कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा करने वाले एक समूह को चीन ने इंटरनेशनल बॉर्डर पार करने की इजाजत देने से इंकार कर दिया। भारतीय श्रद्धालुओं की कैलाश मानसरोवर यात्रा में रोड़ा अटकाते हुए चीन ने नाथुला दर्रे के रास्ते को बंद कर दिया है जिसके चलते अब इन्हें उत्तराखंड के दुर्गम रास्ते से यात्रा करनी होगी। हालांकि इस मामलो को लेकर भारत सरकार की ओर से चीन से बात की जा रही है। विदेश मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को बताया गया कि नाथुला दर्रे से होकर कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस मामले को लेकर चीन के साथ बातचीत की जा रही है।
इससे पहले, चीन की ओर से अंतरराष्ट्रीय सरहद पार करने की इजाजत ना मिलने के कारण कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए निकले 47 श्रद्धालु भारतीय सरहद पर 20 जून से फंसे हुए थे। शुक्रवार शाम को वह सिक्किम की राजधानी गंगटोक लौट आए। आर्मी की 17th माउंटेन डिवीजन में मौजूद अपने सूत्रों के हवाले से कहा कि चीन के इजाजत नहीं देने की एक वजह चीनी हिस्से में संभावित भूस्खलन हो सकता है। जिसके चलते चीन ने अनुमति नहीं दी हो। वहीं, सिक्किम की राजधानी गंगटोक में रह रहे तीर्थयात्रियों का कहना है कि चीन की ओर से हमें प्रवेश की मंजूरी नहीं मिलने का कोई कारण नहीं दिया गया है। उन्होंने कहा कि उन्हें नाथुला से कुछ 7 किमी दक्षिण में शेरतांग में एक कैंप में रखा गया था।
हालांकि चीन की इस हरकत के चलते श्रद्धालुओं को वापस लौटना पड़ा। बता दें कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आश्वस्त किया था कि भारतीय श्रद्धालुओं को कैलाश मानसरोवर की यात्रा के लिए नाथुला दर्रे का उपयोग करने दिया जाएगा। लेकिन अब अचानक इस रास्ते को बंद कर दिया गया है। इसे लेकर भारत अब चीन से बातचीत कर रहा है। हर साल करीब 40 हजार श्रद्धालु और सैलानी कैलाश मानसरोवर की यात्रा करते हैं, जिसमें से 80 प्रतिशत भारतीय होते हैं। 12 जून से शुरू हुई यह यात्रा 8 सितंबर 2017 तक चलेगी। हिंदुओं के साथ-साथ यह जैन और बौद्ध धर्म के लोगों के लिए भी धार्मिक महत्व रखती है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा दो अलग-अलग रूट से होती है। इसमें एक रूट उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रा और दूसरा सिक्किम का नाथुला दर्रा है।