नवरात्रि पूरे भारत में मनाया जाने वाला त्योहार है। इस त्योहार को देश के हर हिस्से में अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। हर कोई नवरात्रि की पूजा अपने ढंग से करता है। लेकिन मां दुर्गा की भक्ति करना ही हर किसी की आराधना का कारण होता है। गुजरात में नवरात्रि का त्योहार डांडिया और गरबा का त्योहार भी कहा जाता है। वैस तो गरबा गुजरात का पारंपरिक नृत्य है लेकिन अब ये पूरे देश में नवरात्रि के समय किया जाता है। डांडिया और गरबा दुर्गा मां का पसंदीदा माना जाता है इसलिए हर नवरात्रि में मां को प्रसन्न करने के लिए गरबा किया जाता है। दुर्गा मां के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रुप में गरबा किया जाता है और उसके बाद मां की आरती होती है। आरती के पश्चात डांडिया समारोह का आयोजन किया जाता है। गरबा में सभी लोग बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ इकठ्ठा होते हैं और मां की भक्ति में नृत्य करते हैं।
गरबा का महत्व-
गरबा शाब्दिक अर्थ गर्भ दीप है। नवरात्रि के पहले दिन छिद्रों से लैस एक मिट्टी के घड़े को स्थापित किया जाता है जिसके अंदर दीपक प्रज्वलित किया जाता है और साथ ही चांदी का एक सिक्का रखा जाता है। इस दीपक को दीपगर्भ कहा जाता है। दीप गर्भ के स्थापित होने के बाद महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मां शक्ति के समक्ष नृत्य कर उन्हें प्रसन्न करती हैं। गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है। गरबा नृत्य में महिलाएं ताली, चुटकी, डांडिया और मंजीरों का प्रयोग भी करती हैं। ताल देने के लिए महिलाएं दो या फिर चार के समूह में विभिन्न प्रकार से ताल देती हैं। इस दौरान देवी शक्ति और कृष्ण की रासलीला से संबंधित गीत गाए जाते हैं।
गुजरात के लोगों का मानना है कि यह नृत्य मां अंबा को बहुत प्रिय है, इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए गरबा का आयोजन किया जाता है। यह पूजा उसकी ऊर्जा और शक्ति की की जाती है। प्रत्येक दिन दुर्गा के एक अलग रूप को समर्पित है। त्योहार के पहले दिन बालिकाओं की पूजा की जाती है। दूसरे दिन युवती की पूजा की जाती है। तीसरे दिन जो महिला परिपक्वता के चरण में पहुंच गयी है उसकी पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के विनाशकारी रुप से सभी बुरी शक्तियों का अंत हो जाता है। महिलाएं समूह बनाकर गरबा खेलती हैं तो वे तीन तालियों का प्रयोग करती हैं। इसके पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण विद्यमान है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवों की इस त्रिमूर्ति के आसपास ही पूरा ब्रह्मांड घूमता है। इन तीन देवों की कलाओं को एकत्र कर शक्ति का आह्वान किया जाता है।