Friday, October 4, 2024
featured

आज का दिन: 28 साल के लंबे इंतजार के बाद घर आई वर्ल्ड कप ट्रॉफी

SI News Today

यही वो आज दिन है जब भारत ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर भारत चैंपियन बना था, जब देश के हर कोने में कई महीनों पहले ही दीवाली मनाई गई थी. उधर मुंबई में महेन्द्र सिंह धोनी ने हैलीकॉप्टर शॉट लगाया तो इधर पूरे देश में लोग सड़कों पर उतर आए. होली और दीवाली एक साथ मनी. हर कोई 28 साल के लंबे इंतजार के बाद घर आई वर्ल्ड कप ट्रॉफी के जश्न के रंग में डूबा था.

उधर हमारी टीम पर भी जीत और खुशी का रंग चढ़ गया था. अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए जीत की दहलीज तक टीम को लाने वाले युवराज का उस विजयी छक्के बाद सब्र टूट गया और मैदान पर उनकी आंखों से निकले खुशी के आंसुओं ने 2003 में मिली हार के गम को भुला दिया. जीत क्रिकेट के भगवान को समर्पित की गई. श्रीलंका पर मिली छह विकेट की इस ऐतिहासिक जीत में विजयी पारी के लिए धोनी को मैन आॅफ द मैच दिया गया, वहीं पूरे टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन करने के लिए युवराज सिंह को मैन आॅफ द सीरीज चुना गया.

1983 में पहली बार क्रिकेट वर्ल्ड कप अपने नाम करने वाली भारतीय टीम को उसके बाद फाइनल तक पहुंचने के लिए भी काफी संघर्ष करना और 2003 में एक बार फिर टीम वर्ल्ड कप के सिर्फ एक कदम दूर थी, लेकिन फाइनल में मिली उस हार ने एक झटके में सभी के सपने को चकनाचूर करके रख दिया था. टीम सहित देश में भी एक उदासी छा गई थी, उस हार को भूला पाना सभी के लिए मुश्किल था. 2007 में शुरुआती दौर से टीम बाहर हो गई थी. दूसरे वर्ल्ड कप का सपना संजोए क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के साथ पूरे देश ने भारत की मेजबानी में हुए 2011 वर्ल्ड कप में एक बार फिर कदम रखा. सभी पड़ाव को टीम ने बेहतरीन तरीके से पार किया. पूरी टीम वर्ल्ड कप जीतना चाहती थी, तो सिर्फ सचिन तेंदुलकर के अधूरे रहे सपने को पूरा करने के लिए और इस सपने के साथ भारत ने वर्ल्ड कप के फाइनल में कदम रख ही लिया.

तारीख दो अप्रैल थी, डे नाइट मैच था. मंच पूरा सज गया था, शाम होते-होते देश के हर हिस्से की सड़क पर सन्नाटा छा गया. इस समय हर किसी को उस एक पल 2003 वर्ल्ड कप फाइनल जरूर याद आ गया था जब श्रीलंका के दिए 275 रन के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारत ने पहले ही ओवर की दूसरी गेंद पर सलामी बल्लेबाज वीरेन्द्र सहवाग का विकेट शून्य पर खो दिया. फाइनल में कोई गलती का समय नहीं था और ऐसे में इतने बड़े विकेट का वापस पवेलियन लौटने पर भारतीय खेमे में निराशा फैल गई थी, इसके बाद टीम को बड़ा झटका उस समय लगा जब 31 रन पर सचिन तेंदुलकर ने अपना विकेट गंवा दिया. मुश्किल में आई टीम को गौतम गंभीर ने उबारा और विराट कोहली के साथ साझेदारी करते हुए 114 रन तक पहुंचया, लेकिन यहां कोहली का विकेट गिरते ही स्टेडियम में मौजूद हजारों दर्शकों सहित देश के हर घर में एक बार निराशा फैल गई थी. कोहली के लौटने पर तत्कालीन कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी मैदान पर आए.

महेन्द्र सिंह धोनी और गंभीर के कंधों पर जिम्मेदारी थी टीम को दूसरी बार वर्ल्ड कप दिलाने की. धोनी अपने पुराने अंदाज में दिखे और एक छोर से धोनी तो दूसरे छोर से गंभीर ने मैच पलट कर रख दिया. धोनी ने 79 गेंदों पर नाबाद 91 रन की पारी खेली और उनकी इस आक्रामक पारी ने दर्शकों को खड़े रहने पर मजबूर कर दिया था. धोनी ने 8 चौके और दो छक्के लगाए. टीम को संकट से उबारने के बाद 223 रन पर गंभीर के रूप में टीम को चौथा झटका. हालांकि तब तब टीम सकंट से उबर चुकी थी, लेकिन फिर भी भारत को जीत के लिए अभी 52 रन बनाए थे, ऐसे में विकेट को संभालकर रखना भी जरूरी था, क्योंकि इन 52 रन के बीच अगर टीम को दो झटके लग जाते तो मैच का परिणाम कुछ और हो सकता था.

गंभीर से साझेदारी टूटने के बाद युवराज ने दूसरे छोर से धोनी का साथ दिया और बीमार होने के बावजूद भी मैदान पर डटे रहे. इसी मैच के बाद युवराज को मालूम चला था कि वह किसी छोटी मोटी बीमारी के शिकार नहीं है, बल्कि कैंसर से पीड़ित है. फाइनल में भी युवराज की तबीयत कुछ ज्यादा खास नहीं थी, लेकिन इस स्टेज पर आकर कोई भी गलती नहीं करना चाहता और युवी ने भी ऐसा ही किया. कमजोर शरीर के साथ दूसरे छोर पर मजबूती से टिके रहे और धोनी को खुलकर खेलने का मौका भी दिया. 48 ओवर का खेल हो चुका था और भारत ने चार विकेट पर 270 रन बना लिए थे.

अब टीम को जीत के लिए सिर्फ 5 रन की जरूरत थी. अगले ओवर की पहली गेंद पर युवराज ने एक रन लिया और अब स्ट्राइक पर धोनी थे. यहां धोनी ने अपना पसंदीदा हैलीकॉप्टर शॉट खेला और कुलसेकरा की गेंद को हवा में उठाते हुए बाउंड्री पार पहुंचा दिया और यही वह पल था जिसका इंतजार वर्षों से हर एक भारतीय को था, जो भारत को 1983 विश्व कप जीतते हुए न देख पाया, उसके लिए यह किसी कभी न मिटने वाली एक खूबसूरत याद बन गई

SI News Today

Leave a Reply