरेस्ट से भी कहीं ज्यादा उंचा था। आपको बता दे कि जिस वजह से वह एवरेस्ट फतह करने वाली प्रथम भारतीय महिला बछेंद्री पाल से मिलने जमशेदपुर जा पहुंची। जब वह बछेंद्री पाल से मिली तो उन्होंने भी अरुणिमा को आम करने की सलाह दी, लेकिन जब उन्होंने अरुणिमा के इते बुलंद हौसलों को देखा तो वो भी उसके सामने झुक गई। जिसके बाद से अरुणिमा सिन्हा बछेंद्री पाल की निगरानी में रहने लगी। जिसके बाद लेह से नेपाल व लद्दाख में पर्वतारोहण के सभी गुणों को सीखी फिर पूरी तरह से जब वह तैयार हो गई। तब अरुणिमा सिन्हा ने एक नए इतिहास लिखने की तैयारी में 31 मार्च 2013 को मांउट एवेरेस्ट चढाई की शुरुआत की। 52 दिनों की दुश्वार चढ़ाई और ठंड से कपा देने वाली बर्फ को पार करते हुए एक नए ऊंचाई की इबारत लिखते हुए अरुणिमा सिन्हा ने 21 मई 2013 को माउंट एवेरेस्ट फतह कर लिया और इतिहास में प्रथम विकलांग महिला एवेरस्ट फतह करने वाली महिला  बन गई।

आपको बता दे कि जब वह अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रही थी तो उके रास्तें में कई सारी परेशानिया आई। यहां तक की इनके साथ के स्टाफ बोलते थे कि इतने का ही एक रिकार्ड है, बस करो अब रुक जाओ। लेकिन अरुणिमा सिन्हा को तो अपना सपना पूरा करना था वो कहां किसी की सुनने वाली थी। अरुणिमा इस बात को भली भांति जानती थी कि यदि वो एक नकली पैर से एवरेस्ट फतह करने में सफल हो गई तो ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली महिला बन जाएंगी। दरअसल अरुणिमा ने ऐसा करने के लिए सिर्फ ठानी कि वो दुनिया को दिखाना चाहती थी कि शारीरिक दुर्बलता किसी की कमजोरी नही होती। यदि किसी में अपने लक्ष्य तक पहुंचने की ललक, मानसिक ताकत और इच्छाशक्ति है तो फिर कोई भी दुर्बलता उसे रोक नहीं सकती। वह चाहती तो वो भी अपी कमजोरी को बेबसी व लाचारी मानकर चुपचाप बैठ जाती और पूरी जिंदगी दूसरों के सहारे गुजारती। फिलहाल उन्होंनें ऐसे नही कियाष उन्होंने सुश्किल से मुश्किल हालात में भी हार नही मानी, ह आगे बढ़ती गई और बस बढती ही गई। और लोग हम सबके लिए एक जीता जागता उदाहरण है जो अंधेरे को रोशनी की ओर खींचता है। सभी के जीवन में एक न एक दिन ऐसी परिस्थिति आती जरूर है पर उससे कभी हार नही माननी चाहिए, बल्कि उसको अपना प्सल प्नाइंट समझकर डटकर मुकाबला करना चाहिए। अरुणिमा ने भी हार नही मानी उनके पैरों से ब्लड निकलता रहा और वो एवरेस्ट पर चढ़ती गई। और आज वो पूरे विश्व की पहली विकलांग महिला हैं जिन्होंने सबसे ऊंची पर्वत चोटी-एवरेस्ट को फतह कर पर्वतारोही बनी।

वहीं 2015 में भारत सरकार ने उनकी शानदार उपलब्धियों के लिए सबसे बड़े चौथे नागरिक सम्मान-पद्मश्री से उनको नवाजा। दरअसल प्रधानमंत्र ने स्वयं अरुणिमा की जीवनी-‘बॉर्न एगेन इन द माउंटेन’-का लोकार्पण किया। 2016 में इन्हें तेनजिंग नोर्गे नेशनल एडवेंचर अवार्ड दिया गया। और इस पुरस्कार को भारत में अर्जुन पुरस्कार के बराबर माना जाता है। इन्हें राज्य के ई स्तरों में सम्मानित किया जा चुका है और इनके यागदान को देखते हुए इन्हें 2018 में अरुणिमा सिन्हा को प्रथम महिला पुरस्कार से नवाजा गया। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके विकलांग होते हुए जज्बों को देखकर सलाम किया और ईनाम में 25 लाख का चेक भी दिया।

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